भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के द्वारा साख नियंत्रण की कई सारी विधियां हैं जिसको जाना आपके लिए बेहद जरूरी हैं। रिजर्व बैंक की नीति का वर्णन करने से पहले आपको साख नियंत्रण व्यवस्था को समझना होगा ।
इस आर्टिकल में मैं आपको रिजर्व बैंक द्वारा साख नियंत्रण की नीतियों की व्याख्या कीजिए आदि को बताऊंगा।
साख नियंत्रण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
साख नियंत्रण एक हिंदी शब्द है जिसका अंग्रेजी Credit Control होता हैं यह एक ऐसा प्रक्रिया होता है जिसके द्वारा RBI अलग-अलग प्रकार के बैंकों के द्वारा अपने ग्राहक को दिए जा रहे Loan को तथा बैंकों के द्वारा RBI से लिए जा रहे Loan को नियंत्रित करता हैं।
इस साख नियंत्रण व्यवस्था को साख अनुमोदन योजना (CAS) की समाप्ति के बाद 10 अक्टूबर 1988 से साख नियंत्रण व्यवस्था (Credit Monitoring Arrangement – CMA ) लागू की गयी ।
रिजर्व बैंक द्वारा साख नियंत्रण के नीतियों की व्याख्या कीजिए
इसके नीतियों की व्याख्या निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है जो कि नीचे की पंक्ति में इस प्रकार से दिए जा रहे हैं –
- मुद्रा नियंत्रण (Currency Control)
- साख पर नियंत्रण (Credit Control)
मुद्रा नियंत्रण (Currency Control) को परिभाषित कीजिए
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) केंद्रीय बैंक होने के कारण इसका यह कर्तव्य बनता है कि वह मुद्रा और साख दोनों की निकासी (Withdrawal) पर समुचित नियंत्रण व्यवस्था रखें। मुद्रा के नियंत्रण में साधारणतया पत्र मुद्रा एवं सिक्कों का नियमन किया जाता हैं। कागज के नोटों की निकासी पर रिजर्व बैंक का ही अधिकार होता हैं।
नोटों के जारी के लिए रिजर्व बैंक का एक अलग विभाग हैं। कागजी नोटों के पीछे रिजर्व बैंक सोने, सोने के सिक्कों, विदेशी मुद्राएं, स्टर्लिंग प्रतिभूतियां, रुपये की प्रतिभूतियां तथा सरकारी हुण्डियों की आड़ रखती हैं। इस आड़ की मात्रा को घटा-बढ़ाकर रिजर्व बैंक पत्र मुद्रा की मात्रा में परिवर्तन कर सकती हैं।
यदि RBI पत्र मुद्रा की मात्रा को बढ़ाना चाहता है तो वह अपने अधिकोष विभाग में से रुपये की प्रतिभूतियां तथा विदेशी प्रतिभूतियां अथवा दोनों निर्गमन विभाग को हस्तांतरित कर देता हैं। तब निर्गमन विभाग हस्तांतरित प्रतिभूतियों के मूल्यों के बराबर कर देता हैं।
साख पर नियंत्रण (Credit Control)
साख नियंत्रण हेतु रिजर्व बैंक वे समस्त उपाय करती है जो प्रत्येक केंद्रीय बैंक को करने पड़ते हैं। रिजर्व बैंक साख व्यवस्था पर नियंत्रण करने के लिए निम्न स्त्रोतों का प्रयोग करती हैं।
(RBI) रिजर्व बैंक द्वारा साख नियंत्रण के नीतियों की व्याख्या कीजिए
उपयुर्क्त पंक्ति में आपने जाना कि रिजर्व बैंक द्वारा साख नियंत्रण की नीतियां दो (Two) हैं। मुद्रा नियंत्रण एवं साख पर नियंत्रण। रिजर्व बैंक साख व्यवस्था पर नियंत्रण करने के लिए निम्न स्रोतों का प्रयोग कर सकता हैं –
- Quantitave Methods of Credit Control
- Qualitative Method of Credit Control
Quantitave Methods of Credit Control
इसके अंतर्गत निम्नलिखित को शामिल किया गया हैं –
- नगद कोष (cash fund)
- बिल बाजार योजना (bill market scheme)
- खुले बाजार कि क्रियाएं (open market operations)
- बैंक दर (Bank rate)
नगद कोष (cash fund)
रिजर्व बैंक को अन्य केंद्रीय बैंक की तरह अन्य बैंक की जमा राशि पर नियंत्रण करने का भी अधिकार दिया गया हैं। प्रत्येक सदस्य बैंक की मांग देनदारी का 5% तथा समय देनदारी का 2% नगद कोष हर समय रिजर्व बैंक के पास रखना पड़ता है। किंतु बाद में देश में मुद्रास्फीति को रोकने तथा साख के अत्यधिक प्रसार को कम करने के लिए 1981 में इसे बढ़ाकर 8% कर दिया। पुनः 1982 में इसे घटाकर 7.25 % कर दिया गया।
बिल बाजार योजना (bill market scheme)
इस योजना के अंतर्गत रिजर्व बैंक सदस्य बैंकों को पूर्व निश्चित शर्तों पर बिल तथा प्रतिज्ञा पत्रों के आधार पर एक समय में कम से कम ₹ 10 लाख का Loan देता हैं। इस प्रकार के बिल बाजार के निर्माण हेतु रिजर्व बैंक ने सदस्य बैंकों को यह लालच दिया कि वह Loan को बैंक दर से एक बट्टा दो (1/2) प्रतिशत कम पर ही ले सकेंगे।
खुले बाजार कि क्रियाएं (open market operations)
खुले बाजार की क्रियाओं का मतलब यह होता है कि केंद्रीय बैंक जनता से सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करने लगती है और उस पर से जनता के साथ सीधे व्यवसाय ना करने का प्रतिबंध हटा लिया जाता हैं।
बैंक दर (Bank rate)
बैंक दर वह दर होता है जिस पर रिजर्व बैंक अन्य बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों के आधार पर Loan देता हैं अथवा जिस दर पर वह व्यापारिक बैंकों के प्राथमिक श्रेणी के बिलों की पुनः कटौती करता हैं। बैंक दर नीति द्वारा साख नियंत्रण तभी प्रभावशाली होता है जब कि देश की बैंकिंग संस्थाएं आर्थिक संकट के समय अपने Loan के लिए अथवा Bills की पुनः कटौती के लिए देश के केंद्रीय बैंक पर पूर्णरूपेण आश्रित होते हैं।
Qualitative Method of Credit Control
इसके अंतर्गत निम्नलिखित को शामिल किया गया हैं –
- प्रत्यक्ष व्यवहार
- प्रत्यक्ष कार्यवाही
- प्रशासन तथा नैतिक प्रभाव की नीति
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