अपने वश में रखने से काम मनचाहा होता है नियंत्रण किसे कहते हैं इस पोस्ट में पूरा विस्तार से चर्चा किया गया है एक अज्ञानी व्यक्ति को ही नियंत्रण समझ बैठा है जबकि यह सही नहीं होता है।
नियंत्रण की परिभाषा दीजिए
नियंत्रण से आश्य यह पता लगाने की प्रक्रिया है कि समस्त कार्य का निष्पादन निर्धारित प्रामाप (पैमाने) के अनुसार हो रहा है या नहीं । यदि नहीं तो उसके क्या कारण है और उसके लिए क्या सुधारात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।
इसकी परिभाषाएं कुछ विद्वानों द्वारा कुछ इस प्रकार से दिया गया है-
फेयोल के अनुसार – नियंत्रण से आश्य यह जांच करने से है कि क्या प्रत्येक कार्य स्वीकृत योजनाओं, दिए गए निर्देशों तथा निर्धारित नियमों के अनुसार हो रहा है या नहीं। इसका उद्देश्य कार्य की दुर्बलताओं तथा गलतियों को पता लगाना हैं।
टेरी – Control का अर्थ यह निर्धारण करना कि क्या किया जा रहा है अर्थात कार्यों का मूल्यांकन करना और आवश्यकता होने पर उनमें सुधार संबंधित कार्यवाही करना है ताकि योजना के अनुसार कार्य को संपन्न किया जा सके।
फिलिप कोटलर – यह वास्तविक परिणामों तथा इच्छित परिणामों दोनों को नजदीक लाने के लिए उठाया गया अहम कदम हैं।
नियंत्रण यह देखने की प्रक्रिया है कि वास्तविक कार्य का निष्पादन नियोजित कार्य के अनुसार किया जा रहा है या नहीं।
नियंत्रण की विशेषताएं एवं उद्देश्य
- नियंत्रण की निम्नलिखित मुख्य विशेषताएं हैं-
- नियंत्रण प्रबंध का एक आधारभूत कार्य हैं।
- यह हमेशा चलने वाली क्रिया है।
- नियंत्रण भविष्य के लिए होता है।
- यह प्रबंध के सभी स्तरों पर लागू होता हैं।
- परिणाम (Result) से संबंधित होता हैं।
- पीछे की ओर देखता हैं।
- यह एक गतिशील प्रक्रिया हैं।
नियंत्रण की आवश्यकता तथा महत्व एवं नियंत्रण की आवश्यकता प्रबंध के किस स्तर पर होती हैं या नियंत्रण के कोई चार महत्व लिखिए।
नियंत्रण प्रबंध का एक महत्वपूर्ण कार्य है इसके बिना कोई भी प्रबंध अपने कार्य को कुशलतापूर्वक नहीं कर सकता है। व्यापार में नियंत्रण के निम्नलिखित महत्व है-
संगठन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए – संस्था में योजना पर निगरानी के लिए नियंत्रण प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसके द्वारा विचलनओ (अंतरों) का शीघ्रता से पता लगाया जाता है और सुधारात्मक कार्रवायी की जाती है।
इस प्रकार नियंत्रण संस्था के उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायता करता है।
संसाधनों का कुशल उपयोग के लिए – नियंत्रण मानव संसाधन एवं भौतिक संसाधन का कुशल उपयोग को संभव बनाता है। इसमें यह देखा जाता है कि कोई कर्मचारी काम के प्रति लापरवाही तो नहीं कर रहा है साथ ही भौतिक संसाधनों के उपयोग में होने वाली बर्बादी को भी रोका जाता है।
प्रमाप (पैमाना) की शुद्धता जांचने के लिए – नियंत्रण में वास्तविक कार्य की तुलना निर्धारित प्रमाण से की जाती है इसमें यह देखा जाता है कि निर्धारित प्रमाप सामान्य प्रमाण से कम है या फिर अधिक।
जोखिम के प्रति सुरक्षा के लिए – नियंत्रण प्रत्येक क्रिया की विस्तृत जांच करता है दुर्बलता और गलतियों का पता लगाता है तथा उन्हें दूर करने का प्रयास करता है और नियंत्रण जोखिम से सुरक्षा प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण साधन हैं।
कार्य कुशलता में वृद्धि के लिए – संस्था में नियंत्रण होने से कर्मचारी निर्धारित अवधि में निश्चित कार्य निश्चित तरीके से करता है तथा उसके कार्य का सही ढंग से मूल्यांकन किया जाता है।
परिणामस्वरूप कर्मचारियों की कुशलता में वृद्धि होती हैं।
नियंत्रण की सीमाएं स्पष्ट कीजिए
इसकी सीमाएं निम्नलिखित है-
- यह एक खर्चीला प्रणाली हैं।
- जब सुधारात्मक कार्रवाई करना संभव न हो।
- नियंत्रण का प्रायः कर्मचारियों के द्वारा विरोध किया जाता है।
- नियंत्रण उस समय अप्रभावी हो जाता है जबकि व्यक्तिगत उत्तरदायित्व तथा जवाबदेही निर्धारित करना संभव न हो।
- बाहरी घटक जैसे सरकारी नीतियां, बाजार की परिस्थितियां, मांग में उतार-चढ़ाव आदि पर नियंत्रण स्थापित नहीं किया जा सकता है।
नियंत्रण प्रक्रिया के विभिन्न चरण या नियंत्रण प्रक्रिया
इस प्रक्रिया में निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैं जो इस प्रकार से नीचे दिए गए हैं-
प्रमाप का निर्धारण – नियंत्रण प्रक्रिया के प्रथम चरण में प्रमाण निर्धारित किए जाते हैं। इन्हीं प्रमाणों के आधार पर किसी कर्मचारी के कार्य की तुलना की जाती हैं।
वास्तविक कार्य का मूल्यांकन – नियंत्रण प्रक्रिया के द्वितीय चरण में वास्तविक कार्य का मूल्यांकन किया जाता है अर्थात इसमें यह देखा जाता है कि उस पर कितनी लागत आई है।
वास्तविक कार्य का प्रमाण से तुलना – अब नियंत्रण प्रक्रिया के इस तीसरे चरण में वास्तविक कार्य की तुलना निर्धारित प्रमाप से की जाती है तथा दोनों के बीच अंतर ज्ञात किए जाते हैं।
विचारों का विश्लेषण करना – नियंत्रण प्रक्रिया के चौथे चरण में अंतरों का विश्लेषण किया जाता है तथा विचलन के कारणों का पता लगाया जाता है।
सुधारात्मक कार्यवाही करना – इस प्रक्रिया के अंतिम चरण में सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है तथा ऐसा प्रयास किया जाता है कि भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति यानी कि दोबारा ना हो।
नियंत्रण की परंपरागत तकनीकों का वर्णन करें
व्यवसाय में नियंत्रण के लिए प्रबंध द्वारा अनेक विधियां प्राचीन काल से प्रयोग में लाई जा रही हैं जिसका आज भी महत्व है इसमें प्रमुख इस प्रकार से हैं-
बजटरी नियंत्रण – बजटरी नियंत्रण प्रबंधकीय नियंत्रण की सर्वाधिक लोकप्रिय प्रणाली है। इसमें पहले से तैयार किए गए बजट से वार्षिक परिणाम की तुलना की जाती है तथा विचलन होने पर सुधार के उपाय किए जाते हैं।
BEP (Break Even Point) – BEP प्रबंधकीय नियंत्रण में प्रयोग किया जाने वाला दूसरा तकनीक हैं। इस विधि में यह पता लगाया जाता है कि किस स्तर पर बिक्री करने से हानि होती है और किस स्तर के बाद लाभ होता है।
अतः जिस स्तर पर बिक्री करने से लाभ होता है और ना ही हानि उसी स्तर को ध्यान में रखकर नियंत्रण किया जाता है।
सांख्यिकी आंकड़े – इस विधि में व्यवसाय की विभिन्न क्रियाओं के संबंध में पिछले वर्षों के आंकड़ों के आधार पर तुलन किए जाते हैं और भविष्य की क्रियाओं के बारे में पूर्वानुमान लगाया जाता है।
व्यक्तिगत अवलोकन – नियंत्रण के इस विधि में प्रबंधक कर्मचारियों के कार्य स्थल पर जाकर उनके कार्यों का अवलोकन करते हैं तथा कर्मचारियों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल कर नियंत्रण का कार्य करते हैं।
आंतरिक अंकेक्षक – इस विधि में संस्था के कर्मचारी को आंतरिक अंकेक्षण के रूप में नियुक्त किया जाता है। यह अंकेक्षक वर्षभर संस्था के लेखों की जांच पड़ताल करते रहते हैं।
इस प्रकार आंतरिक अंकेक्षण संस्था के समस्त कारोबार पर नियंत्रण रखने में अपना महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
Conclusion :
इस प्रकार से आपने इस पोस्ट में नियंत्रण किसे कहते हैं और उससे संबंधित कई बातें आपने जाना। यह पोस्ट आपके लिए कितना यूज़फुल रहा हमें बताएं। अगर आपका कोई प्रश्न है या कुछ सुझाव देना चाहते हैं तो बेझिझक कमेंट करें।
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