मुद्रा उद्गम के सिद्धांत सभ्यता के साथ मुद्रा का विकास

मुद्रा का विकास कैसे हुआ इस पर प्रकाश डाल चुके हैं। आज के इस आर्टिकल में आप मुद्रा उद्गम के सिद्धांत, सभ्यता के साथ मुद्रा का विकास कैसे हुआ इस को समझेंगे.

मुद्रा उद्गम के सिद्धांत

मुद्रा उद्गम के मुख्यतः दो सिद्धांत हैं – a. आकस्मिक सिद्धांत b. आवश्यकताजन्य सिद्धांत

आकस्मिक सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार मुद्रा किसी व्यक्ति की खोज का परिणाम नहीं है बल्कि जैसे-जैसे लेन-देन बढ़ता गया वैसे-वैसे लोग किसी वस्तु को लेन-देन का माध्यम बनाते गए और सुविधा के अनुसार उस माध्यम में परिवर्तन भी होता चला गया । इस प्रकार मुद्रा का जन्म और प्रयोग स्वयं आरंभ हुआ और उसमें स्वयं ही परिवर्तन होता चला गया । इस सिद्धांत को स्पालि्डंग की सिद्धांत कहा जाता है।

आवश्यकताजन्य सिद्धांत – इसमें मुद्रा का जन्म और विकास स्वयं नहीं हुआ बल्कि उसका जन्म और विकास सजग और सचेष्ट व्यक्तियों द्वारा किया गया । जैसे-जैसे किसी प्रकार की मुद्रा में कठिनाइयों का अनुभव किया गया, वैसे-वैसे उसके स्वरूप को बदल दिया गया । इस प्रकार मुद्रा का उद्गम निश्चित प्रयासों का परिणाम है अचानक कोई घटना नहीं हैं। इस सिद्धांत को क्राऊथर की सिद्धांत कहा जाता है।

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सभ्यता के साथ मुद्रा का विकास कैसे हुआ ?

मानव सभ्यता के साथ-साथ मुद्रा का विकास हुआ । सभ्यता के अलग-अलग युगों में वस्तु विनिमय का उपयोग किया गया । नीचे युग दिए गए हैं जिसमें मुद्रा का विकास कैसे हुआ उसे बताया गया हैं।

आखेट युग –

इस युग में मनुष्य की आवश्यकता भोजन तक ही सीमित थी । उनका भोजन का मुख्य स्त्रोत जंगली जानवरों को मारकर उनका मांस खाना था। ऐसे ही वह अपना जीवन-यापन करते थे। जानवरों की खाल अर्थात चमड़ा को कपड़े के रूप में उपयोग करते थे । इसी कारण इस युग में खाल को विनिमय के माध्यम के रूप में प्रयोग किया गया । रूस में खाल ही प्रारंभिक अर्थात शुरुआती मुद्रा थी।

चारगाह युग –

चारगाह युग में पशु को पालतू बनाने का व्यापार शुरू हो गया था । इस युग में पशुओं का अत्यधिक महत्व था । इस युग में पशुओं को मूल्य मापक के रूप में मान्यता प्रदान की गयी। ग्रीक सभ्यता के शुरुआती काल में बैल को विनिमय का महत्वपूर्ण माध्यम माना जाता था। अलग-अलग देशों में गाय, बकरी, भेड़ आदि पशुओं को मुद्रा माने जाने के प्रमाण मिलते हैं।

कृषि युग (किसान युग) –

चारगाह युग के पश्चात जब चरवाहों ने एक स्थान पर स्थापित होकर खेती करना शुरू कर दिया तो मुद्रा के रूप में भी परिवर्तन होने लगा। शुरुआती में भूमि में केवल अनाज ही उत्पन्न होते । तब अनाज को मुद्रा के रूप में प्रयोग किया गया । अमेरिका के मैरीलैंड नामक प्रदेश में सन् 1732 में मक्का को कानूनी मुद्रा के रूप में घोषित कर दिया गया।

मशीनी युग –

18 वीं शताब्दी में मशीनों का प्रयोग बढ़ने लगा। मशीनों के प्रयोग ने धातु के प्रयोग को प्रोत्साहित किया और एक अकार, एक स्वरूप और एक वजन की सुंदर, सुडौल, धातु मुद्राएं उपयोग में आने लगी।

अलग-अलग देशों में लोहा, तांबा, शीशे की मुद्राएं उपयोग में की जाने लगी लेकिन इन धातुओं को मुद्रा के रूप में प्रयोग में लाने में काफी कठिनाइयों थी । यह धातु अत्यधिक वजन की होती थी। इन धातुओं की मुद्राओं को एक जगह से दूसरे जगह पर ले जाना संभव नहीं था। ले जाने में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था । इन धातु की मुद्राओं पर जलवायु का भी प्रभाव पड़ता था और इसमें जंग लगने का भी डर बना रहता था।

धीरे-धीरे इन धातुओं के जगह पर सोने-चांदी की मुद्राएं प्रयोग में लाए जाने लगी । इन धातुओं की मुद्राएं अधिक श्रेष्ठ थी क्योंकि इन दोनों धातुओं की मुद्राएं देखने में काफी सुंदर और आकर्षित होती थी और यह मूल्यवान होने के साथ-साथ कम जगह भी घेरते थे और इन पर जलवायु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था और ना ही इस में जंग लगने का डर रहता।

अलग-अलग देशों में सोने और चांदी की मुद्राएं बनाए जाने लगी विश्व के अलग देशों में आज भी सोने और चांदी की मुद्राओं को अधिक श्रेष्ठ समझा जाता है लेकिन इन दोनों की पूर्ति सीमित होने और मुद्रा की मांग में तेजी से वृद्धि होने के कारण आवश्यकता अनुसार पर्याप्त मात्रा में सोने और चांदी की मुद्रा उपलब्ध करा पाना संभव नहीं है, इसी कारण इन दोनों मुद्रा के स्थान पर पत्र मुद्रा का उपयोग शुरू हुआ।

पत्र मुद्रा किसे कहते हैं?

आज पत्र मुद्रा का जगह बैंक ने ले लिया है जैसे चेक, ड्राफ्ट आदि। पत्र मुद्रा के प्रयोग के बढ़ने के कारण कई कारण थे –

  • धातुओं की आवश्यकता कम हो गई
  • धातु मुद्रा के अपेक्षा पत्र मुद्रा बनाने का खर्चा भी कम होता हैं।
  • पत्र मुद्रा के चलन से धातुओं की घिसावट भी कम हो गए।
  • वजन में कम होने कारण पत्र मुद्रा को एक जगह से दूसरे जगह ले जाने में सुविधा होती।
  • इस मुद्रा के चलन से बैकिंग व्यवस्था मजबूत हुई और उसका विकास तेजी से हुआ।

इस प्रकार सभ्यता के विकास के साथ-साथ मुद्रा का विकास होता रहा है और मान्यताओं के अनुरूप ही उसमें परिवर्तन भी होता चला गया हैं।