आज के अर्थशास्त्रियों ने मूल्य निर्धारण के सामान्य सिद्धांत के आधार पर मजदूरी निर्धारण के सिद्धांत का प्रतिपादन किया हैं। इस आर्टिकल में आप मजदूरी के आधुनिक सिद्धांत क्या हैं या पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत मजदूरी का निर्धारण कैसे होता है या मजदूरी के मांग एवं पूर्ति के नियम किस प्रकार निर्धारित हो सकते हैं उसे जानेंगे । आइए पोस्ट में आगे बढ़ते हैं।
मजदूरी के आधुनिक सिद्धांत क्या हैं?
आधुनिक अर्थशास्त्री ने मूल्य निर्धारण के सामान्य सिद्धांत के आधार पर मजदूरी निर्धारण के सिद्धांत का संपादन किया हैं। उनके अनुसार मजदूरी निर्धारण के प्राचीन सिद्धांत त्रुटिपूर्ण हैं। प्राचीन सिद्धांतों में से किसी में श्रम की मांग पर जोर डाला गया है तो किसी में श्रम की पूर्ति पर।
आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार जिस प्रकार किसी वस्तु का मूल्य निर्धारण उस वस्तु की मांग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा होता हैं उसी प्रकार मजदूरी का निर्धारण श्रम की मांग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा होता है।
अतः जिस प्रकार वस्तु का मूल्य सीमांत उपयोगिता तथा सीमांत उत्पादन व्यय के बीच निर्धारित होता है उसी प्रकार मजदूरी श्रम की सीमांत उत्पत्ति तथा श्रम के सीमांत त्याग के बीच निर्धारित होता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि श्रम की मांग तथा श्रम की पूर्ति अथवा सीमांत उत्पादकता तथा सीमांत त्याग का क्या तात्पर्य हैं?
श्रम की मांग ( Demand for Labour )
श्रम की मांग का संबंध उत्पादक से होता हैं। कोई भी उत्पादक श्रम की मांग इसलिए करता है कि श्रम सम्पत्ति के उत्पादक का सक्रिय एवं सजीव साधन हैं और यह उत्पादन कार्य में सहायता प्रदान करता हैं।
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सीमांत उत्पादकता ( Marginal Productivity )
सीमांत उत्पादकता से तात्पर्य उस उत्पत्ति से है जिसका मूल्य श्रम को मिलने वाले पुरस्कार के बराबर होता हैं। उत्पादक किसी भी उत्पादन के क्षेत्र में श्रमिकों को उसी संख्या तक काम में लगाते हैं जहां पर उनसे प्राप्त उत्पत्ति का मूल्य उन्हें दिए जाने वाले पुरस्कार के बराबर हो जाता है।
मजदूरी का आधुनिक सिद्धांत
श्रम की पूर्ति का संबंध श्रमिकों की संख्या और उनकी कार्य क्षमता से हैं। मजदूरी की विभिन्न दरों पर श्रमिकों की विभिन्न संख्या काम करने को तत्पर रहती हैं, वह श्रम की पूर्ति कहलाती हैं। प्रायः अधिक मजदूरी की दर पर श्रम की पूर्ति भी अधिक होती है और कम मजदूरी की दर पर पूर्ति कम होती है परंतु किसी भी परिस्थिति में श्रमिक सीमांत त्याग से कम मजदूरी लेना नहीं चाहता
अर्थात श्रमिक अपने श्रम के प्रतिपादन में इतनी मजदूरी अवश्य चाहता है कि जिससे वह अपने पारिवार के सदस्यों एवं स्वयं की न्यूनतम जरूरतों को पुरा कर सके।
मजदूरी का निर्धारण ( Determination of Wages )
मजदूरी का निर्धारण सीमांत उत्पत्ति तथा सीमांत त्याग के बीच श्रम की मांग तथा पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा, उस मूल्य पर होता है जिस मूल्य पर श्रम की मांग और पूर्ति एक दूसरे के बराबर होती हैं। जिस मूल्य पर श्रम की मांग और पूर्ति संतुलन अवस्था में होती है उसी मूल्य पर मजदूरी का निर्धारण होता हैं। जैसा कि नीचे के चित्र में स्पष्ट किया गया हैं –
उपरोक्त तालिका द्वारा यह स्पष्ट होता है कि अधिक मजदूरी की दर पर श्रम की मांग कम होती और कम मजदूरी की दर पर अधिक । इसके ठीक विपरीत अधिक मजदूरी पर श्रम की पूर्ति अधिक होती है और कम मजदूरी दर पर कम।
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