एकाधिकार से आप क्या समझते हैं | What Is Monopoly In Hindi

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एकाधिकार अर्थात् किसी वस्तु अथवा सेवा का मात्र एक उत्पादक होता है। यह शब्द अधिक महत्वपूर्ण है इसे जाना आपके लिए बेहद जरूरी हैं। इस आर्टिकल में एकाधिकार से आप क्या समझते हैं, एकाधिकार में मूल्य निर्धारित कैसे होता है आदि विषय के बारे में चर्चा की गई है।

एकाधिकार से आप क्या समझते हैं?

एकाधिकार एक अंग्रेजी शब्द Monopoly से मिलकर बना हुआ है जिसमें ‘Mono’ का अर्थ मात्र से और Poly का अर्थ विक्रेता से लगाया जाता है। इस प्रकार से Monopoly या एकाधिकार का अर्थ होता है एकमात्र विक्रेता अथवा Single Seller.

जब बाजार में किसी वस्तु अथवा सेवा का मात्र एक उत्पादक होता है तो उसे एकाधिकारी ( Monopolist ) कहा जाता है।

इस प्रकार एकाधिकार का अर्थ है एक ही उत्पादक द्वारा किया गया उद्योग अथवा एक ही विक्रेता द्वारा किया गया विक्रय ।

एकाधिकार के बारे में संक्षेप में लिखें ।

जब बाजार में किसी वस्तु अथवा सेवा का मात्र एक विक्रेता होता है तो उसे उस वस्तु या सेवा की पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण रहता है क्योंकि उसका कोई दूसरा प्रतियोगी नहीं होता हैं। प्रतियोगियों के अभाव में एकाधिकारी अपनी वस्तु का अपनी इच्छा से जो मूल्य चाहता है वह उस मूल्य को रखने के लिए आजाद रहता हैं।

इस प्रकार एकाधिकार पूर्ण प्रतियोगिता के विपरीत की बाजार स्थिति है क्योंकि पूर्ण प्रतियोगिता के बाजार में विक्रेताओं की संख्या अगणित रहती है और साथ ही उनमें प्रतियोगिता भी होती है। इसलिए कोई भी एक विक्रेता पूर्ण प्रतियोगिता के बाजार में वस्तु का मनचाहा मूल्य नहीं निर्धारित कर सकता।

साथ ही पूर्ण प्रतियोगिता के बाजार में किसी एक विक्रेता को वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण अधिकार अथवा पूर्ण नियंत्रण भी नहीं रहता हैं। इस प्रकार एकाधिकार की स्थिति पूर्ण प्रतियोगिता के विपरीत है। एकाधिकार जिस वस्तु का विक्रय करता है उसका विक्रय दूसरा उत्पादक नहीं कर पाता है।

उदाहरण के लिए प्रत्येक शहर में बिजली आपूर्ति तथा जल आपूर्ति की एक ही कंपनी होती है जो पूरे शहर भर में बिजली आपूर्ति का काम करती है उस शहर में बिजली की दूसरी कंपनी नहीं होती इसलिए बिजली कंपनी एकाधिकार की स्थिति में रहती है। इस प्रकार से जल पूर्ति की कंपनी भी एकाधिकार की स्थिति में रहती है क्योंकि जल आपूर्ति की भी एक ही कंपनी होती है।

एकाधिकार में मूल्य निर्धारित कैसे होता हैं?

एकाधिकार के मूल्य निर्धारण के संबंध में प्रो मार्शल और जॉन राविन्स के सिद्धांत एक जैसे नहीं है दोनों के सिद्धांत बिल्कुल अलग- अलग हैं।

प्रो मार्शल का सिद्धांत – एकाधिकार में मूल्य निर्धारण के संबंध में प्रो मार्शल ने जांच व भूल के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। उनका कहना है कि एकाधिकार अपने एकाधिकार लाभ को अधिकतम करने के लिए अपनी वस्तु के संबंध में दो बातों को जानना चाहता है और फिर जांच और भूल के आधार पर ऐसा मूल्य निर्धारित करता है जिससे उसे अधिकतम एकाधिकार लाभ की प्राप्ति हो।

एकाधिकार जिन दो बातों का जिक्र करता है वह निम्नलिखित हैं-

  • वह अपनी वस्तु की मांग की लोच जाना चाहता हैं।
  • वह उत्पादन व्यय जाना चाहता हैं।

उत्पादन व्यय की प्रवृत्ति को जानने के लिए उसे उत्पत्ति के नियमों को जाना पड़ता है। उसे यह जानने के लिए कि उत्पादन बढ़ाने से उत्पादन बढ़ता है या घटता है या समान रहता है उसे अलग-अलग क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम, क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि नियम, क्रमागत उत्पत्ति क्षमता नियम की जानकारी प्राप्त करके यह देखना पड़ता है कि उसके उत्पादन से उत्पत्ति का कौन सा नियम क्रियाशील होता है।

मांग की लोच और उत्पत्ति के नियम को जानकर वह जांच और भूल के आधार पर ऐसा मूल्य निर्धारित करता हैं जिसमें उसका एकाधिकार लाभ अधिकतम हो। एकाधिकार पूर्ति और मूल्य दोनों ही पर पूर्ण अधिकार रखता है परंतु मांग पर उसका कोई अधिकार नहीं है।

प्रो मार्शल के सिद्धांत की त्रुटियाँ

प्रो मार्शल के द्वारा प्रतिपादन एकाधिकार में मूल्य निर्धारण के उपरोक्त सिद्धांतों की आलोचना करते हुए जॉन रॉबिंसन ने कहा है कि मार्शल का सिद्धांत अवैज्ञानिक एवं त्रुटिपूर्ण हैं। जांच और भूल के आधार पर एकाधिकार बहुत सी परिस्थितियों में एकाधिकार लाभ नहीं प्राप्त कर सकता क्योंकि उसे निश्चित रूप से उस बिंदु का ज्ञान नहीं रहता जहां पर मूल्य निर्धारित करने से उसे अधिकतम मुनाफा भी प्राप्त होगा। इस सिद्धांत में अनिश्चितता और स्पष्टता पाई जाती हैं।

राबिन्स का सिद्धांत

रॉबिंसन के अनुसार एकाधिकारी का उद्देश्य “शुद्ध एकाधिकार आय” (Net Monopoly Revenue) प्राप्त करना अथवा अधिकतम मुनाफा प्राप्त करना रहता है या अधिकतम मुनाफा प्राप्त करना रहता हैं। यह अधिकतम आय तभी प्राप्त हो सकती हैं जब एकाधिकार उस बिंदु पर मूल्य निर्धारण करता है जहां उसकी सीमांत आय उसके सीमांत व्यय के बराबर हो जाती है इसलिए उनका कहना हैं

Monopoly Price = Marginal Revenue – Marginal Cost

रॉबिंसन का कथन है कि एकाधिकारी के लिए उस बिंदु पर मूल्य निर्धारित करना सबसे अधिक मुनाफा प्रदान करने वाला होगा जहां सीमांत आय और सीमांत व्यय बराबर है।

उनके अनुसार से मान लिया जाए कि एकाधिकारी ऐसा मूल्य रखता है जिसमें सीमांत आय सीमांत व्यय से अधिक है तो उसे अधिकतम मुनाफा नहीं मिलेगा। सीमांत आय जब सीमांत व्यय से अधिक है तो इसका अर्थ यह है कि एकाधिकार उत्पादन की मात्रा को बढ़ाकर अपनी आमदनी को बढ़ा सकता हैं।

यदि एकाधिकार मूल्य किसी कारणवश ऐसा हो कि सीमांत व्यय सीमांत आय से अधिक हो जाए तो ऐसी स्थिति में एकाधिकारी को मुनाफा की जगह पर घाटा होगा और वह उत्पादन की मात्रा को कम करेगा और वह उत्पादन की मात्रा उस समय तक काम करता चला जाएगा जब तक कि सीमांत व्यय सीमांत व्यय के बराबर न हो जाए।

इस प्रकार जब सीमांत आय सीमांत व्यय से अधिक हो तो उसे और मुनाफा प्राप्त करने का अवसर शेष हैं और सीमांत व्यय जब सीमांत आय से अधिक हो तो उसे मुनाफा की जगह पर घाटा होता है इसलिए उसके लिए अधिक लाभ प्रदान करने का बिन्दु वह है जहां सीमांत आय सीमांत व्यय के बराबर हैं।

एकाधिकार मूल्य का निर्धारण उसी बिंदु पर होता है जहां सीमांत आय सीमांत व्यय हो के बराबर होता हैं। इस प्रकार से

एकाधिकार मूल्य = सीमांत आय = सीमांत व्यय

Monopoly Price = Marginal Revenue = Marginal Cost.

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