निर्देशन के प्रमुख तत्व क्या हैं | Elements Of Directing In Hindi

निर्देशन प्रबंध का एक अहम अंग है। यह प्रबंध का चौथा अंग व कार्य हैं। Directing के कितने तत्व होते हैं इसका ज्ञान होना जरूरी है। यह चैप्टर Exam और Business दोनों दृष्टिकोण से अधिक प्रभावी हैं। आज के इस नई पोस्ट में आप निर्देशन के प्रमुख तत्व क्या है उसको पढ़ेगे और साथ ही इसके सभी तत्वों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

निर्देशन के प्रमुख तत्व क्या हैं

निर्देशन की विशेषताओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि निर्देशन कोई एक कार्य नहीं है बल्कि अनेक कार्यों का समूह है इस आधार पर Directing में निम्न तत्व शामिल किए जाते हैं –

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  1. पर्यवेक्षण (Supervision)
  2. नेतृत्व (Leadership)
  3. संदेश वाहन (Communication)
  4. प्रेरणा (Motivation)

निर्देशन के कितने तत्व होते हैं

इसका जवाब हैं चार। जो ऊपर दिए गए हैं।

पर्यवेक्षण से आप क्या समझते हैं

पर्यवेक्षण से आश्य एक ऐसी क्रिया से है जिसके अंतर्गत कोई एक व्यक्ति अपने अधीन कार्य करने वाले कर्मचारियों के कार्य की देखभाल करता है तथा उसका मार्गदर्शन करता है। स्पष्ट है कि कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाला कार्य की देखभाल करने की क्रिया को ही “पर्यवेक्षण” कहा जाता है।

पर्यवेक्षण की विशेषता

पर्यवेक्षण की निम्न विशेषताएं हैं-

  • यह निचले स्तर के कर्मचारियों से संबंधित होता है।
  • इसका कार्यरत कर्मचारियों से सीधा संबंध होता हैं।
  • पर्यवेक्षण में न्यूनतम अधिकार सत्ता होती है।
  • इसमें पर्यवेक्षक अपने से उच्च प्रबंध अधिकारियों के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
  • पर्यवेक्षण में अधीनस्थ कर्मचारियों का निर्देशन, नेतृत्व तथा अभिप्रेरण किया जाता है।
  • इसमें अच्छे मानवीय संबंधों की स्थापना पर बल दिया जाता है।

प्रबंध में पर्यवेक्षण का महत्व

आज के प्रतिस्पर्धा युग में व्यवसाय प्रबंध के क्षेत्र में प्रवचन का निम्नलिखित महत्व है-

संसाधनों का कुशलता उपयोग – पर्यवेक्षण में विभिन्न क्रियाओं पर लगातार निगरानी रखी जाती है। अतः उपलब्ध साधनों का कुशलतम उपयोग संभव बनाता है।

अभिप्रेरणा का स्रोत – पर्यवेक्षण में पर्यवेक्षक कर्मचारियों के विचारों एवं भावनाओं से पूर्व परिचित होता है। वह कर्मचारियों के गुणवत्ता एवं पूर्ण कुशलता के साथ उत्पादन करने के लिए प्रेरित करता है।

नियंत्रण में सहायक – इसमें पर्यवेक्षक अपने अधीनस्थों के काम पर नजदीक से नजर रखता है। जिस कारण कोई छोटी सी भी गलती होने पर तुरंत पता चल जाता है और सुधारात्मक कार्रवाई की जाती हैं। इस प्रकार पर्यवेक्षण से नियंत्रण में सहायता मिलती हैं।

कार्य का उचित विभाजन – पर्यवेक्षण में पर्यवेक्षक का सीधा संबंध होता है। परिणामस्वरूप इसमें कार्य का बंटवारा कर्मचारियों के अनुसार करता है। जो संस्था के उद्देश्य को पूरा करने में मदद करते हैं।

प्रबंध तथा कर्मचारियों के बीच की कड़ी – यह प्रबंध तथा कर्मचारियों के बीच की कड़ी होता है। कर्मचारियों की समस्याएं उच्च प्रबंध के आदेश एवं निर्देशों को कर्मचारी तक पहुंचाता है।

पर्यवेक्षक के कार्य ( Function Of Supervisor )

  1. पर्यवेक्षक मुख्य रूप से मानवीय तत्वों की व्याख्या करता है। अपने विभागीय कार्य से संबंधित सभी साधनों की व्यवस्था करना भी पर्यवेक्षक का कार्य है।
  2. पर्यवेक्षक अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को सौपें गए कार्यों को पूरा करने के लिए उन्हें अभिप्रेरित करते रहता है ताकि व्यवसायिक लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।
  3. अपने आदेशा अधीन विभागीय कार्यों पर नियंत्रण करना इसका अहम कार्य है।
  4. यह निम्न स्तर का प्रबंधक होता है इसलिए उसके लिए आवश्यक है कि वह अपने कार्यों का अध्ययन एवं विश्लेषण करें और यह निश्चित करें कि उसके दैनिक और साप्ताहिक कार्य कितना होगा।
  5. विभागीय सूचनाओं को एकत्र करना, सुरक्षित रखना और रिपोर्ट तैयार करना महत्वपूर्ण कार्य है।

निर्देशन एवं पर्यवेक्षण में अंतर

निर्देशन एवं पर्यवेक्षण में निम्नलिखित अंतर है –

अन्तर का माध्यम

परिभाषा– निर्देशन से आश्य अधीनस्थों का मार्गदर्शन करने से हैं। जिससे संस्था के द्वारा निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। पर्यवेक्षण से आश्य से कर्मचारियों को कार्य देने एवं देखने से है कि वह आदेश के अनुसार कार्य कर रहे हैं या नहीं।

आपसी संबंध – यह पर्यवेक्षण से संबंधित होता है। यह सीधे तौर पर कर्मचारियों से संबंधित होता है।

प्रकृति – इसकी प्रकृति अधिशासी होता है। इसकी प्रकृति कार्यकारी होता है।

नीतियों का निर्धारण– निर्देशन, उच्च स्तर के द्वारा नीतियों एवं नियमों को निर्धारित करता है और प्रत्येक कार्य इन्हीं नियमों तथा नीतियों के अनुसार किया जाता है।

इनका कार्य निर्धारित की गई नीतियों तथा नियमों को पूरा करना होता है।

प्रबंध के स्तर – यह प्रबंध के उच्च स्तर (Top Level) से संबंधित होते हैं।
यह निम्न स्तर ( Low Level) से संबंधित होते हैं। यह कर्मचारियों और उच्च प्रबंध के बीच की कड़ी है।

नेतृत्व से आप क्या समझते हैं

नेतृत्व से आशय किसी व्यक्ति विशेष के उस गुण से है जिसके द्वारा वह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को इस प्रकार प्रभावित करता है कि वह सामूहिक रूप से उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए स्वतः ही अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य करने में लग जाएं। किसी व्यक्ति के नेतृत्व की स्थिति केवल मनुष्य से संबंधित होती है वस्तुओं से नहीं।

अन्य परिभाषा

प्रक्रिया में प्रवेश करते समय अधिकारी वर्ग जो स्वरूप धारण करता है उसे “नेतृत्व” कहते हैं। यह वह गुण है जिसके द्वारा अनुयायियों के एक समूह से वंचित कार्य स्वेच्छा पूर्ण एवं बिना किसी दबाव के कराए जाते हैं।

नेतृत्व के मुख्य विशेषताएं

नेतृत्व की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • नेतृत्व के अनुयायियों का होना आवश्यक है। बिना इनके नेतृत्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।
  • कुशल नेतृत्व में नेता अपने अनुयायियों के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करता है जिससे उसके अनुयायी प्रेरणा प्राप्त करते हैं।
  • नेतृत्व सभी परिस्थितियों में अपने अनुयायियों के कार्य के संबंध में उत्तरदायित्व वहन करते है क्योंकि सभी कार्य नेतृत्व के निर्देशन में ही किए जाते हैं।
  • यह अपने सदस्यों को लक्ष्य प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करता है।
  • एक नेतृत्व गतिशील प्रक्रिया है जो संस्था की स्थापना से लेकर उसके विद्यमान तत्व तक चलता रहता हैं।
  • यह अपने सदस्यों में कार्य की ओर बढ़ने की इच्छा जागृत करते हैं उन पर दबाव नहीं बनाते हैं।

नेतृत्व के लक्षण तथा प्रकृति

नेतृत्व यानी कि नेता। एक प्रभावी नेता के निम्नलिखित लक्षण एवं प्रकृति होते हैं –

  1. इस पर परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता है।
  2. एक नेता में चालाकी तथा दूसरों से काम करवाने की प्रकृति होता है।
  3. यह संस्था में ऐसे व्यक्ति होते हैं जो कंपनी के द्वारा निश्चित किए गए गोल को पूरा करने के लिए अपने अनुयायियों को प्रेरित करते हैं।
  4. एक संस्था की उन्नति भी एक अच्छे नेतृत्व पर निर्भर करता है।

लीडरशिप के महत्व

इसका महत्व विभिन्न क्षेत्रों में है। एक कंपनी कितना भी अच्छा कार्य क्यों ना करें अगर उसके अंतर्गत कार्यरत व्यक्ति में नेतृत्व का अभाव है तो कंपनी के कर्मचारियों मजदूरों को और अधिक कार्य करने के लिए अभिप्रेरित नहीं किया जा सकता हैं।परिणामस्वरूप कंपनी डूब जाएगा।

इसका महत्व प्रबंध के क्षेत्र में अधिक है

  1. यह अभिप्रेरण का एक मार्ग है इसकी जड़े मनुष्य के संबंधों से जुड़ी होती है। यह एक ऐसा गुण है जो व्यक्तियों के समूह के उद्देश्य एवं प्रयासों को एकता, शक्ति देता है।
  2. विभिन्न लोगों के बीच सहयोग का माध्यम है इसके कमी में कर्मचारियों में द्वेष की भावना जागृत होती है तथा छोटे-छोटे कार्यो को लेकर आपस में झगड़ा/विवाद उत्पन्न हो जाते हैं।
  3. संस्था की कामयाबी तथा नकामयाबी काफी हद तक नेतृत्व पर निर्भर करता है जहां तक एक कुशल प्रभावी नेता बिजनेस को सफलता की सीढ़ी चढ़ता है वहीं दूसरी ओर एक अकुशल नेता व्यवसाय के डूबने/समापन का कारण बनता है।
  4. एक कंपनी/संगठन में विभिन्न प्रकार के लोग कार्य करते हैं। प्रत्येक लोगों का पसंद, रूचि, कार्य, व्यवहार अलग- अलग होता है। एक प्रभावशाली नेता उनके व्यवहार में सुधार लाता है और उसे व्यवसाय के लक्ष्य की प्राप्ति की ओर लेकर आगे बढ़ता है।
  5. एक कुशल नेता का यह अहम महत्त्व है किसी व्यवसायिक उपक्रम में कार्य करने वाले कर्मचारियों को उसके उद्देश्यों के प्रति निष्ठावान बनाए रखना।

नेतृत्व की विभिन्न शैलियां क्या है, व्याख्या कीजिए

नेतृत्व के विभिन्न शैलियों को मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  1. Motivation leadership Style
  2. Power Based leadership Style
  3. Result Based leadership Style

ऊपर दिए गए तीनों शैलियों में से Power Based leadership Style के बारे में नीचे विस्तार से बताया गया हैं।

Power Based leadership Style (अधिकारात्मक नेतृत्व ) – इस शैली के अंतर्गत नेता द्वारा अपने सत्ता व अधिकार का प्रयोग किया जाता है। यहां सत्ता के प्रयोग से हमारा अर्थ यह नहीं है कि नेता अपने Followers पर हमेशा कोई दबाव रखता है। कहीं पर नेता अपने अधिकार का पूरा प्रयोग करता है तो कहीं पर वह उसका कुछ ही भाग उपयोग करता है और कहीं तो अपना अधिकार का बिल्कुल भी उपयोग नहीं करता है। नेतृत्व के इस शैली के कई रूप होते हैं

  • निरंकुश नेतृत्व शैली
  • जनतंत्रीय नेतृत्व शैली
  • स्वतंत्रता नेतृत्व शैली

निरंकुश नेतृत्व शैली से आप क्या समझते हैं

इस शैली का अन्य नाम leader Centred Style है। इसके अंतर्गत प्रबंधक सारे अधिकार अपने हाथों में केंद्रित रखता है। नेता अपने लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए डर और भय का माहौल बनाकर Motivate करते हैं। इसमें कर्मचारी की नौकरी व तरक्की सभी निरंकुश नेता की इच्छा पर निर्भर करता है।

निरंकुश नेतृत्व की विशेषताएं

  1. यह शैली नेता तथा अनुयायियों के बीच औपचारिक संबंधों का निर्माण करती है (औपचारिक संबंधों से आश्य संगठनात्मक ढांचे के अनुसार व्यक्तियों के संबंधों से हैं। संगठनात्मक ढांचे में बंधे रहकर ही एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से बातचीत कर सकते हैं।)
  2. नेतृत्व की इस रैली में प्रबंधक सारे निर्णय स्वयं अपनी इच्छा से ही लेता है।
  3. नेता अपना महत्व इस बात में समझता है कि जो कुछ बचा है वही काम उसी तरीके से होना चाहिए।
  4. इसमें प्रबंधक को जो अधिकार एवं दायित्व प्राप्त होते हैं। वह उन्हें किसी के साथ बांटने के लिए तैयार नहीं होता है।

जनतंत्रीय नेतृत्व शैली को परिभाषित करें

इस शैली का अन्य नाम Group Centred है। यह शैली वर्तमान में काफी अधिक प्रचलित है। इसके अंतर्गत सभी प्रकार के क्रियाओं से संबंधित निर्णय अकेले प्रबंधक के जगह पर कर्मचारियों के विचार-विमर्श, राय-विचार करके लिया जाता है।
यह शैली काफी अच्छा शैली है इसमें प्रबंधक अपने अधीनस्थों के सुझावों का आदर करने के साथ-साथ उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने का पूरा-पूरा प्रयास करते हैं।

जनतंत्रीय नेतृत्व शैली की मुख्य विशेषताएं

  • इसमें प्रबंधको तथा कर्मचारियों के बीच खुला संदेश वाहन होता है।
  • कर्मचारियों को आर्थिक तथा अनार्थिक दोनों तरीकों से Motivate किया जाता है।
  • प्रबंधकों द्वारा सभी निर्णय अधीनस्थों के सहयोग से लिए जाते हैं।
  • कर्मचारियों में सहयोग का माहौल पाया जाता है।

स्वतंत्र नेतृत्व शैली का अर्थ क्या है

इस शैली को निर्बाध स्वरूप के नाम से भी जानते हैं। स्वतंत्र से ही क्लियर है आजादी, मनचाहा स्वतंत्रता । इस शैली में प्रबंधक अथवा नेता Management संबंधित कार्यों में कम रुचि रखते हैं। अधीनस्थों को स्वयं के भरोसे छोड़ दिया जाता है। इस शैली को अपनाने से अधीनस्थों के ऊपर दबाव बिल्कुल नहीं होता है।

परिणामस्वरूप वे अधिक परिश्रम से कार्य करते हुए अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करते हैं। यह निरंकुश नेतृत्व शैली के बिल्कुल उल्टा हैं।

स्वतंत्र नेतृत्व शैली की विशेषता

  1. इस शैली में प्रबंध से संबंधित निर्णय प्रबंधकों के स्थान पर अधीनस्थों द्वारा लिए जाते हैं। वह प्रबंधकों से विचार विमर्श कर सकते हैं।
  2. प्रबंधक अपने अधीनस्थों में पूरा विश्वास रखते हैं तथा उनको बराबर का साझेदार समझते हैं।
  3. इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इसके अंतर्गत प्रबंधक अपने अधीनस्थों को योग्य, सक्रिय, जिम्मेदार व्यक्ति के रूप में देखता है और उन पर पूरा विश्वास रखता है।
  4. अधीनस्थों को अपने कार्य करने के लिए ज्यादा अधिकार देकर प्रोत्साहित किया जाता है।

Conclusion:

मेरे प्रिये रीडर मैं आशा करता हु की निर्देशन के प्रमुख तत्व मैंने काफी विस्तार से बताया हु। यह पोस्ट कैसा लगा अपना एक Feedback दे ।

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