अर्थशास्त्र के क्षेत्र में ग्रेशम का नियम अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। आज इस आर्टिकल में आप ग्रेशम का नियम, इतिहास, महत्त्व तथा ग्रेशम का नियम कैसे लागू होता है उसे जानेंगे।आइए आर्टिकल पढ़ना शुरू करते हैं। मेरा नाम है चंदन इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
ग्रेशम के नियम का इतिहास
हम मनुष्यों का यह बचपन से ही स्वभाव रहा है कि अच्छी वस्तु/सामान अपने उपयोग के लिए रखते हैं और घटिया, बेकार, खराब किस्म (Quality) की वस्तु किसी दूसरे व्यक्ति को देने का प्रयास करते हैं। ऐसा अक्सर देखा गया है कि जब किसी व्यक्ति के पास कागज के दो नोट है तो वह दुकानदार से माल खरीदने के बदले में अपनी जेब से पुराने व खराब नोट दुकानदार को देता है और बढ़िया नोट अपने पास रखता है। मनुष्य कि इस सामान्य प्रवृत्ति पर महारानी एलिजाबेथ प्रथम के सलाहकार सर ग्रेशम ने एक नियम प्रतिपादन किया था जो कि “ग्रेशम के नियम” से जाना जाता है।
एलिजाबेथ प्रथम
यह ब्रिटेन की महारानी है जब इन्होंने शासन संभाला तो उनके देश में बहुत ही घटिया किस्म की मुद्राएं प्रचलन में थी। महारानी ने यह निर्णय लिया कि देश में बढ़िया किस्म की मुद्रा प्रचलन में लाई जाएगी तो जनता (लोग) घटिया किस्म की मुद्रा का उपयोग करना बंद कर देगी। महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने अच्छे किस्म की मुद्रा को लाया ।
कुछ समय बाद यह पता चला कि बाजार से बढ़िया मुद्रा गायब हो रहे हैं और पुराने व घटिया मुद्रा प्रचलन में है । इसका कारण जानने के लिए महारानी ने अपने आर्थिक सलाहकार ग्रेशम को बुलाया और अच्छी मुद्रा के गायब होने का कारण पूछा । ग्रेशम ने इस समस्या का अध्ययन करने के पश्चात यह मत प्रकट किया कि
“यदि किसी देश में घटिया और बढ़िया दो प्रकार की मुद्राएं एक साथ चलन में हो तो घटिया मुद्रा बढ़िया मुद्रा को चलन से बाहर कर देती हैं।
इस सिद्धांत को ठीक प्रकार से समझने के लिए यह समझना अति आवश्यक है कि घटिया और बढ़िया मुद्रा से क्या मतलब होता है चलिए उससे जानते हैं ।
अच्छी और बुरी मुद्राएं | खराब पैसे को क्यों निकालेगा
अच्छी अथवा बढ़िया वह मुद्रा है जिसमें शुद्ध धातु की मात्रा पूरी हो तथा डिप्रेशिएशनसे जिसका मूल्य कम ना हुआ हो । इसके विपरीत घटिया, निकृष्ट अथवा बुरी मुद्रा वह है जिसमें शुद्ध धातु की मात्रा कम है अथवा मिलावट के कारण उसके मूल्य में कमी आ गई है । यदि चलन में एक साथ दो धातु के सिक्के चलते हैं और दो धातु हो तो जिस मुद्रा का मूल्य पहले से अधिक हो जाता है उसे अच्छी मुद्रा माना जाता है प्रामाणिक और नए सिक्के वाहनीयता होती है अच्छी मुद्रा माने जाते हैं।
ग्रेशम का नियम | ग्रेशम के नियम की परिभाषा
ग्रेशम के नियम के संबंध में मूल धारणा यह है कि घटिया मुद्रा, बढ़िया मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है लेकिन प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मार्शल के अनुसार यदि घटिया मुद्रा मात्रा में सीमित नहीं है तो वह बढ़िया मुद्रा को चलन से बाहर कर देती हैं।
इस परिभाषा में ग्रेशम के नियम की सीमा ( यदि घटिया मुद्रा मात्रा में सीमित नहीं है) का भी उल्लेख किया गया हैं। प्रोफेसर kent ने ग्रेशम के नियम को अधिक स्पष्ट शब्दों में प्रकट किया है जो कि नीचे इस प्रकार से दिए गए हैं –
“यदि किसी देश में दो प्रकार की मुद्राएं हो और बाजार में उनके मूल्य अलग होते हुए भी सरकार द्वारा उनके समान मूल्य घोषित किए गए हो तो सरकार द्वारा जिस मुद्रा का अधिक मूल्य घोषित किया गया है वह दूसरी मुद्रा ( जिसका मूल्य सरकार द्वारा कम घोषित किया गया है परंतु बाजार में अधिक है) को चलन से बाहर कर देगी ।”
उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर ग्रेशम के नियम की विशेषताएं निम्नलिखित है इस प्रकार से दिए गए हैं –
- यह नियम मनुष्य के स्वभाव पर आधारित है कि वह अच्छी वस्तु स्वयं रखना चाहता है और घटिया वस्तु से छुटकारा पाना चाहता है।
- जब प्रचलित मुद्राओं के अधिकृत एवं बाजार मूल्य में अंतर हो तभी यह नियम प्रभावी होता है।
ग्रेशम के नियम का महत्व
आधुनिक समय में ग्रेशम के नियम का कोई महत्व नहीं है क्योंकि ग्रेशम का नियम केवल धातुमान व्यवस्था के अंतर्गत ही विशिष्ट रूप से लागू होता है। आज के समय में किसी भी देश में धातु मान मुद्रा प्रचलित नहीं रह गया है ।ग्रेशम का नियम केवल ऐतिहासिक महत्व की बात रह गया है।
आधुनिक अर्थशास्त्री इसे नियम की संज्ञा देना आवश्यक समझते हैं क्योंकि ग्रेशम का नियम एक ऐसी सामाजिक स्थिति को मानकर चलता है जिसमें धातुओं की प्रधान मुद्राएं चलन में रहती है और जनता केवल आर्थिक लाभ की संभावनाओं से प्रेरित होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
उत्तर – मुद्रा को जमा रखना, गलाना , विदेशी भुगतान आदि ।