प्रस्ताव अर्थात Proposal, offer यह शब्द आपने कभी ना कभी अवश्य सुना होगा इस नए पोस्ट में आप प्रस्ताव एवं स्वीकृति की परिभाषा, विशेषता, प्रस्ताव के वैधानिक नियम आदि को समझेंगे।
“एक प्रस्ताव के लिए स्वीकृति का वही अर्थ होता है जो बारूद से भरी रेलगाड़ी के लिए जलती दिया सिलाई का ।” – सर विलियम एन्सन ।
प्रस्ताव क्या हैं?
जब एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से किसी कार्य को करने अथवा उससे विरत रहने के संबंध में अपनी इच्छा इस उद्देश्य से प्रकट करें कि उस व्यक्ति की सहमति उस कार्य को करने अथवा उससे विरत रहने के संबंध में प्राप्त हो तो कहेंगे कि पहले व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के समक्ष प्रस्ताव (Proposal) रखा।
अन्य शब्दों में – वह व्यक्ति जो प्रस्ताव रखता है प्रस्ताविक (Proposer or Offeror) अथवा ‘वचनदाता’ (Promisor) कहलाता हैं। इसके उल्टा अर्थात विपरीत जिस व्यक्ति के समक्ष प्रस्ताव रखा जाता है वह प्रस्तावकी (Offeree) अथवा वचनगृहीता (Promisee) कहलाता है।
प्रस्ताव की विशेषताएं
प्रस्ताव चाहे जैसा भी हो इसके निम्नलिखित लक्षण एवं विशेषताएं होती हैं –
- कम से कम 2 पक्षों का होना
- प्रस्ताव किसी कार्य को करने अथवा ना करने के लिए होना
- प्रस्तावक द्वारा दूसरे पक्षकार की सहमति प्राप्त करने के उद्देश्य से इच्छा का प्रकट किया जाना
कम से कम 2 पक्षों का होना
प्रस्ताव की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि इसमें कम से कम 2 पक्ष होने चाहिए। कोई भी पक्षकार स्वयं के समक्ष प्रस्ताव नहीं रख सकता है और ना ही स्वयं के अधिकारों के प्रति उत्तरदायी भी हो सकता हैं।
प्रस्ताव किसी कार्य को करने अथवा ना करने के लिए होना
दूसरा मुख्य विशेषता है कि प्रस्ताव किसी कार्य को करने के लिए भी हो सकता है और नहीं करने के लिए भी हो सकता है । जैसे राम, श्याम से यह प्रस्ताव करता है कि ₹500 के बदले वह श्याम पर एक महीने तक वाद प्रस्तुत नहीं करेगा यहां राम किसी कार्य को ना करने का प्रस्ताव करता हैं।
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प्रस्तावक द्वारा दूसरे पक्षकार की सहमति प्राप्त करने के उद्देश्य से इच्छा का प्रकट किया जाना
प्रस्तावक दूसरे पक्षकार के समक्ष उसकी स्वीकृति पाने के उद्देश्य से ही अपनी इच्छा प्रकट करता है। यदि प्रस्ताव दूसरे पक्ष की स्वीकृति प्राप्त करने के उद्देश्य से ना किया जाए तो इसे प्रस्ताव नहीं कहेंगे क्योंकि ऐसा ना करने से प्रस्ताव स्वीकृति नहीं किया जा सकता । इस प्रकार ना तो यह ठहराव ही बन सकता है और ना ही अनुबंध ही।
प्रस्ताव के वैधानिक नियमों को समझाइए
भारतीय अनुबंध अधिनियम एवं कई न्यायाधीशों के द्वारा निम्नलिखित प्रस्ताव के वैधानिक नियम है जो इस प्रकार से हैं –
वैधानिक उत्तरदायित्व उत्पन्न करना
वैधानिक उत्तरदायित्व उत्पन्न करना का मतलब वैधानिक उत्तरदायित्व उत्पन्न करना होना चाहिए जैसे A , B को अपने यहां भोजन के लिए निमंत्रण देता है और B द्वारा उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया जाता है लेकिन किसी कारणवश B आने में असमर्थ रहता हैं। इससे A का खाना बर्बाद हो जाता है अब सवाल यह उठता है क्या A कि जो क्षति हुई है उसका जिम्मेदार B होगा।
A अपने खाने की पूर्ति के लिए B के विरुद्ध न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकता है उत्तर है नहीं क्योंकि यह एक सामाजिक ठहराव था। इससे किसी भी प्रकार के वैधानिक संबंध उत्पन्न नहीं होते हैं। इसी प्रकार नौका विहार को जाना , घूमने जाना, साथ में अध्ययन करना सिनेमा जाना आदि ऐसे प्रस्ताव है जो किसी भी प्रकार का कानूनी उत्तरदायित्व उत्पन्न नहीं करते हैं।
प्रस्ताव का स्पष्ट, निश्चित, पूर्ण तथा अंतिम होना
प्रस्ताव पूर्णत: स्पष्ट, निश्चित, पूर्ण तथा अंतिम होना चाहिए, अस्पष्ट नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए एक बकरी का अधिक मूल्य देने का वचन, बशर्ते वह मेरे लिए भाग्यशाली हो, पूर्णत: अस्पष्ट प्रस्ताव है और इसकी कोई वैधानिक बाध्यता नहीं है।
स्वीकृति क्या हैं?
स्वीकृति (Acceptance) की परिभाषा – जब वह व्यक्ति जिसके लिए प्रस्ताव किया गया है उस पर अपनी सहमति प्रकट कर देता है तो यह कहा जाता है कि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया।
उपरोक्त परिभाषा से यह स्पष्ट हो जाता है कि स्वीकृति का मतलब सहमति प्रकट करने से हैं। यह स्वीकृति लिखित, मौखिक तथा सांकेतिक किसी भी रूप में हो सकती हैं। इस संबंध में यह उल्लेखनीय है कि प्रस्ताव की स्वीकृति केवल हां या सकारात्मक रूप में ही हो सकती है नकारात्मक या नहीं के रूप में नहीं हो सकती हैं ।
अन्य शब्दों में
” एक प्रस्ताव के लिए स्वीकृति का वही मतलब होता है जो बारूद से भरी रेलगाड़ी के लिए जलती दिया सिलाई का ।
जिस प्रकार जलती हुई दिया सिलाई के बारूद से भरी रेलगाड़ी के संपर्क में आते ही विस्फोट हो जाता है वैसे ही प्रस्ताव के स्वीकृति होते ही ठहराव बन जाता है।
स्वीकृति के संबंध में वैधानिक नियम एवं लक्षण तथा विशेषताएं
भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 6, 7, 8 एवं 9 तथा उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों के विस्तृत अध्ययन करने के पश्चात हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि 1 वैध स्वीकृति के निम्नलिखित लक्षण अथवा वैधानिक नियम होते हैं जो नीचे इस प्रकार से दिए गए हैं –
- स्वीकृति पूर्ण तथा शर्त रहित होना चाहिए
- स्वीकृति प्रस्ताव में निश्चित की गई विधि अथवा ढंग के अनुरूप होने चाहिए।
- निश्चित विधि के अभाव में प्रचलित एवं उचित विधि से स्वीकृति तय होने चाहिए ।
- स्वीकृति को प्रस्ताव की जानकारी होनी चाहिए।
- स्वीकृति केवल उसी व्यक्ति द्वारा होनी चाहिए जिससे प्रस्ताव किया गया हो ।
- विशेष प्रस्ताव की दशा में स्वीकृति में संवहन की अनिवार्यता भी होनी चाहिए।
FAQs
प्रश्न संख्या 1 – प्रस्ताव के लिए कितने पक्षकारों का होना आवश्यक हैं?
उत्तर – दो (02)
प्रश्न संख्या 2 – प्रस्ताव केवल सामान्य होता हैं?
उत्तर – नहीं।
प्रश्न संख्या 3 – प्रस्ताव स्वीकृत होने पर वचन बन जाता हैं?
उत्तर – हां
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