स्वर्ण मुद्रा मान

पिछले आर्टिकल में आपने स्वर्णमान स्वरूप (Gold Standard Form) को बहुत ही अच्छे से समझा। इस पोस्ट में आप स्वर्णमान के स्वरूप में से विभिन्न स्वरूप में स्वर्ण मुद्रा मान को पढ़ेगें। इसके साथ-साथ ही इसकी विशेषताएं, गुण तथा दोष को भी समझेंगे ।

आइए शुरू करते हैं। हेलो मेरा नाम चंदन है इस ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।

स्वर्ण मुद्रा मान से आप क्या समझते हैं?

यह स्वर्णमान का सबसे पुराना स्वरूप हैं। इसको अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है जैसे कि स्वर्ण टंक मान (gold tank value) पूर्ण स्वर्ण मान (absolute gold value) और परंपरागत स्वर्ण मान (traditional gold value) इत्यादि।

स्वर्ण मुद्रामान की विशेषता बताएं

स्वर्ण मुद्रामान के निम्नलिखित विशेषताएं हैं जो कि नीचे की पंक्ति में कुछ इस प्रकार से दिए गए हैं –

  • सरकार अथवा अधिकृत मौद्रिक संस्था द्वारा निश्चित दर पर स्वर्ण का क्रय-विक्रय किया जाता हैं।
  • विदेशी भुगतान तथा अन्य प्रकार के लेन-देन के लिए स्वर्ण के आयात तथा निर्यात पर किसी प्रकार का रोक नहीं होता हैं।
  • इसके अंतर्गत स्वर्ण यही संपूर्ण मुद्रा प्रणाली का आधार होता हैं।
  • स्वर्ण के गलाने, खरीदने, बेचने अथवा स्वर्ण के स्वतंत्र व्यवसाय पर किसी प्रकार का बंधन नहीं रहता हैं।
  • भुगतान की सुविधा के लिए कागज के नोट भी चलन में रहते हैं जो स्वर्ण में परिवर्तन शील होते हैं। इन नोटों की परिवर्तन शीलता के लिए Fund में 100% स्वर्ण रखा जाता हैं।
  • स्वर्ण मुद्रा पूर्णकाय होती है ।
  • देश में स्वर्ण के सिक्के चलन में होते हैं तथा स्वर्ण की मात्रा कानून द्वारा निर्धारित कर दी जाती हैं।

स्वर्ण मुद्रा मान के गुण लिखिए

इसलिए गुण निम्नलिखित है जो इस प्रकार से दिए गए हैं-

  1. स्वचालित (Automatic)
  2. सरल व्यवस्था (Simplicity)
  3. जनता का विश्वास (Public Confidence)
  4. वस्तुओं के आंतरिक मूल्यों में स्थायित्व
  5. स्वर्ण के मूल्य में समानता तथा स्थायित्व

स्वचालित (Automatic)

इसके अंतर्गत मुद्रा की दर तथा स्वर्ण का मूल्य अपने आप सामान्य स्तर पर बने रहते हैं। यदि किसी देश में स्वर्ण का मूल्य बढ़ जाए तो उसमें स्वर्ण का आयात होने लगता हैं जिससे स्वर्ण की मात्रा बढ़कर उसके मूल्य कम हो जाते हैं।

इसी प्रकार किसी देश में स्वर्ण के मूल्य में कमी आने पर उस देश से स्वर्ण निर्यात होने लगता है। जैसे सोने की मात्रा कम हो जाती है और मूल्य तथा मुद्रा की विनिमय दर उचित स्तर पर आ जाते हैं। यह कार्य बिना सरकारी हस्तक्षेप संपन्न होता है इसे ही “स्वर्णमान की स्वयंचालकता” कहा जाता है।

सरल व्यवस्था (Simplicity)

स्वर्ण मुद्रा मान में सोने की मुद्रा चलन में रहती है और कागज के नोट आदि अन्य प्रचलित मुद्राएं स्वर्ण मुद्राओं में बदले जा सकती है। अतः यह व्यवस्था जटिल अथवा उलझन भरी नहीं है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि स्वर्ण मुद्रा का देश-विदेश में समान उपयोग हैं।

जनता का विश्वास (Public Confidence)

स्वर्ण तथा वस्तुओं के मूल्यों में स्थायित्व बने रहने के कारण जनता का मुद्रा व्यवस्था में विश्वास बना रहता हैं जिससे देश में लेन-देन की व्यवस्था में संकट की स्थिति उत्पन्न नहीं हो पाती हैं।

वस्तुओं के आंतरिक मूल्यों में स्थायित्व

स्वर्ण के मूल्यों में स्थायित्व रहने के कारण, स्वर्ण मुद्रा मान अपनाने वाले देशों में वस्तुओं के आंतरिक मूल्य में भी स्थायित्व रहता हैं, क्योंकि मुद्रा का आधार Gold होता हैं इसलिए स्वर्ण मूल्यों में स्थायित्व रहने के कारण मुद्रा के मूल्य में स्थायित्व रहना स्वाभाविक हैं।

स्वर्ण के मूल्य में समानता तथा स्थायित्व

जो देश स्वर्ण मुद्रा अपनाते हैं उसका मूल्य दूसरे देश में भी समान रहता है जैसे ही स्वर्ण एक देश में महंगा होता हैं। वह दूसरे देशों से आयात कर लिया जाता है जिससे स्वर्ण की Fund में वृद्धि होने के कारण स्वर्ण के मूल्य पुनः समान Level पर आ जाते हैं।

इस प्रकार जैसे ही किसी देश के स्वर्ण के मूल्य में गिरावट आती है वहां से स्वर्ण अन्य देशों में निर्यात होने लगता है जिससे उस देश में स्वर्ण की पूर्ति कम हो जाती है और स्वर्ण के मूल्य स्तर पर आ जाते हैं। इस प्रकार सभी देशों में स्वर्ण का मूल्य में उतार-चढ़ाव नहीं होते हैं।

अनुबंध से आप क्या समझते हैं?

सन्नियम क्या हैं?

स्वर्ण मुद्रा मान के दोष या कमी , सीमाएं

Demerits of gold standard अर्थात स्वर्ण मुद्रा मान के निम्नलिखित दोष या कमी , सीमाएं हैं। जो कि नीचे के पंक्ति में इस प्रकार से दिए गए हैं –

  1. संकट काल में असहयोग (non-cooperation in times of crisis)
  2. संकुचनशील (contractionary)
  3. महंगी और बेलोचदार व्यवस्था (expensive and inelastic system)
  4. मूल्य स्थिरता काल्पनिक (price stability hypothetical)
  5. स्वयं संचालक काल्पनिक (self operator imaginary)

संकट काल में असहयोग (non-cooperation in times of crisis)

स्वर्ण मुद्रा मान का सबसे बड़ा सीमा है कि जब कभी समाज में आर्थिक या राजनीतिक अशांति उत्पन्न होने लगती है। तब जनता द्वारा सोना का संग्रह होने लगता है और मुद्रा को स्वर्ण में परिवर्तनशील कर पाना संम्भव नहीं होता हैं। इस दृष्टि से स्वर्ण मुद्रा मान केवल अच्छे समय का साथी हैं।

संकुचनशील (contractionary)

स्वर्ण मुद्रा मान व्यवस्था में स्वर्ण Fund के बिना मुद्रा ढालना संभव नहीं होता। पर्याप्त मात्रा में स्वर्ण न होने पर इस व्यवस्था को अपनाया जाना संभव नहीं होता हैं।

महंगी और बेलोचदार व्यवस्था (expensive and inelastic system)

इस मुद्रा मान की यह तिसरी कमी हैं महंगी और बेलोचदार व्यवस्था का होना। जिसे विकासशील अथवा गरीब देश नहीं अपना सकते हैं।
इसके तीन कारण हैं-

  • पहला स्वर्ण मुद्रा मान के अंतर्गत मुद्राओं के लिए स्वर्ण की बहुत आवश्यकता होती हैं।
  • दूसरा स्वर्ण की मुद्रा चलन में रहने के कारण मुद्राओं में Depreciation होने से बहुत सा सोना नष्ट हो जाता है।
  • तीसरा यदि किसी देश की अर्थव्यवस्था विकासशील हो और वहां अधिक मुद्रा की आवश्यकता पड़े तो उसकी पूर्ति करना कठिन हो जाता हैं।

मूल्य स्थिरता काल्पनिक (price stability hypothetical)

इसमें कीमत की स्थिरता काल्पनिक होती है क्योंकि सोने की कीमत में परिवर्तन हो जाने से कीमत में भी परिवर्तन हो जाता है। ऐसे बहुत सारे कारण है कि सोने की कीमत में परिवर्तन करने के लिए उत्तरदायी होते हैं जैसे कि- नया सोने की खानों में खोज, स्वर्ण निकालने की विधियों में सुधार, स्वर्ण की उत्पादन लागत में परिवर्तन तथा स्वर्ण के आयात-निर्यात में परिवर्तन।

स्वयं संचालक काल्पनिक (self operator imaginary)

इसमें स्वयं संचालकता का गुण तभी तक मौजूद रहता है जब तक इसे बनाए रखने में अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त होता रहे । प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय सहयोग नहीं मिल पाए इसलिए स्वर्ण मान की स्वयं चालकता समाप्त हो गयी।