अगर आप लाभ के नवप्रवर्तन सिद्धांत के बारे में जानना चाहते हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए हैं और लाभ का नवप्रवर्तन प्रवर्तन सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया था उसे भी जानेंगे। चलिए इस आर्टिकल में आगे बढ़ते हैं।
लाभ के नवप्रवर्तन सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रतिपादन जोसेफ ए. शुम्पीटर ने किया हैं। शुम्पीटर के अनुसार लाभ उत्पादन की तकनीक में नवीन परिवर्तनों का कारण और परिणाम दोनों है।
इस प्रकार से लाभ का नवीन परिवर्तन का सिद्धांत क्लार्क द्वारा दिया गया है ‘लाभ का गत्यात्मक सिद्धांत के अनुरूप हैं। नवीन परिवर्तनों के क्रिया-कलाप में किसी नए विचार को ग्रहण करने के अलावा कुछ और भी शामिल होता हैं आर्थिक प्रगति में सहायक नवीन परिवर्तनों का ध्येय लाभ प्राप्त करना ही होता है।
जोसेफ ए. शुम्पीटर मत के अनुसार नवीन परिवर्तनों के कई स्वरूप हो सकते हैं। जैसे कि नवीन किस्म की मशीनों का इस्तेमाल करना, कारखाने के आकार में वृद्धि करना, बेचे माल के नए श्रोताओं का प्रयोग करना, वस्तु की श्रेणी अथवा गुण में परिवर्तन करना आदि।
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इस प्रकार जब उत्पादक द्वारा किसी नए परिवर्तन को अपनाया जाता है तो इसके फलस्वरूप साधनों का नवीन संयोग हो जाता है जिससे लागत व्यय में कमी होकर लाभ उत्पन्न होता हैं। जोसेफ ए. शुम्पीटर के मतानुसार लाभ ना तो उस साहसी को मिलता है जो कि नए परिवर्तन का अनुसंधान करता है और न उस साहसी को मिलता है जो नवीन परिवर्तन को कार्यान्वित करता है।
सिद्धांत की आलोचना
जोसेफ ए. शुम्पीटर महोदय का सिद्धांत भी प्रायः उन्हीं आलोचनाओं का शिकार बना जो क्लर्क महोदय के गतिशील सिद्धांत के विरुद्ध की गई थीं। इन आलोचनाओं में कुछ मुख्य है जो इस प्रकार से दिए गए हैं..
प्रथम : – आलोचकों के कथन के अनुसार यह सिद्धांत लाभ का कोई व्यापक स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं करता हैं। यह ठीक हैं कि नव- प्रवर्तन लाभ का कारण होते हैं, वह लाभ निर्धारित करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं लेकिन ऐसे कुछ तत्व भी है जो लाभ को प्रभावित करते हैं। यह सिद्धांत तत्वों के बारे में कुछ भी नहीं कहता हैं। यह केवल नव- परिवर्तनों में ही अपने आप को केंद्रित रखता है।
दूसरा : – यह सिद्धांत जोखिम उठाने को लाभ के लिए महत्वपूर्ण नहीं मानता। जोसेफ ए. शुम्पीटर ने यह माना था कि उद्यमकर्ता कभी भी जोखिम नहीं उठाते। यदि उद्यम असफल हो जाता है तो दुःख उसे होता है जिसने की साख खो दी हैं। इस प्रकार जोखिम पूंजीपति उठाता है ना कि उद्यम कर्ता। वास्तविक यह हैं कि पूंजीपति नहीं बल्कि उद्यम कर्ता ही जोखिम उठाते हैं।
तीसरा : – यह सिद्धांत उद्यमकर्ता के कार्यों के बारे में अत्यंत संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाता हैं। उद्यमकर्ता का कार्य केवल प्रर्वतनों का आविष्कार हैं। वह व्यापार के संगठन के साथ ही नवप्रवर्तन का कार्य करता हैं। यह दोनों कार्य मिलकर ही लाभ उत्पादन के आधार बनाते हैं। उद्यमकर्ता के द्वारा जो संगठनात्मक कार्य संपन्न किए जाते हैं उनका लाभ-प्राप्ति पर प्रत्यक्ष प्रभाव रहता है।