ग्रेशम के नियम की सीमाएं

कोई भी व्यक्ति में कितना अच्छा Quality क्यों ना हो उसके बावजूद भी उसमें कुछ कमियां होती ही हैं। आज के इस नए आर्टिकल में आपको ग्रेशम के नियम की सीमाएं एवं क्षेत्र के बारे में  बताया जाएगा ।

हेलो मेरा नाम चंदन है इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

 ग्रेशम के नियम की सीमाएं

 इस नियम के कुछ अपवाद भी हैं यह नियम कुछ दशाओं  में लागू नहीं होता है जिसे सीमा (limit) के नाम से जानते हैं जो कि नीचे इस प्रकार से दिए गए हैं-

 बैंकिंग विकास अधिक हो गया है 

जिस देश में बैंकिंग विकास अधिक हो गया हो वहां पर लोग नकद लेनदेन नहीं करते हैं और करते भी हैं तो काफी कम मात्रा में करते हैं अधिकतर लोग चेक एवं विनिमय पत्रों का इस्तेमाल करते हैं इसलिए यहां पर ग्रेशम का नियम लागू नहीं होता है क्योंकि नकद का प्रयोग ना होने की स्थिति में अच्छे और बुरे मुद्रा में भेद करने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता हैं।

बुरी मुद्रा बहुत ही खराब हो 

यदि देश में प्रचलित बुरी मुद्रा इस सीमा तक खराब हो चुकी है कि लोग उसे किसी भी दशा में ग्रहण नहीं करेंगे जैसे कि बहुत घिसे हुए सिक्के या फटे पुराने नोट तो ऐसी मुद्रा स्वयं ही चलन से बाहर हो जाती है अर्थात राजकोष को लौटा दी जाती है और इस प्रकार ग्रेशम का नियम लागू नहीं होता हैं।

मुद्रा की कुल मात्रा सीमित हो

 यदि देश में जो मुद्रा प्रचलन में है उसकी कुल मात्रा और आवश्यकता से कम हो तो ग्रेशम का नियम लागू नहीं होगा क्योंकि प्रत्येक देश में व्यवसायिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए न्यूनतम मुद्रा की आवश्यकता होती हैं। ऐसी स्थिति में लोग अच्छी मुद्रा का संचय (Reserve) नहीं करेंगे क्योंकि विनिमय के लिए अच्छी और बुरी दोनों मुद्राओं की आवश्यकता होगी।

जनता द्वारा बुरी मुद्रा का बहिष्कार किया जाए

 यदि जनता मुद्रा का विरोध कर उसे प्रयुक्त करना सर्वथा बंद कर दे तो ग्रेशम का नियम लागू नहीं होगा क्योंकि लोग मुद्रा का प्रयोग में ही नहीं लेंगे तो ग्रेशम का नियम लागू होने का कोई प्रश्न ही नहीं पैदा होता हैं।

सरकार मुद्रा व्यवस्था के प्रति सतर्क हो 

यदि सरकार घटिया या बढ़िया मुद्रा को स्वयं ही चलन से निकालती रहे और मुद्रा व्यवस्था के प्रति विशेष सतर्क रहे तो भी ग्रेशम का नियम लागू नहीं हो सकता हैं।

मुद्रा का विकास कैसे हुआ ?

लक्ष्य का निर्धारण कैसे करें

ग्रेशम के नियम का  क्षेत्र

यदि बहुत बारीकी से देखा जाए तो ग्रेशम का नियम सभी प्रकार की मुद्रा व्यवस्था में प्रभावी होता हैं। नीचे दिए गए शब्दों से स्पष्ट हो जाएगा – 

एक धातु मान में ( Under Monometallism)

इसके अंतर्गत सोना या चांदी को शामिल किया जाता है तथा छोटे लेनदेन के लिए घटिया धातुओं की हल्की और अलग आकार प्रकार की मुद्राएं प्रचलित होती हैं। इन दोनों धातुओं में ग्रेशम का नियम कुछ इस प्रकार से प्रभावी होता है – 

  1. प्रधान मुद्राओं में जो  Depreciation हुई है वह चलन में रह जाती है तथा पूरे वजन की मुद्राओं का संग्रह कर लिया जाता है अथवा उन्हें गला लिया जाता हैं। 
  1. प्रधान मुद्राओं में से यदि कुछ मुद्राओं में शुद्ध धातु (सोना या चांदी) की मात्रा कम और कुछ में अधिक हो तो अधिक शुद्ध धातु वाले मुद्राओं का संग्रह करके, गलाकर अथवा विदेशी भुगतान के लिए उपयोग में लेकर चलन से बाहर कर दिया जाता हैं।

 एकधातु मान के अंतर्गत भारत में ग्रेशम का नियम उस समय लागू हुआ जब रानी विक्टोरिया और जॉर्ज छठा दोनों की आकृति के रुपए प्रचलन में थे।

 दो धातु मान  में ( Under Bimetallism) 

इसके अंतर्गत भी सोने और चांदी के प्रधान Coin के चलन में रहते हैं जिसका विनिमय दर सरकार द्वारा ही निश्चित किया जाता हैं। यदि बाजार में किसी एक धातु का मूल्य बढ़ जाए तो स्वभावत: उस धातु की मुद्रा का संग्रह लोग करने लगेंगे, उसे गलाने लगेंगे अथवा उसे विदेशी भुगतान करने के उपयोग में लेंगे । इस प्रकार बाजार में जिस धातु का मूल्य बढ़ जाता है उससे संबंधित सिक्के चलन से गायब होने लगते हैं। 

 पत्र मुद्रा मान में (Under Paper Standard)

जब किसी देश में पत्र मुद्रा चलन में होती है तब सामान्यतः ग्रेशम के नियम का कोई महत्व ही नहीं होता है क्योंकि कागज के नोट ना तो संग्रह की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं, ना उन्हें गलाया जा सकता है और ना ही उनका भुगतान में उपयोग किया जा सकता है, लेकिन कभी-कभी पत्र मुद्रा में भी ग्रेशम का नियम लागू होने का उदाहरण मिल जाता है जो कि नीचे की पंक्ति में कुछ इस प्रकार से दिए गए हैं-

  1.  पुराने और नए नोटों में नए नोटों को लोग अपने पास रख लेती है और पुराने नोटों को अपने कार्यों में उपयोग करते हैं। 
  1.  यदि परिवर्तनशील और अपरिवर्तनशील पत्र मुद्रा साथ-साथ चलन में हो तो परिवर्तनशील पत्र मुद्रा का संग्रह होने लगता है क्योंकि उसके बदले में सोना या चांदी मिलने की आशा बनी रहती हैं।

 पत्र मुद्रा और धातु मुद्रा साथ होने पर ( Paper Money and Metallic Money) 

जब किसी देश में धातु मुद्रा और  पत्र मुद्रा साथ-साथ चलन में हो तो प्रायः धातुओं के मूल्य में वृद्धि होती ही लोग उससे संग्रह करना शुरू कर देते हैं या उसे गलाना आरंभ कर देते हैं। इस प्रकार से धातु मुद्रा के चलन से गायब होने की प्रवृत्ति रहती है यदि धातु के मूल्य में परिवर्तन नहीं भी हो तो  भी धातु मुद्रा, पत्र मुद्रा की तुलना में अच्छी मुद्रा समझी जाती हैं क्योंकि उसका कुछ ना कुछ तो वास्तविक मूल्य होता है जबकि पत्र मुद्रा का वास्तविक मूल्य Zero होता हैं।