प्रतिफल क्या हैं

प्रतिफल शब्द को समझना बिल्कुल आसान हैं। आज के इस नए आर्टिकल में मैं आपको प्रतिफल से आप क्या समझते हैं, प्रतिफल के लिए कौन-कौन से आवश्यक तत्व है इत्यादि बताऊंगा।

प्रतिफल क्या हैं समझाइए ?

प्रतिफल की परिभाषा – साधारण बोलचाल की भाषा में प्रतिफल से आश्य उस मूल्य या प्राप्ति से होता है जो वचन दाता के वचन के बदले वचनगृहिता द्वारा दिया जाता हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह कुछ के बदले कुछ (Quid pro-quo or Something for something) हैं।

अन्य शब्दों में,

प्रतिफल का अर्थ उस उचित, समान अथवा अन्य मूल्यवान लाभ से है जो वचन दाता द्वारा वचनगृहिता अथवा हस्तांतरण कर्ता द्वारा हस्तांतरिती को दिया जाता हैं। – भारत के उच्चतम न्यायालय ने सोनिया भाटिया बनाम उत्तर प्रदेश सरकार 1981 के विवाद में यह परिभाषा दी हैं।

प्रतिफल वह मूल्य हैं जिसके बदले दूसरे का वचन खरीदा जाता है और इस मूल्य के बदले प्राप्त वचन को प्रवर्तित कराया जा सकता हैं – सर फ्रेडरिक पोलक

कोलकाता उच्च न्यायालय के फजल उद्दीन बनाम पंचानन दास के विवाद में प्रतिफल की परिभाषा कुछ इस प्रकार से दी गई है “प्रतिफल वचन का मूल्य हैं। “

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प्रतिफल से आप क्या समझते हैं?

भारतीय अनुबंध अधिनियम के अनुसार ‘जब वचनदाता की इच्छा पर वचनगृहिता अथवा किसी अन्य व्यक्ति ने A कोई कार्य किया है अथवा उसके करने से विरत रहा हैं, अथवा B कोई कार्य करता है अथवा उसके करने से विरत रहता हैं अथवा C कोई कार्य करने अथवा विरत रहने का वचन देता हैं, तो ऐसे कार्य या विरति या वचन, उस वचन के लिए प्रतिफल कहलाता है।’

उदाहरण के रूप में राम अपने स्कूटर श्याम को ₹40000 में बेचने के लिए सहमत हो जाता है यहां पर राम का प्रतिफल ₹40000 तथा श्याम का प्रतिफल स्कूटर है।

प्रतिफल संबंधी वैधानिक नियम प्रतिफल के लक्षण अथवा तत्व

प्रतिफल के लिए कौन-कौन से आवश्यक तत्व है इसका जवाब होगा निम्नलिखित है। नीचे की पंक्ति में इस प्रकार से दिया गया हैं –

  • प्रतिफल वचनदाता की इच्छा पर होने चाहिए।
  • प्रतिफल भूत, वर्तमान या भावी (भविष्य) का हो सकता हैं।
  • प्रतिफल कुछ कार्य या विरति का वचन हो।
  • प्रतिफल वचनगृहीता अथवा किसी अन्य व्यक्ति की ओर से हो सकता हैं।
  • कुछ प्रतिफल अवश्य होना चाहिए।
  • प्रतिफल अवैधानिक नहीं होना चाहिए।
  • प्रतिफल मूल्यवान होना चाहिए ।

प्रतिफल वचनदाता की इच्छा पर होने चाहिए।

यह इसका पहला लक्षण या तत्व हैं कि प्रतिफल सदैव वचन दाता की इच्छा पर ही उत्पन्न होना चाहिए क्योंकि यदि कोई कार्य वचन दाता के बिना इच्छा से अथवा तीसरा पक्षकार की इच्छा से किया जाता हैं तो वह वैधानिक दृष्टि से प्रतिफल नहीं हो सकता है। वचनदाता की इच्छा से पक्षकारों के आचरण से जानी जा सकती है।

उदाहरण के रूप में – राम का पुत्र खो गया श्याम स्वेच्छा से उसे ढूंढने जाता है वह उसे ढूंढ कर लाने के बदले में राम से किसी भी प्रकार का पैसा अथवा कोई भी इनाम पाने का अधिकारी नहीं है क्योंकि उसने यह कार्य स्वेच्छा से किया है राम की प्रार्थना पर नहीं।

प्रतिफल भूत, वर्तमान या भावी (भविष्य) का हो सकता हैं।

प्रतिफल का दूसरा महत्वपूर्ण लक्षण या तत्व यह है कि यह भूत, वर्तमान व भविष्य तीनों हो सकता है आइए इसे समझते हैं –

a. भूत प्रतिफल – यदि अनुबंध किसी ऐसे कार्य अथवा उसके विरति के लिए किया जा रहा है जो पहले ही किया जा चुका हो तो वह कार्य अथवा विरति उस अनुबंध के लिए भूतकालीन प्रतिफल कहलता है।

b. वर्तमान प्रतिफल – जब कोई कार्य अथवा उसका विरति अनुबंध करने के साथ-साथ होता है तो वह वर्तमान प्रतिफल कहलाता हैं।

c. भविष्य प्रतिफल – जब कोई व्यक्ति किसी वर्तमान अनुबंध के संबंध में भविष्य में कोई कार्य करने अथवा उसके करने से विरत रहने का वचन देता है तो यह वचन के लिए भविष्य प्रतिफल कहलाता है।

प्रतिफल कुछ कार्य या विरति का वचन हो।

प्रतिफल की परिभाषा से पूर्ण तथा स्पष्ट हो जाता है कि प्रतिफल कुछ कार्य या विरति (Abstinence) का वचन हो सकता है।

प्रतिफल वचनगृहीता अथवा किसी अन्य व्यक्ति की ओर से हो सकता हैं।

प्रतिफल वचनगृहीता अथवा किसी अन्य व्यक्ति की ओर से हो सकता हैं। इस नियम को “रचनात्मक प्रतिफल का सिद्धांत” (Consideration may be form the Promise or any other person) भी कहते हैं इसके विपरीत अंग्रेजी राजनियम मे प्रतिफल वचनगृहीता की ओर से होना आवश्यक होता है।

कुछ प्रतिफल अवश्य होना चाहिए।

प्रतिफल की दी गई परिभाषा के अनुसार कुछ प्रतिफल अवश्य होना चाहिए। हां यह आवश्यक नहीं है कि प्रतिफल उपयुक्त अथवा पर्याप्त चाहिए। इस संबंध से धारा 25(2) का भी यही निर्देश है कि प्रतिफल का पर्याप्त होना अनिवार्य नहीं हैं।

प्रतिफल मूल्यवान होना चाहिए

प्रतिफल का राजनियम की दृष्टि में कुछ मूल्य अवश्य होना चाहिए। प्रतिफल का कुछ भी मूल्य नहीं होगा तो वह ठहराव वैध नहीं होगा।