संयुक्त साहस एक विशेष प्रकार की साझेदारी होती है। जिसमें फर्म का नाम तथा पंजीयन की कोई आवश्यकता नहीं होती है। संयुक्त साहस और साझेदारी में कई तरह से अंतर होते हैं। Difference Between Joint Venture and Partnership In Hindi. आज के इस Post में मैं आपको संयुक्त साहस तथा साझेदारी में क्या-क्या अंतर होता है? उसे बताऊंगा।
संयुक्त साहस और साझेदारी में अंतर
संयुक्त साहस तथा साझेदारी में विभिन्न प्रकार के अंतर पाए जाते हैं जो कि इस प्रकार से दिए गए हैं-
1. संयुक्त साहस से आशय किसी विशेष उद्देश्य या लक्ष्य को प्राप्त करने से होता है जबकि साझेदारी में विशेष उद्देश्य या लक्ष्य को प्राप्त न करके विभिन्न उद्देश्य को प्राप्त करना होता है।
2. संयुक्त साहस में फर्म का कोई विशेष नाम नहीं होता है जबकि साझेदारी में फर्म का नाम होना अत्यंत आवश्यक होता हैं।
3. संयुक्त साहस के लिए पंजीयन का होना आवश्यक नहीं है जबकि साझेदारी में पंजीयन का होना आवश्यक होता है।
4. इसका कार्यक्षेत्र किसी एक उद्देश्य की पूर्ति तक सीमित रहता है जबकि साझेदारी का कार्य क्षेत्र विस्तृत रहता है।
5. इसमें कम से कम 2 सदस्य होने चाहिए और अधिकतम सदस्यों के लिए कोई प्रतिबंध नहीं है। जबकि साझेदारी में अधिकतम सदस्यों की संख्या बैंकिंग व्यवसाय के लिए 10 और अन्य व्यवसाय के लिए 20 हैं। न्यूनतम सदस्यों की संख्या 02 होने चाहिए।
साझेदारी और संयुक्त साहस में पांच अंतर स्पष्ट करें
जैसा कि आपको मैंने ऊपर संयुक्त साहस और साझेदारी में मुख्य पांच Difference बताएं हैं तथा इसके साथ ही और भी अंतर होते हैं जो कि नीचे दिए गए हैं-
1. साझेदारी की प्रकृति स्थाई होती है और साथ ही यक्ह सतत चलते रहता हैं जबकि संयुक्त साहस की प्रकृति अस्थाई होती है। कार्य पूरा होने के तुरंत बाद ही यह समाप्त हो जाता हैं।
2. इसमें खाते वर्ष के अंत में बनाए जाते हैं जबकि संयुक्त साहस में कार्य के पूरा हो जाने पर खाते तैयार किए जाते हैं।
3. साझेदारी की स्थापना एक ही उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए नहीं किया जाता है जबकि संयुक्त साहस की स्थापना एक निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए होता हैं।
4. यह भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 के अंतर्गत चलाया जाता है जबकि संयुक्त साहस के लिए अलग से कोई अधिनियम नहीं बनाया गया है।
5. संयुक्त साहस में विशेष साहस या कार्य के पूरा हो जाने पर लाभ- हानि का निर्धारण किया जाता है जबकि साझेदारी में लाभ- हानि का निर्धारण वर्ष के अंत में किया जाता हैं।
निष्कर्ष –
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