मूल्य अर्थात Price आप भी बाजार अवश्य गए होंगे । इसमें कोई पूछने की बात तो है नहीं । सामान खरीदते समय आप मूल्य (Price) शब्द का प्रयोग जरूर किए होंगे और करते भी होंगे। आखिर मूल्य शब्द का मतलब क्या होता हैं, मूल्य के निर्धारण करने की विधि कौन सी है या मूल्य संबंधित कुछ नियम भी होते हैं इत्यादि सभी जानेंगे ।
मूल्य से आप क्या समझते हैं?
मूल्य से आश्य माल की बिक्री के प्रतिफल से जो सदैव मुद्रा में होने चाहिए।
धारा 2(10) के अनुसार माल का हस्तांतरण यदि बिना उचित प्रतिफल के होता है तो वह Sell न होकर दान कहा जाता हैं। इसके अलावा यदि प्रतिफल मुद्रा में ना होकर किसी अन्य वस्तु में हो तो वह विक्रय या विक्रय का ठहराव ना होकर वस्तु विनिमय का ठहराव कहा जाता हैं।
मूल्य को कैसे निर्धारित किया जाता हैं?
यह काफी अहम सवाल है मूल्य निर्धारण । मूल्य विक्रय अनुबंध का आवश्यक तत्व होता है जिसके बिना मान्य अनुबंध का निर्माण नहीं हो सकता । यह या तो निश्चित होने चाहिए अथवा अनुबंध द्वारा निर्दिष्ट किसी रीति द्वारा निश्चित होने योग्य होने चाहिए । विक्रय अनुबंध की धारा 9 व 10 के अनुसार मूल्य निर्धारण के निम्नलिखित विधियां होती हैं जो नीचे के पंक्ति में इस प्रकार से दिए गए हैं –
- विक्रय अनुबंध द्वारा मूल्य निर्धारण
- मूल्य किसी निश्चित रीति द्वारा बाद में निश्चित होने के लिए छोड़ा जा सकता हैं
- पक्षकारों के पारस्परिक व्यवहार द्वारा
- उचित मूल्य
- किसी तीसरे पक्षकार द्वारा मूल्य का निर्धारण
- तीसरे पक्षकार की असमर्थता की दशा में
- क्षतिपूर्ति के लिए वाद
- भुगतान देश की प्रचलित मुद्रा में हो
विक्रय अनुबंध द्वारा मूल्य निर्धारण
साधारणतया किसी वस्तु का मूल्य क्या होगा और कितने में खरीदा और बेचा जाएगा दुकानदार (विक्रेता) और ग्राहक (विक्रेता) के बीच निश्चित किया जाता हैं। मूल्य निर्धारण की यह विधि सबसे अधिक पुरानी है ऐसी दशा में न्यायालय अथवा अन्य किसी को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है और ना ही यह जांच करने की आवश्यकता पड़ती हैं।
मूल्य किसी निश्चित रीति द्वारा बाद में निश्चित होने के लिए छोड़ा जा सकता हैं
उदाहरण के लिए अनुबंध के पक्षकार (अर्थात क्रेता, विक्रेता) यह निश्चय कर सकते हैं कि माल का मूल्य उतना होगा जितना कोई अन्य व्यक्ति उस माल के देने के लिए प्रस्तुत हो।
पक्षकारों के पारस्परिक व्यवहार द्वारा
यदि अनुबंध में कोई स्पष्ट मूल्य नहीं दिया गया है और ना उसमें मूल्य निर्धारण की कोई स्पष्ट रीति ही दी गई है तो ऐसी दशा में पक्षकारों के पारस्परिक व्यवहारों द्वारा मूल्य का निर्धारण किया जा सकता हैं।
उचित मूल्य
यदि उपरोक्त नीतियों के अनुसार मूल्य निर्धारण ना हुआ हो तो ऐसी दशा में क्रेता विक्रेता को उचित मूल्य देने के लिए बाध्य होता हैं। उचित मूल्य क्या हैं? यह तथ्य संबंधित एक ऐसा प्रश्न है जो प्रत्येक सौदों की परिस्थितियों पर निर्भर करता हैं।
किसी तीसरे पक्षकार द्वारा मूल्य का निर्धारण
Sell के अनुबंध में यह शर्त हो सकती है कि मूल्य का निर्धारण किसी तीसरे पक्ष द्वारा हो गया। ऐसी दशा में खरीदने वाला वह मूल्य देने के लिए बाध्य होता है जो कि एक तीसरे पक्षकार द्वारा निर्धारित किया गया हो।
तीसरे पक्षकार की असमर्थता की दशा में
यदि तीसरा पक्षकार माल के विक्रय का निर्धारण नहीं करता अथवा मूल्य निर्धारण करने में असमर्थ रहता है तो संपूर्ण अनुबंध ही व्यर्थ हो जाएगा।
क्षतिपूर्ति के लिए वाद
यदि तीसरा प्रकार जिसे मूल्य निर्धारित करना है खरीदने वाला अथवा बेचने वाले के दोष के कारण मूल्य निर्धारित करने से रोक दिया जाता है अथवा मूल्य निर्धारित नहीं कर पाता है तो निर्दोष पक्षकार के विरुद्ध क्षतिपूर्ति का वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।
भुगतान देश की प्रचलित मुद्रा में हो
क्रेता मूल्य का भुगतान विक्रेता को देश की प्रचलित मुद्रा में ही करने के लिए बाध्य हैं।