आज हिसाब-किताब रखने के कई सारे विकल्प है जैसे-Khata Book App, Google Sheets ,Ok Credit , Pagar Book, ऐसे बहुत हैं। आज टेक्नोलॉजी का युग है भारतीय लेखांकन प्रणाली हिसाब-किताब रखने की एक पद्धति हैं। इस पोस्ट में आप भारतीय लेखांकन प्रणाली की परिभाषा, विशेषताएं तथा इसकी लोकप्रियता के बारे में जानेंगे एवं साथी ही मुख्य बिंदु को भी देखेंगे।
भारतीय लेखांकन प्रणाली की परिभाषा
भारतीय बुक खाता प्रणाली व्यवसाय में जो लेन-देन होते हैं उनको लिखने की एक परंपरागत वैज्ञानिक प्रणाली हैं। जिसमें लेनदेन को एक निश्चित तरीके से निश्चित बहियों में किसी भी क्षेत्रीय या राजकीय भाषा में लिखने से हैं।
यह एक ऐसी प्रणाली है जिसका सिर्फ उपयोग भारत में होता हैं। इस कारण से इसे भारतीय लेखांकन प्रणाली, बहीखाता प्रणाली व महाजनी बही खाता प्रणाली के नाम से जानते हैं। इस पद्धति या प्रणाली में व्यवसाय में हुए वित्तीय सौदों को किसी भी भाषा में लिखा जा सकता हैं। वर्तमान में अधिकांश व्यापारी हिंदी भाषा में अपना हिसाब किताब लिखते हैं। भारतीय बही खाता प्रणाली प्राचनीतम,सरल एवं आसानी से परिवर्तित किया जा सके ऐसा प्रणाली हैं।यह पद्धति भी अंग्रेजी लेखा के दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System) के सिद्धांत पर आधारित हैं।
व्यवसाय में हुए वित्तीय लेन देन का लेखा (हिसाब-किताब) भारतीय लेखा विधि से रखना ही “भारतीय लेखांकन प्रणाली” हैं।
भारतीय लेखांकन प्रणाली की विशेषताएं एवं लक्षण
इस पद्धति की विशेषताएं निम्नलिखित है-
- इसमें बहियों (पुस्तकें) में रेखाओं के जगह पर सलें होती हैं जो स्तंभों का कार्य करती हैं।
- इस पद्धति में कुल 8 सलें होती है जिसमें शुरुआत के 4 सलें क्रेडिट साइड की ओर और दूसरी चार सलें डेबिट साइड की ओर होती हैं।
- बहियों में प्रवृष्टियाँ Blue और Red स्याही के जगह पर प्रायः Black स्याही से की जाती हैं।
- इसमें प्रत्येक पक्ष का प्रथम खाना ‘सिरा’ और बाकी के शेष ‘पेटा’ के नाम से जानते हैं।
- इसमें लेखा हिंदी, गुजराती, पंजाबी, मराठी आदि कोई भी भारतीय भाषा में किया जा सकता हैं।
- पुस्तक के पन्नों में दिनांक लिखने के लिए अलग से कोई स्तम्भ नहीं होता हैं। प्रारंभिक लेखों की बहियों में प्रत्येक लेन-देन का पूरा- पूरा Narration दिया जाता हैं।
- इसमें कच्ची और पक्की दो बहियों का उपयोग होता हैं।
भारतीय लेखांकन प्रणाली के गुण/लाभ
इस प्रणाली की सबसे बड़ी लाभ यह है कि इसमें हिसाब किताब लिखने के लिए भारतीय भाषाओं का प्रयोग किया जाता हैं।
- यह बही अन्य बहियों की तुलना में काफी सस्ती होती हैं।
- इसमें Voucher रखने की आवश्यकता नहीं होती हैं। प्रविष्टि करते समय विस्तृत विवरण साथ में ही लिख दिया जाता हैं।
- यह प्रणाली इतना आसान है कि एक सामान्य व्यक्ति भी इसे कर सकता हैं और बहुत ही आसानी से समझ भी सकता हैं।
- अधिक बहियां रखने की आवश्यकता नहीं होती हैं।
- इसमें रखी जाने वाली पुस्तकें बहियां कहलाती है जो सफेद या बदामी मोटे कागज की होती हैं।
भारतीय बहीखाता प्रणाली के लोकप्रियता के कारण
- इसकी सबसे अधिक लोकप्रियता का कारण अपनी मातृभाषा में हिसाब-किताब रखना हैं।
- यह बहुत ही सरल एवं बोधगम्य हैं।
- यह अधिक खर्चीला नहीं है एक सामान्य बुद्धि का व्यक्ति इसका इस्तेमाल कर सकता है।
- इसमें व्यापार के प्रकार एवं आकार के अनुसार बहियों को रखा जा सकता हैं।
- यह एक तरह से लचीला प्रणाली है अर्थात इसको अपनी आवश्यकता के अनुसार घटाया- बढ़ाया जा सकता हैं।
- भारतीय भारतीय बहीखाता प्रणाली के दोष
- यह प्रणाली अंग्रेजी बहीखाता प्रणाली की तुलना में कम विकसित हैं।
- इस समय में यह प्रणाली काफी पुरानी लगती है।
- सहायक बहियों में लेन देन लिखने में अधिक समय की बर्बादी होती है।
- इस पद्धति की सबसे बड़ी दोष यह है कि इसमें हुंडी खाता नहीं रखा जाता जिससे हुंडी के सौदों का सही पता नहीं लग पाता हैं।
- पूंजीगत तथा आयगत दोनों मदो में अंतर नहीं किए जाने के कारण लाभ की जानकारी नहीं की जा सकती है।
भारतीय बहीखाता प्रणाली के चरण
जिस तरह से अंग्रेजी पद्धति अर्थात दोहरा लेखा प्रणाली में चरण होते हैं ठीक वैसे ही भारतीय लेखांकन प्रणाली के भी 3 चरण होते हैं-
- प्रारंभिक लेख की बही Books of Original Entry
- खाताबही Ledger
- सारांश Summary
1. प्रारंभिक लेख की बही – व्यापार में जो वित्तीय रूप से सबसे पहले लेनदेन होते हैं उनको जिस पुस्तक में लिखा जाता है उसे ‘प्रारंभिक लेखे की पुस्तक’ कहा जाता हैं। इसका एक अन्य नाम जर्नल हैं। इसमें निम्न को शामिल किया जाता है-
- बंद बही
- नकल बही
- रोकड़ बही
- अन्य बही
बंद बही क्या हैं | Rough Book In Hindi
बंद बही एक हिंदी शब्द है जिसको अंग्रेजी मे ‘Rough Book’ कहते हैं। यह बही सादे कागज की होती है इसमें लेखा केवल याद रखने के लिए किया जाता है। एक व्यवसाय में जैसे ही कोई वित्तीय लेन-देन होता है उसको तुरंत इस पुस्तक (बही) में लिख दिया जाता हैं। इसमें दो पक्ष होते हैं – डेबिट व क्रेडिट ।
उदाहरण– एक व्यक्ति के द्वारा व्यवसाय के सारे सौदों को याद रख पाना संभव नहीं है इसके लिए यह आवश्यक है कि वह उन सभी लेनदेन को एक पुस्तक में लिख लें यही पुस्तक वह जो इस्तेमाल करता है बंद बही होता हैं।
नकल बही की परिभाषा
अक्सर छोटे व्यापारी तथा नकद सभी तरह के सौदों का लेखा अपने रोकड़ बही में करते हैं लेकिन बड़े बड़े व्यापारियों के यहां सौदों की संख्या अधिक होती है जिस कारण से सभी लेनदेन को रोकड़ बही में लिखना संभव नहीं होता हैं। इस प्रकार से बड़े व्यापारी उधार लेन देन का लेखा करने के लिए अलग-अलग बहियों का प्रयोग करते हैं जिन्हें ‘नकल बही’ कहा जाता हैं।
इसके अंतर्गत निम्न को शामिल किया जाता है – नाम नकल बही, जमा नकल बही और खुदरा नकल बही ।
नाम नकल बही
इस बही का प्रयोग उधार विक्रय किए गए माल का लेखा करने के लिए किया जाता है यह बही बड़े व्यापारियों द्वारा इस्तेमाल की जाती है जिनके यहां माल के उधार विक्रय संबंधित लेनदेन की संख्या अधिक होती है।
जमा नकल बही
माल के उधार क्रय का लेखा करने हेतु जो बही प्रयोग में लाई जाती है उसे ‘जमा नकल बही’ कहते हैं इसमें लेखा प्राप्त बीजको की सहायता से किया जाता है अतः इसे बीजक बही के नाम से भी हम जानते हैं।
खुदरा नकल बही -यह नकल बही दो तरह की होती है क्रय वापसी बही और विक्रय वापसी बही।
कच्ची रोकड़ बही – प्रारंभिक लेखे की बहियों में कच्ची रोकड़ बही सबसे अधिक महत्वपूर्ण वही हैं। इस बही में रोकड़ से संबंधित सभी लेन- देनों का लेखा किया जाता हैं। यह छोटे सभी व्यापारी द्वारा उपयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है।
पक्की रोकड़ बही– पक्की रोकड़ बही कच्ची रोकड़ बही का संक्षिप्त एवं स्वच्छ रूप होता हैं। यह कच्ची रोकड़ बही की सहायता से तैयार की जाती हैं। पक्की रोकड़ बही प्रतिदिन ना लिखी जाकर साप्ताहिक लिखी जाती है।
भारतीय बहीखाता प्रणाली और दोहरा लेखा प्रणाली में क्या अंतर हैं
- भारतीय बहीखाता केवल भारत के लोगों द्वारा ही इस्तेमाल में लाया जाता है जबकि दोहरा लेखा प्रणाली को पूरे विश्व के लोग इस्तेमाल में लाते हैं।
- इसमें नकद सौदों का लेखा दो बार किया जाता है एक बार कच्ची रोकड़ बही में और दूसरी बार पक्की रोकड़ बही में जबकि दोहरा लेखा प्रणाली में सभी नगद लेनदेन को केवल एक ही बार रोकड़ बही में किया जाता हैं।
- इसमें खतौनी करते समय बही के खाते में क्रेडिट की प्रवृष्टियाँ क्रेडिट पक्ष में तथा डेबिट की प्रविष्टियां डेबिट पक्ष में की जाती है जबकि Double Entry System में ऋणी पक्ष की प्रविष्टियां खाता बही में खातों में धनी पक्ष की ओर तथा धनी पक्ष की प्रविष्टियां ऋणी पक्ष की ओर की जाती हैं।
- इस पद्धति में आर्थिक वर्ष दशहरे से दशहरे या दीपावली से दीपावली के अनुसार रखा जाता है जबकि दोहरा लेखा प्रणाली में आर्थिक वर्ष सामान्यता 1 जनवरी से 31 दिसंबर व 1 अप्रैल से 31 मार्च तक रखा जाता हैं।
- भारतीय बही खाता प्रणाली में चिट्ठे में संपत्ति एवं दायित्व के लिखने का कोई क्रम नहीं होता है जबकि डबल एंट्री सिस्टम में चिट्ठे में संपत्ति एवं दायित्व को या तो स्थायित्व के क्रम में या तरलता के क्रम में लिखा जाता हैं।