प्रबंध के स्तर

काम छोटा हो या बड़ा हो , उसे करने के लिए एक स्तर बनाया गया होता है। ठीक उसी प्रकार से प्रबंध के कार्य में भी  प्रबंध के स्तर की आवश्यकता होती है । आज के इस पोस्ट में आप प्रबंध के स्तर को समझेंगे , प्रबंध के  कितने स्तर है या प्रकार और साथ ही मध्य  व  निम्न स्तर  प्रबंध के कार्य के बारे में जानेगे ।

प्रबंध के स्तर क्या है

प्रबंध के स्तर से आशय संगठन में विभिन्न पदों के बीच एक रेखा अंकित करने से है अर्थात यह एक प्रकार का ढांचा है जो यह स्पष्ट करता है कि किस अधिकारी की क्या स्थिति होगी, कौन किसको आदेश देगा तथा कौन किससे आदेश प्राप्त करेगा। प्रबंध के स्तरों की कोई निश्चित संख्या नहीं है।

और अधिक प्रबंध के स्तरों को समझाइएप्रबंध के स्तरों का विस्तृत अध्ययन करने से पूर्व संगठन के स्तरों की जानकारी परम आवश्यक है । एक संगठन में काम करने वाले सभी सदस्यों को दो भागों में बांटा जा सकता है –
1. प्रबंधकीय सदस्य Managerial Members
2. अप्रबंधकीय सदस्य Non-Managerial Members

1. प्रबंधकीय सदस्य Managerial Members
इस श्रेणी में मुख्य रूप से कार्यकारी अधिकारी (Chief Executive Officer), विभागीय प्रबंधक (Department Managers) , पर्यवेक्षक (Supervisor) आदि को शामिल किया जाता है ।

2. अप्रबंधकीय सदस्य Non-Managerial Members
इस श्रेणी में श्रमिकों को शामिल किया जाता है । यह वे सदस्य होते हैं जो संगठन में प्रत्यक्ष (Direct) रूप से काम करते हैं। जहां यह सदस्य काम करते हैं उसे ‘प्लेटफार्म क्षेत्र‘ (Platform Area) के नाम से जाना जाता है। यह संगठन में सबसे अंतिम कड़ी के रूप में काम करते हैं। इनका कोई अधीनस्थ नहीं होता और स्वयं कार्य करते हैं। इन्हें प्रबंधक नहीं बल्कि अप्रबंधकीय कर्मचारी कहते हैं।

 प्रबंध के  कितने स्तर है|प्रबंध के स्तर के प्रकार

मुख्य रूप से प्रबंध के स्तर को तीन भागों में बांटा गया है जो कि नीचे इस प्रकार से दिए गए हैं –

1. उच्च स्तरीय प्रबंध Top level management
2. मध्य स्तर प्रबंध Middle level management
3. निम्न स्तरीय प्रबंध Low level management

 

1.उच्च स्तरीय प्रबंध | Top level management in hindi

उच्च स्तरीय प्रबंध किसी भी संगठन का सर्वोच्च प्रबंध होता है । जिसका प्रमुख कार्य नीतियों , उद्देश्य एवं लक्ष्य का निर्धारण करना है । इसमें मुख्य रूप से संचालक मंडल एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी को शामिल किया जाता है। संस्था का संपूर्ण दायित्व उच्चस्तरीय प्रबंध के कंधों पर होता है। मुख्य कार्यकारी अधिकारी को कई नामों से जाना जाता है :जैसे – जनरल मैनेजर , अध्यक्ष आदि।

संचालक मंडल Board Of Directors – संचालक मंडल उद्देश्य निर्धारण, नीति निर्धारण , अवलोकन एवं नियंत्रण रूपी उचित प्रबंध का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसी के द्वारा कंपनी के उद्देश्य एवं दीर्घकालीन नीतियों का निर्धारण किया जाता है तथा साथ ही समग्र संगठन पर नियंत्रण भी रखा जाता है।

ई.एफ.एल ब्रेच (E.F.L.Brech) के अनुसार “संचालक मंडल का दायित्व नीति निर्धारण करना और संपूर्ण संगठन पर नियंत्रण रखना होता है । संचालक मंडल द्वारा किए जाने वाले कार्यों में मुख्य अधिशासी की नियुक्ति एवं उसका पारिश्रमिक निर्धारण करना, सामान्य कार्य संचालन एवं वित्तीय मामले , वित्त प्रबंध, संस्था के विकास हेतु कार्यशील पूंजी की मात्रा का निर्धारण एवं संगठन व सम्पूर्ण कंपनी का नियंत्रण आदि महत्वपूर्ण कार्य शामिल है।

 मुख्य कार्यकारी अधिकारी Chief Executive Managers – मुख्य कार्यकारी अधिकारी कंपनी संगठन में प्रबंध दल का नेता होता है । इस पद को कई नामों से जाना जाता है जैसे कि जनरल मैनेजर , महाप्रबंधक , अध्यक्ष आदि । इस पद पर आसानी से अधिकारी दिन प्रतिदिन के प्रशासन के लिए जिम्मेदार होता है। इसका प्रमुख कार्य संचालक मंडल द्वारा निर्धारित की गई नीतियों के क्रियान्वयन से संबंधित आवश्यक निर्देश जारी करना तथा उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु आवश्यक कार्यवाही करना होता है ।यह संचालक मंडल के पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण में कार्य करता है। इस प्रकार मुख्य अधिशासी संचालक मंडल व अधिकारियों के बीच एक पुल का कार्य करता है।

2.मध्य स्तरीय प्रबंध | Middle level management in hindi

मध्य स्तरीय प्रबंध उच्च स्तरीय प्रबंध एवं निम्न स्तरीय प्रबंध के बीच की कड़ी (Chain) होता है । इसका प्रमुख काम उच्च स्तरीय प्रबंध द्वारा निर्धारित उद्देश्य, लक्ष्य एवं नीतियों की व्याख्या करना है । साथ में इसका कार्य वास्तविक परिणामों पर नजर रखना एवं उसकी तुलना निर्धारित लक्ष्यों से करना है।

मध्य स्तरीय प्रबंधकों का कार्य सबसे कठिन होता है क्योंकि इन पर तीन ओर से दबाव रहता है ।जैसे- पहला दबाव उच्चस्तरीय प्रबंधक की ओर से होता है। वे चाहते हैं कि उनके द्वारा तैयार की गई नीतियों तथा दिए गए निर्देशों के अनुसार कार्य होना चाहिए जबकि दूसरा दबाव निम्नस्तरीय प्रबंधक की ओर से होता है वे चाहते हैं कि उनके सुझावों को लागू करके उनके साथ सहयोग किया जाए तथा तीसरा दबाव मध्य स्तरीय प्रबंधकों का स्वयं का होता है।सभी मध्य स्तरीय प्रबंधकों का एक-दूसरे से संबंध होता है और सभी एक – दूसरे से सहयोग चाहते हैं अर्थात विभाग से कोई सूचना को भेजनी है तो उम्मीद करते हैं कि इन कार्यों को अतिशीघ्र किया जाए ।

मध्य स्तरीय प्रबंध के मुख्य कार्य

1. उच्च स्तरीय तथा निम्न स्तरीय प्रबंध के मध्य कड़ी का काम करना एवं प्रभारी समन्वय स्थापित करना
2. संगठन के विभिन्न अंगों में प्रभावित संतुलन बनाए रखना
3. उच्च स्तरीय प्रबंध द्वारा निर्धारित लक्ष्य, उद्देश्य एवं नीतियों की व्याख्या करना
4. वास्तविक परिणामों पर नजर रखना एवं उनकी तुलना निर्धारित लक्ष्य से करना
5. उपयुक्त विभागों की स्थापना करना

 

3.निम्न स्तरीय प्रबंध |Low level management in hindi

यह प्रबंध के सबसे नीचे का स्तर होता है। इस स्तर को अलग-अलग नामों से जाना जाता है । परिचालन या अंतिम पंक्ति , निम्न स्तरीय प्रबंध। प्रबंध के इस स्तर में संयंत्र सुपरिटेंडेंट , फोरमैन पर्यवेक्षक आदि को शामिल किया जाता है। पर्यवेक्षक वर्ग प्रबंध की वह अंतिम कड़ी है जो प्रबंध की कर्मचारियों एवं गैर संबंध के कर्मचारियों में संबंध जोड़ता है। इस स्तर के अधिकारियों का प्रत्यक्ष संबंध उन कर्मचारियों से होता है जो कार्यों को संपन्न करते हैं।

R.C. Davis के अनुसार पर्यवेक्षकीय वर्ग प्रबंध से आश्य परिचालन नेतृत्व प्रदान करने वाले पदों से है जिन का कार्य मुख्य परिचालन कर्मचारियों की कार्यों का निरीक्षण तथा निर्देशन करना होता है। इस प्रकार इस स्तर के प्रबंधकों का मुख्य कार्य कार्यकारी कर्मचारियों की क्रियाओं के संपादन हेतु निर्देशन एवं निरीक्षण करना होता है ।

निम्न स्तर प्रबंध के कुछ कार्य

1. ऊंचे प्रबंध द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के अनुरूप दैनिक योजनाओं का निर्माण करना
2. कर्मचारियों का पर्यवेक्षण करना एवं उन पर नियंत्रण रखना
3. कर्मचारियों को कार्य सौंपना ,उन्हें प्रशिक्षित करने की व्यवस्था करना एवं उनका विकास करना
4. उत्पादन कार्य में लीन कर्मचारियों से प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित करना
5. अच्छे मानवीय संबंधों को स्थापित करने हेतु प्रयास करना व श्रमिकों में अनुशासन की भावना जागृत करना
6. कर्मचारियों का मूल्यांकन एवं उनकी कार्यकुशलता का मूल्यांकन करना व सुधारात्मक उपाय करना
7. कार्य की दशाओं में सुधार हेतु उच्च प्रबंध को आवश्यक सुझाव देना
8. प्रति घंटा परिणामों की जांच करना
9. कर्मचारियों के कार्य एवं उत्तरदायित्व को निर्धारित करना एवं उन्हें कार्य सौंपना
10. श्रमिकों को सलाह देना वह उनकी सहायता करना।