ब्याज का तरलता का सिद्धांत | The Principle of Liquidity of Interest In Hindi

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यदि आप भी अपने पैसे को तरल अवस्था में रखना पसंद करते हैं और ब्याज के तरलता का सिद्धांत जानना चाहते हैं तो यह पोस्ट आपके लिए बिल्कुल सही हैं।

ब्याज का तरलता का सिद्धांत

कीन्स के अनुसार – लोग अपनी आय को बिल्कुल तरल अथवा मुद्रा के रूप में रखना पसंद करते हैं और सुद भी इसी तरलता के परित्याग का पुरस्कार है। इसलिए उन्होंने कहा है कि

interest is the reward given to people for surrendering their liquidity preference.

वे कहते हैं ब्याज का निर्धारण अन्य कीमतों के निर्धारण की तरह ही मांग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होता हैं। मुद्रा की मांग और पूर्ति के द्वारा ब्याज की दर निश्चित होती हैं। मुद्रा की पूर्ति समाज में उपलब्ध संपूर्ण मुद्रा की मात्रा के बराबर होती है तथा मुद्रा की मांग तरलता की रुचि द्वारा तब होती हैं।

ब्याज की दर तरलता को इच्छा तथा मुद्रा की पूर्ति दोनों ही प्रभावित करती हैं। जब तरलता की रुचि काफी मजबूत रहती है तो ब्याज की दर ज्यादा होती हैं। तरलता की रुचि कमजोर हो जाने पर ब्याज की दर भी कमजोर हो जाती हैं। इस तरफ ब्याज उपभोग के त्याग के लिए नहीं दिया जाता।

तरलता की रुचि के मजबूत होने का मतलब यह है कि तरलता के लिए लोगों में ज्यादा आकर्षण हो और बिना ज्यादा कीमत लिए वे उस तरलता का त्याग नहीं कर सकते हैं। इसलिए इस परिस्थिति में ब्याज ज्यादा देना पड़ता है। तरलता की रुचि के कमजोर होने का अर्थ है कि तरलता के लिए लोगों में विशेष लालच नहीं है और कम ब्याज मिलने पर भी तरलता का त्याग किया जा सकता हैं। इसलिए ब्याज की दर यहां कम होती हैं। इस प्रकार से तरलता की रुचि और ब्याज की दर में सीधा संबंध होता हैं।

अब प्रश्न यह उठता है कि लोग अपनी आय को तरल साधन के रूप में ही रखना क्यों पसंद करते हैं। कीन्स ने इन रुचियों की व्याख्या की है और इसके लिए तीन कारण बताए हैं –

  1. Transaction Motive – लेन- देन की प्रवृति से मनुष्य की उस प्रवृत्ति का बोध होता है जिस प्रवृत्ति से वे अपने पास सदैव ही मुद्रा को दैनिक क्रय- विक्रय के लिए रखना चाहते हैं। किसी भी व्यक्ति अथवा व्यापारिक संस्था की आय और खर्च का सहज ही संतुलन अल्पकाल में नहीं होता । उसकी आय और व्यय के बीच जितना व्यक्तिक्रम रहता हैं। उसके अनुपात में ही उसके पास नगद मुद्रा रखने की आवश्यकता होती हैं।

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इस नगद मुद्रा को रखने का औसतन परिणाम व्यक्ति की आमदनी तथा अदायमी पर निर्भर करता है और मुद्रा की संपूर्ण राशि की आवश्यकता किसी भी आर्थिक क्षेत्र में लेन-देन के लिए उस दो की राष्ट्रीय आय, रोजगार तथा सामान्य मूल्य स्तर के आधार पर निश्चित होती है।

  1. Precautionary Motive – प्राय: व्यक्ति अथवा फर्म भविष्य की अव्यक्त परिस्थितियों के सामना करने के लिए भी नगद मुद्रा रखा करते हैं जिससे उनकी समय विशेष की हानि प्रभावहीन बन सके अथवा वे एक वर्तमान अव्यवस्था से उत्पन्न दूसरी अव्यवस्था का सामना कर सकें।

जैसी बीमारी से आय घट सकती है और व्यय बढ़ सकता हैं। ऐसी परिस्थिति में दूसरे से कर्ज लेने की आवश्यकता किसी भी क्षण आ सकती है ताकि वह अगले परिस्थिति से मुकाबला कर सके। मुद्रा रखने की यह प्रवृत्ति प्रत्येक व्यक्ति या फर्म में अलग-अलग होती है। इस भिन्नता का कारण उनकी प्रवृत्ति, व्यापार, आर्थिक शक्ति तथा साख का क्षेत्र आदि हो सकते हैं।

  1. Speculative Motive – लोग सट्टेबाजी के लिए भी मुद्रा संचय करते हैं। कीन्स ने इसकी परिभाषा कुछ इस प्रकार से दी हैं –

कीन्स के अनुसार दो कारणों के लिए मुद्रा की मांग का प्रभाव सूद की दर पर प्रत्यक्ष रुप से नहीं पड़ता । कारण यह हैं कि पहले दो कारणों में मुद्रा प्रायः स्थायी रहती है तथा इसमें कम परिवर्तन होने की संभावना रहती हैं। अतः सूद की दर के निर्धारण पर सट्टेबाजी की प्रवृत्ति का ही मुख्यतः प्रभाव पड़ता है क्योंकि सट्टेबाजी की प्रवृत्ति ऋणदाताओं की मनोवैज्ञानिक स्थिति पर निर्भर करती हैं। इस प्रकार सूद की दर में परिवर्तन का यही प्रधान और उचित कारण जान पड़ता हैं।

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