उत्पत्ति ह्रास नियम Law Of Diminishing Returns In Hindi

हेलो स्टूडेंट एक और नये पोस्ट में आपका स्वागत हैं। इस पोस्ट में आप उत्पत्ति ह्रास नियम के बारे में जानेंगे यानी कि नियम की परिभाषा तथा व्याख्या, उदाहरण, नियम का क्षेत्र आदि । आइए शुरू करते हैं।

उत्पत्ति ह्रास नियम से आप क्या समझते हैं?

उत्पत्ति ह्रास नियम यह जानकारी देता है कि यदि किसी एक उत्पत्ति के साधन की मात्रा को स्थिर रख दिया जाए एवं अन्य साधनों की मात्रा में उत्तरोत्तर बढ़ोतरी की जाए तो एक निश्चित बिंदु के बाद उत्पादन में घटती दर से वृद्धि होती है।

यह उपर्युक्त परिभाषा जॉन रॉबिंसन के शब्दों में दिया गया है।

उत्पत्ति ह्रास नियम अल्पकालीन उत्पादन फलन का तृतीय नियम है लेकिन आज के अर्थशास्त्री अल्पकालीन फलन के इन तीनों नियमों को उत्पत्ति का एक ही नियम मानते हैं। जिससे ‘परिवर्तनशील अनुपात’ के नाम से भी जाना जाता हैं।

नियम की परिभाषा तथा व्याख्या

जिस प्रकार उपभोग में उपयोगिता का क्रमागत ह्रास नियम एक आधारभूत नियम है उसी प्रकार उत्पत्ति के क्षेत्र में उत्पत्ति का क्रमागत ह्रास नियम भी एक आधारभूत नियम हैं। जो प्रत्येक प्रकार की उत्पत्ति पर लागू होता है।

अर्थशास्त्र में इस नियम का सबसे अधिक महत्व कृषि, उद्योग, खान खोदने अथवा अन्य किसी प्रकार की उत्पत्ति क्यों ना हो, उत्पत्ति की मात्रा को बढ़ाने का प्रश्न आता हैं। उस समय व्यवस्थापक उत्पत्ति के विभिन्न साधनों की अतिरिक्त इकाइयों प्रयोग में लाता हैं। इस प्रकार विभिन्न साधनों की मात्रा में वृद्धि करने से कुल उत्पत्ति की मात्रा में भी वृद्धि होती हैं। वह सदैव समान अनुपात में नहीं होती हैं। साधारणतया उत्पत्ति की मात्रा घटती हुई दर से वृद्धि होती है।

मार्शल के शब्दों के अनुसार – यदि कृषि के तरीकों के साथ उन्नति नहीं हो तो भूमि पर उपयोग की गई पूंजी और श्रम की मात्रा में वृद्धि होने से सामान्यतया कुल उपज में अनुपात से कम वृद्धि होती है।

माल्थस के अनुसार –

माल्थस ने अपने जनसंख्या के सिद्धांत का प्रतिपादन करने से पहले ही इस नियम का कृषि पर क्रियाशील होने की बात को पहचान लिया था। क्योंकि वह नियम माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत का मुख्य आधार हैं। आजकल के विद्वान तो यह नियम मानते हैं कि चाहे किसी भी प्रकार की उत्पत्ति क्यों ना हो किसी सीमा पर पहुंचकर यह नियम अवश्य लागू होने लगता है।

कृषि के विषय में यह नियम बताता है कि यदि कोई किसान अपनी भूमि से अधिक उपज पैदा करना चाहता है तो वह उसी भूमि पर श्रम और पूंजी की अधिक इकाइयों का प्रयोग करता है अर्थात कि वह अधिक मात्रा में खाद, बीज आदि का प्रयोग करता है तथा स्वयं इकाई का भी प्रयोग बढ़ाता है। ऐसा करने से उपज में वृद्धि तो अवश्य होती है लेकिन अनुपात से कम होती हैं।

यदि वह श्रम और पूंजी की मात्रा दोगुनी कर देता है तब उसके परिणाम स्वरुप फसल दुगुनी पैदा नहीं होती बल्कि दुगुने से भी कम होती है और जैसे-जैसे वह अधिक मेहनत और पूंजी का प्रयोग करता जाता हैं। कुल उपज के वृद्धि अनुपात से कम होती जाती है। यही ह्रास नियम की प्रवृत्ति है कोई भी उद्योग इसके प्रभाव से बच नहीं सकता है।

उदाहरण –

मान लिया जाए किसी किसान के पास 10 एकड़ का जमीन है। जिसमें वह अधिक से अधिक अनाज उत्पन्न करना चाहता है। सबसे पहले वह ₹80 की पूंजी और दो श्रमिक लगाकर खेती करता है जिसकी लागत उसे ₹100 आती है और उसे पहली फसल से 10 मन गेहूं की उपज प्राप्त होती है।

₹100 की पूंजी और श्रम की ही एक इकाई मानकर अगली फसल पर वह पूंजी और श्रम की दो इकाइयों का प्रयोग करता है और उसे 18 मन गेहूं की उपज प्राप्त होती है। इसी प्रकार प्रत्येक अगली फसल पर वह पूंजी और श्रम की इकाई बढ़ा देता है। ऐसा करने से उसे लगातार 25, 31,36, 40, 43, 45 46 प्राप्त होती हैं। इस प्रकार कुल उपज में वृद्धि तो हुई लेकिन घटती हुई दर से हुई है अर्थात सीमांत उपज 10,8,7,6,5,4,3,2,1,0 मन हुई है जो कि निरंतर कम होती गई है जिसे आप नीचे के चित्र में देख पा रहे हैं –

नियम का क्षेत्र

#1खेती में उत्पत्ति ह्रास नियम

खेती की उपज को बढ़ाने के 2 तरीके हो सकते हैं।
विस्तृत खेती Extensive Cultivation
गहरी खेती Intensive Cultivation

विस्तृत खेती में भूमि की Extra इकाइयों पर खेती की जाती है लेकिन गहरी खेती में भूमि की दी हुई इकाइयों में पूंजी और श्रम की Extra इकाइयों का प्रयोग करके खेती की जाती हैं। विस्तृत खेती का क्षेत्र सीमित होता है क्योंकि भूमि की मात्रा भी सीमित होती है लेकिन गहरी खेती का रिवाज अधिक पाया जाता हैं। विशेषकर अधिक जनसंख्या वाले देशों में गहरी खेती का सहारा लेना पड़ता है।

#2मछली पकड़ने का व्यवसाय

मछली पकड़ने के उद्योग पर यह नियम जल्दी ही लागू होने लगता हैं। किसी समुंद्र, झील तथा तालाब में मछली की कुल मात्रा लगभग सीमित होती है। जैसे-जैसे पूंजी और श्रम की अधिका इकाइयों का प्रयोग करके अधिक मात्रा में मछली पकड़ने का प्रयास किया जाता हैं। वैसे-वैसे मछलियों की मात्रा में कमी होने लगती है और एक ऐसी भी स्थिति आती है जब सारे दिन की मेहनत के बाद भी बहुत थोड़ी मछली ही हाथ लगती है।

#3उद्योग धंधे पर नियम का लागू होना

बड़े पैमान की उत्पत्ति के कारण लागत में जो आंतरिक और बाहरी बचते प्राप्त होती है उनके फल स्वरुप उत्पत्ति ह्रास नियम उद्योग धंधों पर लागू नहीं होता। जिन उद्योगों में भूमि का मुख्य स्थान होता है वहां तो यह नियम लागू होता ही है किंतु जिन उद्योगों में पूंजी और श्रम की प्रधानता रहती है वह यह नियम लागू नहीं होता है।

#4खानों पर नियम का लागू होना

अर्थशास्त्र में खान भी भूमि के अंतर्गत ही आते हैं लेकिन किसान भूमि और खानों में अंतर होता है। खानों पर यह नियम शुरुआत से ही लागू होने लगता है। अधिक खनिज प्राप्त करने के लिए खानों को अधिक गहरा खोजना पड़ता है और ऐसा करने में उत्पादन व्यय अधिक आता हैं। इस प्रकार पूंजी और श्रम की प्रारंभ की इकाइयों से जितनी मात्रा में खनिज प्राप्त होती है उतनी बाद की इकाइयों से नहीं होती बल्कि वह क्रमशः घटती जाती है।