समृद्धि क्या हैं | Growth In Hindi

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प्रिय पाठक एक नई पोस्ट में स्वागत है। इस पोस्ट में आपको समृद्धि क्या हैं, उद्देश्य, स्तर तथा मुख्य बिंदु से संबंधित सभी जानकारी दी गई हैं।

समृद्धि का अर्थ क्या होता हैं

व्यवसायिक जगत में सबसे पहले व्यवसाय या उद्योग की स्थापना होती है धीरे-धीरे वह व्यवसाय बढ़ता चला जाता है व्यवसाय का बढ़ना ही उद्योग का “विकास” कहलाता है। जब विकास धीरे-धीरे समृद्ध होकर अपने चरण सीमा पर पहुंच जाता है तो यह स्तर “समृद्धि” Growth कहलाता है। यह स्तर साहसी को विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करने में,बाजार में अपनी बुलंदियां बनाए रखने में सहायता करता हैं।

समृद्धि के उद्देश्य

प्रत्येक व्यवसाय या उद्योग समृद्धि की ऊंचाइयों को प्राप्त करना चाहता है परंतु सभी व्यवसाय या उद्योग उस ऊंचाई को प्राप्त नहीं कर पाते हैं इसके पीछे का मुख्य कारण व्यवसायिक वातावरण में परिवर्तन होते रहने से हैं। अतः परिवर्तन के अनुरूप अपने को विकसित करना प्रत्येक उद्यमी का उद्देश्य रहता है। समृद्धि के पीछे भी उद्यमी के मुख्य उद्देश्य होते हैं जो कि इस प्रकार से दिए गए हैं-

  1. नए परिवर्तनों को अपनाना
  2. बदलती हुई परिस्थितियों का सामना करना
  3. बाजार में अपना अस्तित्व कायम रखना
  4. बड़े पैमाने पर लाभ उठाना

समृद्धि के स्तर

किसी भी व्यवसाय तथा उद्योग में समृद्धि यानि कि Growth अचानक नहीं आती है बल्कि इसके लिए विकास के विभिन्न स्तर से गुजरना पड़ता है और प्रत्येक स्तर पर उद्यमी को सावधान रहने की जरूरत होती है इस प्रकार से समृद्धि के निम्नलिखित स्तर होते हैं-

  • Start up Stage
  • Development Stage
  • Stage Of Expansion
  • Growth Stage
  • Decline Stage

जन्म स्तर (Start up Stage) – सबसे पहले व्यवसायिक जगत में एक उपक्रम का जन्म होता है जो सीमित क्षेत्र में छोटे पैमाने पर अपना कारोबार करती हैं।

विकास का स्तर – इस स्तर पर उपक्रम धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगता है और बाजार में लोग इसे जानने- पहचानने लगते हैं।

विस्तार का स्तर– इस स्तर पर साहसी अपने को बाजार में मजबूत समझने लगता है और उपक्रम को आगे बढ़ाने की आवश्यकता महसूस करता है इसके लिए नई ब्रांच खोलकर उपक्रम का विस्तार करता हैं।

परिपक्वता स्तर – यह स्तर उद्यमी के लिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस स्तर से ही उद्यमी अपने उपक्रम का विस्तार करके बाजार पर आधिपत्य कर लेता है। इस प्रकार उसकी बिक्री बढ़ जाती है जिससे उसका लाभ भी बढ़ने लगता है।

अवनति स्तर– जब उद्योग परिपक्वता स्तर पर पहुंच जाती है तो बहुत दिनों तक इस पर कायम नहीं रह पाती है क्योंकि अन्य प्रतियोगी बाजार में नए उत्पाद के साथ प्रतियोगिता करने लगते हैं जिससे इस उपक्रम की अवनति आरंभ हो जाती है।

समृद्धि को प्रभावित करने वाले तत्व या कारक

प्रतियोगिता – आज का युग प्रतियोगिता का युग है। प्रतियोगिता के इस युग में प्रत्येक उद्यमी को दूसरे के तुलना में नया उत्पाद कर आगे निकलने के उत्पाद में लगे है। अतः व्यवसाय की समृद्धि प्रतियोगिता से प्रभावित होती हैं

तकनीकी परिवर्तन – व्यापार में दिन प्रतिदिन नई-नई तकनीकी आते रहते हैं जिस कारण से जो तकनीक पहले नहीं होती है अब वह पुरानी हो जाती है अता उद्यमी को लगातार नजर रखना होता है स्पष्ट है व्यापार की समृद्धि तकनीकी से भी प्रभावित होती हैं

उपभोक्ता की समृद्धि – उपभोक्ता की रूचि, फैशन, पैसा आदि में परिवर्तन होते रहते हैं। उपभोक्ता की प्रकृति के अनुसार ही बाजार में वस्तु की मांग पड़ती है। जिससे उसकी बिक्री बढ़ती है और अंत तक साहसी लाभ कमाते हुए प्रगति करते रहता है।

नव परिवर्तन – नव परिवर्तन गुण के द्वारा साहसी ऐसे उत्पाद बाजार में लाता है जो पहले से विद्यमान नहीं है या वह पर्याप्त रूप से नहीं मिल रहा है।

 

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