प्रमाणन क्या हैं | Vouching In Hindi

नमस्कार मित्रों एक और नये आर्टिकल में स्वागत हैं। आज के इस आर्टिकल में प्रमाणन ( वाउचिंग इन हिंदी) क्या हैं, परिभाषा, उद्देश्य, महत्व तथा नैत्यक जांच में अंतर को स्पष्ट करते हुए समझेंगे।

जब आप बाजार से कोई वस्तु खरीदते हैं तो दुकानदार के द्वारा वस्तु देने के साथ-साथ एक रसीद भी दिया जाता है। क्या आपने सोचा है कि उस रशीद को देने का दुकानदार का मेन मकसद क्या होता है तथा उस रसीद पर क्या- क्या लिखा होता हैं।

प्रमाणन का अर्थ क्या हैं?

सामान्य शब्दों में यह एक ऐसा प्रपत्र होता है जिसे किसी वस्तु को खरीदने के पश्चात सबूत (Evidence) के रूप में प्राप्त होता है। इसे रसीद, बिल, Slip, Payment Receipts, Invoice आदि कई अलग-अलग नामों से जानते हैं।

प्रमाणन ( Vouching) अंकेक्षण की आधारशिला है अर्थात वाउचिंग नहीं रहेगा तो अंकेक्षण का कोई महत्व ही नहीं होगा। जिस तरह से कलम में स्याही के बिना, मानव शरीर में रक्त के बिना और बिजनेस में पैसा के बिना।

प्रमाणन का कार्य करते समय अंकेक्षक को काफी सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। अंकेक्षक जब अपना काम शुरू करता है तो सबसे पहले उसे प्रारंभिक लेखा पुस्तकों की जांच करनी होती है फिर उसे यह भी देखना होता है कि क्या प्रविष्टियां सही व नियम के अनुसार की गई है या नहीं। सभी प्रविष्टि प्रमाणक के आधार पर हुई हैं या नहीं। क्या कोई ऐसा भी वाउचर है जिसका प्रविष्टि ही नहीं हुआ है या फिर कोई ऐसा प्रविष्टि हो गया है जिसका वाउचर ही नहीं है। अतः इस संपूर्ण प्रक्रिया को प्रमाणन कहा जाता हैं।

डी पौला के अनुसार ” प्रमाणन का आशय केवल प्राप्तियों को रोकड़ पुस्तकों से ही जांचना मात्र नहीं होता है बल्कि व्यापार के सौदों को प्रपत्र एवं पर्याप्त वैधता वाले अन्य प्रमाणको सहित जांचना भी है ताकि अंकेक्षक को यह विश्वास हो जाए कि वे लेन-देन सही हैं, उचित तरीके से किए गए हैं और पुस्तकों में सही जगह पर लिखा गया हैं।

आदर्श परिभाषा ( Ideal Definition )

प्रमाणन का आश्य लेखांकन की पुस्तकों में किए गए लेखों की, प्रमाणकों के आधार पर जांच करना तथा इन प्रमाणकों की भी इस आशय से जांच करना है कि यह ठीक है या नहीं। इस जांच का उद्देश्य यह ज्ञात करना हैं कि पुस्तकों में किए गए लेखे शत प्रतिशत सही एवं उचित है कि नहीं।

उपरोक्त परिभाषा ओं के आधार पर कुछ मुख्य बिंदु

  • प्रत्येक लेन-देन सही-सही एवं शुद्ध होना चाहिए।
  • प्रारंभिक लेखा पुस्तक में किए गए लेखों की सत्यता जानने के लिए प्रमाणित करना चाहिए।
  • प्रत्येक जांच प्रमाणन का हिस्सा है।
  • लेन-देन अधिकृत व्यक्ति द्वारा आदेशित होना चाहिए।

 

प्रमाणन के उद्देश्य लिखिए।

  1. प्रमाणन का प्राथमिक उद्देश्य लेखा पुस्तकों की शुद्धता एवं सत्यता का प्रमाण देना है ताकि अंकेक्षक को यह भरोसा हो जाए कि व्यवसाय में जो लेनदेन हुए हैं उससे संबंधित किए गए लेखे सही हैं, नियम के अनुसार किए गए हैं तथा लेखे अधिकृत हैं।
  2. लेखा पुस्तक में लेनदेन की सभी प्रविष्टियों की गई है या नहीं, इस बात की जानकारी प्राप्त करना भी प्रमाणन का प्रमुख उद्देश्य होता है। इसके लिए प्रत्येक प्रमाणन का मिलान किए गए लेखों से किया जाता है। कोई प्रमाणक ऐसा नहीं होना चाहिए जिनका लेखा नहीं किया गया हो।
  3. व्यापारिक लेनदेन की स्वीकृति अधिकृत व्यक्ति द्वारा होने चाहिए अन्यथा मान्य नहीं होगा। लेनदेन की अधिकृत की जानकारी प्रमाणन से होती हैं।
  4. कुछ लेनदेन ऐसे भी होते हैं जिनका संबंध व्यवसाय से नहीं होता है जैसे कि व्यक्तिगत खर्चे, व्यक्तिगत उद्देश्य के लिए वस्तुओं की खरीदारी आदि। ऐसे लेखों का ज्ञान प्रमाणक से होता है। वस्तुत इन लेखों को व्यापार में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

 

प्रमाणन के महत्व को बताइए

प्रमाणन अंकेक्षण का मुख्य आधार होता है इसका महत्व सामान्यतः खरीदारों यानी कि ग्राहक द्वारा नहीं दिया जाता है लेकिन व्यवसायिक संस्था के लिए बहुत उपयोगी होता हैं। इसके महत्व को निम्नलिखित तरीके से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. अंकेक्षक का प्रारंभिक कार्य है प्रमाणन – अंकेक्षक का कार्य प्रमाणन के आधार पर ही शुरू होता है बिना इसके अंकेक्षण का कार्य संभव ही नहीं है।
  2. प्रमाणन अंकेक्षण का आधारभूत कार्य हैं – यदि मकान की नींव मजबूत है तो निश्चित ही वह मकान अधिक समय तक उस नींव पर खड़ा रहेगा। यदि नींव ही कमजोर है तो वह जल्दी ही गिर जाएगा। ठीक वैसे ही यदि प्रमाणन का कार्य सही ढंग से पूरा किया गया हो तो अंकेक्षण का कार्य भी सही तरीके से होगा।
  3. प्रमाणन अंकेक्षण की आत्मा हैं – जब तक शरीर में आत्मा है तब तक शरीर का महत्व है। आत्मा नहीं होने पर शरीर महत्वहीन हो जाता है । ठीक वैसे ही प्रमाणन अंकेक्षण की आत्मा हैं बिना प्रमाणन के अंकेक्षण का कार्य अधूरा हैं। यूं कहे तो पहले प्रमाणन का कार्य पूरा किया जाता है फिर उसके बाद ही आगे की कार्यवाही में अंकेक्षण का भूमिका होता है।

 

नैत्यक जांच तथा प्रमाणन में अंतर स्पष्ट कीजिए

नैत्यक जांच तथा प्रमाणन में निम्नलिखित अंतर है जो इस तरह से दिए गए हैं –

  1. उद्देश्य – प्रमाणन का उद्देश्य नैत्यक जांच के उद्देश्य से व्यापक होता हैं जबकि नैत्यक जांच का उद्देश्य तुलनात्मक संकुचित हैं। इसका उद्देश्य लेखा पुस्तक एवं ट्रायल बैलेंस की जांच करने तक ही सीमित है।
  2. भाग – प्रमाणन नैत्यक जांच का अंग नहीं होता है जबकि नैत्यक जांच प्रमाणन का अंग होता है।
  3. लेन- देन की प्रकृति – प्रमाणन के अंतर्गत यह देखा जाता है कि लेनदेन प्रमाणक के आधार पर किए गए हैं या नहीं जबकि इसके अंतर्गत गणितीय शुद्धता की जांच की जाती है।
  4. जांच प्रक्रिया – इसके अंतर्गत अभिलेखित लेन-देनों की जांच प्रमाणकों के आधार पर की जाती है जबकि नैत्यक जांच में प्रमाणको का प्रयोग नहीं किया जाता है।

Conclusion :

प्रिय पाठक आशा करता हूं कि आपको प्रमाणन क्या हैं Vouching In Hindi से संबंधित सभी बातें बहुत ही अच्छे से समझ में आया होगा। यदि आपको इस आर्टिकल से संबंधित कोई प्रश्न है तो नीचे कमेंट करें।

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