अशुद्धियों का सुधार | Rectification Of Errors In Hindi

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कोई भी काम कितनी सावधानी से क्यों ना किया जाए गलतियां/अशुद्धियां रह ही जाती है। लेखांकन के क्षेत्र में गलतियां होती हैं। इसमें आपको अशुद्धियों का सुधार Rectification Of Errors के बारे में पूरे विस्तृत से बताया गया हैं।

अशुद्धियों से आप क्या समझते हैं

साधारण शब्दों में कहा जाए तो किसी भी कार्य को करने में व उस कार्य के करने के बाद उसमें जो गलतियां पाई जाती हैं अशुद्धियां कहलाती है। उदाहरण – जब हम बचपन में A,B,C,D लिखते थे तो B को उल्टा करके लिख देते थे। यहां B को उल्टा करके लिखना ही अशुद्धि हैं।

अशुद्धियों के सुधार से क्या आशय है

त्रुटि करना मनुष्य का स्वभाव है। लाख सावधानी बरतने के बावजूद भी अशुद्धियां हो जाती है। अशुद्धियां ऐसी होती हैं जिनका प्रभाव Trial Balance पर नहीं पड़ता है और कुछ अशुद्धियों का Trial Balance के योग पर प्रभाव पड़ता है। व्यापार के सही स्थिति प्रकट करने के लिए आवश्यक है कि त्रुटियों का पता लगाया जाए और सुधार हेतु आवश्यक लेखे किए जाए । इसी क्रिया को “अशुद्धियों का सुधार” करना कहा जाता है।

लेखा पुस्तकों में हुई अशुद्धियों या भूलों के सुधार हेतु और लेखांकन अभिलेखों को सही करने में जो प्रक्रिया अपनाई जाती है अशुद्धियों का सुधार कहलाती हैं।

अशुद्धियों के सुधार के उद्देश्य

  • इसमें लेखांकन अवधि के लिए सही लाभ या हानि का निर्धारण किया जाता हैं।
  • सही लेखांकन रिकॉर्ड को तैयार करना और रखना इसका उद्देश्य है।
  • अशुद्धियों के सुधार होने से लोगों का उसके प्रति विश्वास बना रहता है।
  • अशुद्धियां नहीं होने से इन्वेस्टर पैसा निवेश करने के लिए राजी हो जाते हैं।

अशुद्धियों के संशोधन की विधियां बताएं

संशोधन यानी कि किसी चीज में परिवर्तन करना। अशुद्धियों के संशोधन के निम्नलिखित विधियां है-

  1. एकपक्षीय अशुद्धियां
  2. द्विपक्षीय अशुद्धियां

एकपक्षीय अशुद्धियां – एकपक्षीय अशुद्धियों से आशय ऐसे अशुद्धियों से हैं जिसमें केवल एक ही खाते प्रभावित होता है। इस तरह की अशुद्धियों का सुधार प्रभावित लेखे की स्थिति के अनुसार क्रेडिट और डेबिट करके किया जाता है। इसके अंतर्गत निम्न को शामिल किया जाता है।

  • Errors Of Casting
  • Errors In C/F
  • Balancing

Errors Of Casting (जोड़ की अशुद्धियां) – जब ट्रायल बैलेंस में या फिर किसी लेखांकन में दोनों पक्षों का योग निकाला जाए और योग बराबर ना हो, अधिक हो, कम हो तो वैसे अशुद्धि को जोड़ की अशुद्धि कहा जाता हैं।

Errors In C/F – जब पिछले लेनदेन यानी कि B/F को C/F में Transfer किया जाता है तो जितना Balance होता है C/F में भी होना चाहिए ऐसा नहीं होने पर आगे ले जाने की अशुद्धि कहलाती है।

Balancing – डेबिट व क्रेडिट साइड का योग का ना मिल पाना।

द्विपक्षीय अशुद्धियां – जब लेखांकन और ट्रायल बैलेंस में डेबिट व क्रेडिट दोनों पक्ष प्रवाहित होते हैं द्विपक्षीय अशुद्धियां कहलाते है। इस तरह के अशुद्धियों का सुधार जर्नल प्रविष्टि द्वारा किया जाता है। इसमें सुधार करने के लिए कुछ इस तरह का नियम फॉलो करते हैं-

  1. सबसे पहले शुद्ध लेखा जो होना चाहिए उसे लिखे।
  2. उसके बाद अशुद्ध लेखा जो हो गया, उसे लिखना चाहिए।
  3. अब दोनों लेखों की तुलना करके सुधार का लेखा Rectified Entry लिखना चाहिए।

इस प्रकार के अशुद्ध को दूर करने के लिए पहले रफ में शुद्ध व अशुद्ध लेखा करना चाहिए। इसके बाद जो खाता दोनों में कॉमन हो उसे पेंसिल या कलम से काट देना चाहिए और शेष लेखों के आधार पर संशोधित प्रविष्टि करने चाहिए।

अशुद्धियों का Balance Sheet पर क्या प्रभाव पड़ता है

  1. यदि संपत्तियां कम राशि से डेबिट की गई हो अथवा डेबिट ही ना की गई हो तो संबंधित संपत्तियों का मूल्य कम हो जाएगा।
  2. यदि संपत्तियों को भूल से डेबिट कर दिया गया हो तो संपत्तियों का मूल्य बढ़ जाएगा।
  3. इसी प्रकार भूल से व्यक्तिगत खाते को डेबिट किए जाने पर देनदार की राशि बढ़ जाएगी और क्रेडिट किए जाने पर लेनदार की राशि बढ़ जाएगी।

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