मुद्रा का विकास

मुद्रा आज हमारे और आपके लिए कितना महत्वपूर्ण है इसे बताने की आवश्यकता नहीं है पर सवाल यह है कि मुद्रा का विकास कैसे हुआ होगा। आज के इस आर्टिकल में मुद्रा का विकास, वस्तु विनिमय पद्धति, गुण एवं लाभ तथा वस्तु विनिमय की कठिनाइयां कौन-कौन सी होती है उसे समझेंगे।

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मुद्रा का विकास कैसे हुआ ?

बहुत समय पहले की बात है मनुष्य की जरूरतें अत्याधिक सीमित थीं। उसे जो भी चीज की आवश्यकता पड़ती थी उसे वह स्वयं तैयार कर लेता , लेकिन समय धीरे-धीरे बीतता गया और मनुष्य की आवश्यकता बढ़ने लगी। अब मनुष्य के द्वारा अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए सभी वस्तुएं स्वयं बना पाना संभव नहीं था।

उसने यह महसूस (Feel) किया कि यदि वह कई वस्तुओं का उत्पादन करने के बजाय एक ही वस्तु का उत्पादन करें जिसमें उसकी पकड़ अच्छी हो तो उससे उसके श्रम तथा समय दोनों की बचत होगी ही । साथ ही वह अपने बनाए गए वस्तु अन्य उन व्यक्तियों को दे सकता हैं जिनकी उसकी वस्तु की आवश्यकता हो और उसके बदले अपनी आवश्यकता की वस्तु प्राप्त कर लेगा। इस प्रकार से विशिष्टकरण का युग प्रारंभ।

मनुष्य मात्र वही कार्य करने लगा जिसमें वह कुशलतापूर्वक सरलता से और कम समय में कर सकता था। वह अपनी आवश्यकता से अधिक उत्पादित वस्तुओं दूसरों को देकर अपनी आवश्यकता की अन्य वस्तुएं प्राप्त करने लगा। इस प्रकार वस्तु की अदला-बदली अर्थात वस्तु विनिमय प्रणाली की पद्धति प्रारंभ हुई।

वस्तु विनिमय पद्धति क्या हैं?

साधारण शब्दों में कहा जाए तो वस्तुओं/सामान को आपस में बदलने की प्रणाली को ही वस्तु विनिमय प्रणाली/पद्धति कहते हैं।

वस्तु विनिमय व्यवस्था के अंतर्गत अलग-अलग वर्गों के व्यक्ति अपने द्वारा उत्पादित अथवा निर्मित अपने उपभोग से बची अतिरिक्त वस्तुएं बाजार में ले जाते थे और उनके बदले अपनी आवश्यकता की वस्तुएं प्राप्त करते थे । जैसे कि अनाज के बदले दूध, दूध के बदले कंबल, कंबल के बदले घोड़ा, घोड़े के बदले कपड़ा आदि।

वस्तु विनिमय के गुण या लाभ

इसके गुण अथवा लाभ निम्नलिखित है –

  • दासता से मुक्ति
  • राष्ट्रीयता एकता को प्रोत्साहन
  • अधिकतम संतुष्टि की प्राप्ति
  • राष्ट्रीय आय में वृद्धि

दासता से मुक्ति

इस प्रणाली में व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार उत्पादन करने में स्वतंत्र था । अपने उत्पादन की वस्तु से वह अपनी आवश्यकता की अलग-अलग वस्तुएं प्राप्त कर सकता था। वस्तु विनिमय के प्रचलित न होने पर अर्थात सामूहिक उत्पादन में उसे उसी वस्तु को लेना पड़ता था जो उसे मजदूरी में मिलती थी।

राष्ट्रीयता एकता को प्रोत्साहन

वस्तु विनिमय के अंतर्गत उत्पादक को अपनी वस्तुओं के बदले में दूसरी वस्तुएं प्राप्त करने हेतु दूर-दूर जाना पड़ता था इससे विभिन्न क्षेत्रों में उसका पारस्परिक संपर्क बढ़ा और छोटी-छोटी सामाजिक इकाइयां बड़ी-बड़ी राष्ट्रीय इकाइयों में परिवर्तित होने लगीं।

अधिकतम संतुष्टि की प्राप्ति

वस्तु विनिमय द्वारा प्रत्येक उत्पादक अपनी अतिरिक्त वस्तुएं देकर बदले में अपनी आवश्यकता की वस्तुएं प्राप्त कर सकता था। इस प्रकार एक उत्पादों को अधिकतम उपयोगिता का लाभ भी प्राप्त होता था एवं अधिकतम संतुष्टि भी प्राप्त होती थी।

राष्ट्रीय आय में वृद्धि

इस प्रणाली के अंतर्गत व्यक्ति उसी वस्तु का उत्पादन करता था जिसके उत्पादन में वह अधिक माहारथी हो। विभिन्न व्यक्तियों द्वारा अपने-अपने क्षेत्र में कुशलता एवं निपुणता पूर्वक कार्य किए जाने के कारण सभी वस्तुओं का उत्पादन अपेक्षाकृत अधिक होता था जिससे उत्पादन तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती थी।

वस्तु विनिमय की कठिनाइयों

वस्तु विनिमय में निम्नलिखित कठिनाइयों को महसूस किया जाता था । जो कि नीचे की पंक्ति में इस प्रकार से दिया गया हैं –

  1. विभाजाकता का अभाव
  2. दोहरे संयोग का अभाव
  3. मूल्य हस्तांतरण की कठिनाइयां
  4. मूल्य के सर्वमान्य माप का अभाव
  5. संचय में कठिनाई

विभाजाकता का अभाव – वस्तु विनिमय में वस्तु ही विनिमय का माध्यम होता हैं। कई बार वस्तु के विभाजन की कठिनाई आ जाती है। यदि किसी व्यक्ति के पास एक बकरी हैं और वह उस बकरी के बदले में 2 बोरा गेहूं, एक रेडियो, मीटर कपड़ा और एक कुर्सी प्राप्त करना चाहता हैं और ये 4 वस्तुएं अलग-अलग लोगों के पास है तो ऐसी स्थिति में यदि वह बकरी के बदले में एक वस्तु लेता है तो वह वस्तु उसे मांगी तो पड़ेगी साथ ही वह अपनी अन्य तीन वस्तुओं से भी वंचित रह जाएगा।

लेकिन यदि वह बकरी को विभाजित करके भी अलग से प्राप्त करना चाहेगा तो बकरी का गुण ही समाप्त हो जाएगा। इस प्रकार वस्तु विनिमय में वस्तु के विभाजन की कठिनाई मौजूद रहती है।

दोहरे संयोग का अभाव – इस पद्धति (वस्तु विनिमय प्रणाली) के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपने अलावा अथवा कम आवश्यक वस्तु के लिए किसी ऐसे व्यक्ति को तलाश करना पड़ता था जिसे उस वस्तु की आवश्यकता हो जिसके पास देने के लिए उसकी आवश्यकता की वस्तुएं उपलब्ध हो।)

मूल्य हस्तांतरण की कठिनाइयां – वस्तु विनिमय में क्रय शक्ति का एक स्थान से दूसरे स्थान को हस्तांतरण करना संभव नहीं होता क्योंकि वस्तुओं का हस्तांतरण बहुत अधिक असुविधाजनक होता हैं जैसे – यदि कोई व्यक्ति दिल्ली में अपना मकान बेचकर उसका मूल्य बिहार ले जाना चाहता है तो उसे मकान के बदले अवश्य प्राप्त होगी इसे बिहार ले जाना उसके लिए कठिन एवं और असुविधाजनक होगा।

मूल्य के सर्वमान्य माप का अभाव – वस्तु विनिमय में मूल्य के एक सर्वमान्य माप का अभाव होता हैं। किसी एक सर्वमान्य माप के अभाव में दो वस्तुओं के बीच विनिमय अनुपात निर्धारित करना कठिन होता है।

संचय में कठिनाई – प्रत्येक मनुष्य अपनी आय का कुछ भाग भविष्य के लिए बचा कर रखना चाहता हैं। परंतु वस्तु विनिमय उसे कई कठिनाइयों का अनुभव कराती हैं। कई समान ऐसी होती है जो वर्षा, गर्मी, सर्दी और हवा के प्रभाव से खराब हो जाती हैं। जैसे चावल, गेहूँ, चाय आदि। इसलिए ऐसी वस्तुओं का संचार किया जाना लाभ कर नहीं रहता। वस्तुओं के संचय करने में अधिक स्थान की आवश्यकता पड़ती है अथवा वस्तु का संचय (Storage) करना बहुत अधिक मांगना पड़ता हैं।