मूल्यांकन क्या हैं

मूल्यांकन शब्द का अर्थ अलग-अलग जगह पर होता है यहां संपत्ति एवं दायित्वों का मूल्यांकन से समझाया गया है। क्या आपने सोचा है संस्था के आर्थिक चिट्ठा में जो संपत्ति एवं दायित्वों का मूल्य लिखा गया होता है वह शत प्रतिशत सही होता है अगर आपका जवाब नहीं है तो संस्था की संपत्ति एवं दायित्वों का सही मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है।

मूल्यांकन का अर्थ क्या हैं?

संपत्तियों के मूल्यांकन से आश्य संस्था के लिए संपत्तियों की उपयोगिता ज्ञात करने से हैं। सामान्य तौर पर संपत्ति के मूल्य में से हृास (Depreciation) का मूल्य घटाकर मूल्यांकन किया जाता हैं। अगर हृास की राशि इसकी वास्तविक राशि से अधिक दिखाई गई हो तो संपत्ति का मूल्य इसकी वास्तविक उपयोगिता से कम होगा।

बाटलीय बॉय के शब्दों में ‘संपत्ति के सही मूल्य का अर्थ यह नहीं है कि यदि संपत्ति बेचने के लिए रखा जाए तो उसका मूल्य क्या मिलेगा। संस्था का बैलेंस शीट यह बताने के लिए नहीं होता की संपत्तियों को बेचकर प्राप्त राशि में से दायित्वों का भुगतान किया जाए बल्कि उसका उद्देश्य तो यह बताना होता है कि प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत में संस्था की पूंजी का विनियोग किस प्रकार से है।’

लंकास्टार के अनुसार “संपत्तियों के उपयोगिता काल में उनके प्रारंभिक मूल्यों को समान रूप से वितरित करने को मूल्यांकन (Valuation) कहते हैं।”

ऊपर दिए गए परिभाषाओं के आधार पर मुख्य बिंदु

  1. संपत्तियों का मूल्यांकन कुछ खास उद्देश्यों से किया जाता है।
  2. मान्य सिद्धांतों द्वारा निर्धारित मूल्य ही संपत्तियों का वास्तविक मूल्य होता है।
  3. संपत्तियों के मूल्यांकन का मतलब उनके विक्रय योग्य मूल्य से नहीं होता है।

 

मूल्यांकन का उद्देश्य क्या हैं

संपत्ति एवं दायित्वों के मूल्यांकन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  1. अंकेक्षण की संतुष्टि करना – एक अंकेक्षण यह प्रमाणित करता है कंपनी के द्वारा बैलेंस शीट में प्रस्तुत की गई संपत्ति और दायित्व का मूल्य सही है या नहीं। इसके लिए अंकेक्षण को स्वयं को संतुष्ट होना पड़ता है। अंकेक्षण को संतुष्ट करना मूल्यांकन का एक प्रमुख उद्देश्य होता है।
  2. कंपनी/संस्था की ख्याति का जानकारी होना – यह मूल्यांकन का दूसरा उद्देश्य है। संपत्ति और दायित्व का मूल्यांकन करके कंपनी की ख्याति का पता आसानी से लगाया जा सकता है। संस्था की ख्याति का पता लगाना मूल्यांकन का उद्देश्य हैं।
  3. पूंजी के निवेश के संबंध में जानकारी – एक संस्था अधिक लाभ कमाने व Grow करने के लिए अपना पूंजी विभिन्न- विभिन्न जगहों पर Invest किए रहती है। यह पूंजी किन-किन संपत्तियों में विनियोजित है। इसकी जानकारी के लिए विभिन्न संपत्तियों का मूल्यांकन करना आवश्यक है।
  4. संस्था के Balance Sheet के सही ज्ञान हेतु – संपत्ति और दायित्व के मूल्यांकन होने से इसके बारे में सही मूल्य की जानकारी होती है। जिससे संस्था का साख जनता, निवेशक, फाइनेंस कंपनी आदि के मन में अच्छा बना रहता है जो संस्था के ग्रोथ हेतु एक अच्छा संकेत माना जाता है।
  5. मूल्य में अंतर के कारणों का पता लगाना – कभी-कभी होता यूं है कि संपत्ति को किसी और मूल्य पर खरीदा जाता है और आर्थिक चिट्ठा में किसी और मूल्य पर दिखाया जाता है यानी कि खरीदा कम मूल्य पर जाता है और बैलेंस शीट में अधिक मूल्य पर दिखाया जाता है। इन्हीं मूल्यों के बीच अंतर को पता लगाना आवश्यक है और यह मूल्यांकन का अहम् उद्देश्य माना जाता है।

 

मूल्यांकन का महत्व

मूल्यांकन का महत्व निम्न हैं जो इस प्रकार से है-

  • अंकेक्षक मूल्यांकन के द्वारा अपने रिपोर्ट में यह सत्यापित करता है कि Balance Sheet में प्रस्तुत संपत्ति और दायित्व व्यवसाय की स्थिति को प्रदर्शित करते हैं।
  • यह सत्यापन के बिना अधूरा है।
  • अन्य शब्दों में मूल्यांकन के कारण ही कोई व्यक्ति अपने अंदर छिपी हुई प्रतिभा को जान पाता है।
  • मूल्यांकन सत्यापन ( Verification) का आधार होता है।

संपत्तियों के मूल्यांकन के संबंध में अंकेक्षक के कर्तव्य

अंकेक्षक मूल्यांकनकर्ता नहीं है फिर भी चिट्ठे में दिखाई गई विभिन्न संपत्ति व दायित्वों का सही ढंग से मूल्यांकन करना उसका कर्तव्य हैं। मूल्यांकन के कार्य की जांच करते समय अंकेक्षक को निम्न बातों पर ध्यान रखना चाहिए-

  • अंकेक्षक मूल्यांकनकर्ता नहीं है – अंकेक्षक मूल्यांकन करने वाला कोई विशेष व्यक्ति नहीं होता हैं। व्यवसाय की संपत्ति और दायित्व के मूल्यांकन की जिम्मेदारी व्यवसाय के प्रबंधकों का होता है जो संपत्ति एवं दायित्वों के बारे में विशेष जानकारी रखते हैं। यह तो केवल प्रबंधकों के द्वारा किए गए मूल्यांकन की सत्यता की जांच करते हैं।
  • मूल्यांकन के संबंध में न्यायाधीशों के निर्णय को देखना – मूल्यांकन का निरीक्षण करते समय अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि जिस संपत्ति के मूल्यांकन की वह जांच कर रहा है उसके संबंध में कोई निर्णय न्यायालय द्वारा तो नहीं मिला है और मिला भी है तो क्या संबंधित संपत्ति की दशा में उस निर्णय का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है।
  • संदेह की रिपोर्ट करना – जब अंकेक्षक को किसी प्रकार का संदेह लगे तो उसे जांच करना चाहिए तथा संदेह के संबंध में आवश्यक रिपोर्ट तैयार करना चाहिए।
  • मूल्यांकन के नियम की जांच – संपत्ति और दायित्व के मूल्यांकन करते समय नियमों को ध्यान में रखा गया है कि नहीं उसकी जांच करना। इन नियमों के अनुपालन में बार-बार परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
  • मूल्यांकन के औचित्य की जांच – अंकेक्षक मूल्यांकक नहीं है लेकिन मूल्यांकन से उसका घनिष्ठ संबंध होता हैं। यह मान्य है कि मूल्यांकन का कार्य प्रबंधकों व विशेषज्ञों का होता है अंकेक्षक का नहीं। मूल्यांकन के औचित्य की जांच करना अंकेक्षक का उत्तरदायित्व है।

Conclusion :

प्रिय पाठक आशा करता हूं कि आप को मूल्यांकन क्या है इससे संबंधित सारी बातें आपको बहुत ही अच्छे से समझ में आ गया होगा। यह आर्टिकल आपको कैसा लगा नीचे कमेंट में बताएं और इस पोस्ट को अपने पूरे ग्रुप में शेयर करें।

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