किस्त भुगतान पद्धति Instalment Payment System In Hindi

आज के समय में किस्त भुगतान पद्धति काफी तेजी से बढ़ रही है। बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए किस्त भुगतान पद्धति अर्थात Installment Payment System In Hindi का प्रयोग कर रहे हैं।

किस्त क्या हैं?

किस्त से आश्य एक बड़ी राशि को एक बार में ना देकर छोटे-छोटे हिस्सों में देने से हैं। किस्त को EMI के नाम से भी जानते हैं जिसका पूरा नाम Equated Monthly Installment होता है।

उदाहरण – आज आपको किसी मांगे समान को खरीदना हैं। जैसे कि घर,कार,टीवी,मोबाइल आदि। इसे खरीदने के लिए आपके पास पैसे नहीं है तो क्या आप इस समान को नहीं खरीद सकते हैं? मेरा जवाब है- हां, आप ऊपर जितने भी उदाहरण दिए गए हैं उसे खरीद सकते हैं। खरीदने का माध्यम किस्त होगा ।
आज तो आप Amazon, Flipkart, Paytm Mall जैसे शॉपिंग वेबसाइट के बारे में तो जानते ही होंगे हो सकता है आप इसका इस्तेमाल भी करते होंगे। इसमें भी आपको किसी वस्तु को किस्त पर करने की सुविधा दी गई होती हैं।

किस्त भुगतान पद्धति क्या हैं

किस्त भुगतान पद्धति उधार खरीदारी पद्धति का ही एक रूप हैं इसके अंतर्गत खरीदने वाले (क्रेता) व्यक्ति के द्वारा उस वस्तु का भुगतान तुरंत नहीं किया जाता है बल्कि भविष्य में किया जाता हैं। इसमें भी किस्तों का भुगतान करने का कई तरीका होता है जैसे की – साप्ताहिक (7 दिन पर), मासिक (महीने पर), तिमाही (3 महीने पर) छमाही (6 महीने पर), वार्षिक (पूरे 1 साल पर) तथा एकमुश्त भुगतान (एक ही बार में) आदि।

उदाहरण -1 राम को एक व्यवसाय शुरू करना है इसके लिए उसके पास पर्याप्त पैसे नहीं है उस स्थिति में वह बैंक से लोन, फाइनेंस कंपनी से लोन ले सकता है और पैसे को किस्तों में भुगतान कर सकता है यही तो है किस्त भुगतान पद्धति।

उदाहरण -2 X ने Y दुकानदार की दुकान से कुछ माल खरीदा और एक्स द्वारा उसका पैसा तत्काल में ना देखकर भविष्य में किस्त में देना तय होता हैं।

प्रसिद्ध बाटलीबॉय के शब्दों में

“किस्त भुगतान पद्धति के अंतर्गत माल क्रय किए जाने में माल खरीददार (क्रेता) की संपत्ति उसी समय हो जाती है जब उसे माल की सुपुर्दगी मिलती हैं।

किस्त भुगतान पद्धति की विशेषताएं

इस पद्धति की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं-

  • इस पद्धति में वस्तु की बिक्री तो होती हैं और इसकी सुपुर्दगी भी क्रेता (खरीदने वाला व्यक्ति) को दे दी जाती हैं लेकिन माल का संपूर्ण भुगतान बिक्री के समय नहीं होता हैं।
  • यह एक तरह का उधार बिक्री होता हैं।
  • माल खरीदने वाले व्यक्ति के द्वारा भुगतान एक अनुबंध के आधार पर होता हैं।
  • वस्तु की सुपुर्दगी के पश्चात वस्तु पर माल खरीदने वाले का अधिकार हो जाता है
  • क्रेता माल का अपनी इच्छा के अनुसार उपभोग कर सकता हैं। वह चाहे तो उसे नष्ट करें, क्षति पहुंचाए,गिरवी रखे तथा चाहे तो बेच दें।
  • अगर किसी कारण से क्रेता द्वारा किस्त की राशि भुगतान नहीं किया जाता है तो उस स्थिति में विक्रेता वस्तु को पुनः अपने अधिकार में नहीं ले सकता हैं। वह सिर्फ माल के बाकी किस्तों का दावा ही कर सकता हैं।

 

किराया क्रय पद्धति और किस्त भुगतान पद्धति में अंतर

अंतर का आधार किराया क्रय पद्धति। किस्त भुगतान पद्धति

1. दुकानदार का अधिकार– किराया क्रय पद्धति के अंतर्गत यदि खरीदने वाला व्यक्ति किसी किस्त का पैसा नहीं देता हैं तो उसे स्थिति में विक्रेता द्वारा उस माल को जब्त करने का अधिकार होता हैं। जबकि किस्त भुगतान पद्धति में क्रेता द्वारा किस्त की राशि न जमा करने पर विक्रेता द्वारा सिर्फ शेष राशि का दावा ही कर सकता हैं।

2. सामान की वापसी– इस प्रणाली के अंतर्गत किस्त के भुगतान नहीं किए जाने पर विक्रेता को माल वापस लेने का अधिकार होता हैं। जबकि इस प्रणाली के अंतर्गत विक्रेता को माल लेने का अधिकार नहीं होता हैं।

3. सुरक्षा– किराया क्रय पद्धति में खरीदने वाला (क्रेता) को अधिक सुरक्षा मिलती हैं जबकि किस्त भुगतान पद्धति में क्रेता को अधिक सुरक्षा नहीं मिलती हैं।

4. माल पर अधिकार– किराया क्रय पद्धति के अंतर्गत अंतिम किस्त के भुगतान होने पर माल का संपूर्ण अधिकार क्रेता का हो जाता हैं,जब तक अंतिम किस्त भुगतान नहीं होगा तब तक माल पर विक्रेता का अधिकार होता हैं। जबकि किस्त भुगतान पद्धति में माल के क्रय- विक्रय करते समय ही अनुबंध पूरे होने पर माल का स्वामित्व/अधिकार क्रेता का हो जाता है।

5. जोखिम भरा – इस पद्धति में जब तक क्रेता द्वारा अंतिम किस्त की राशि का भुगतान नहीं कर दिया जाता तब तक सारा जोखिम विक्रेता का ही होता हैं जबकि इस प्रणाली में जोखिम सदैव क्रेता पर रहता हैं।

6. अधिकार– इस प्रणाली के अंतर्गत यदि क्रेता अंतिम किस्त की राशि का भुगतान करने से पहले माल को किसी अन्य व्यक्ति से बेच देता हैं तो उस स्थिति में माल पर अधिकार अन्य व्यक्ति का नहीं होगा। जबकि इस प्रणाली के अंतर्गत क्रेता द्वारा ऐसी क्रिया किए जाने पर उस माल पर अधिकार अन्य व्यक्ति का हो जाता हैं।

 

किस्त भुगतान पद्धति में किए जाने वाले लेखें

क्रेता की पुस्तकों में किया जाने वाला लेखा

1. माल की सुपुर्दगी पर
Assets Account …..Dr. (With total cash value)
Interest Suspense A/C. ….. Dr. (With total Interest)
To Vendor’s A/C
(Being the Purchase under The instalment payment system )

2. माल की सुपुर्दगी पर नगद का भुगतान करने पर
Vendor’s A/C. ……. Dr. (With Down payment)
To Cash Ya Bank A/C
(Being payment of cash to the seller on delivery)

3. किस्त के देय होने पर ब्याज के लिए
Interest Account ….Dr. (With Amount of Interest)
To Interest Suspense A/C
(Being the Amount of instalment interest becoming due)

4. किस्त के भुगतान करने पर
Vendor’s A/C. Dr…
To Bank A/C
(Being the Amount of Instalment paid)

5. हृास का लेखा करने पर
Depreciation A/C. .. Dr..
To Assets A/C
(Being charging of depreciation at the rate of …)

6. हृास/ब्याज खाता बंद करने पर
Profit & Loss A/C. ….. Dr.
To Interest A/C
” Depreciation A/C
(Being transfer of Interest and Depreciation Account to P&L Account)

विक्रेता की पुस्तकों में किया जाने वाला लेखा

1. माल बिक्रय के समय
Purchaser’s A/C … Dr.
To Sale A/C
” Interest Suspense A/C
(Being the sale of Goods on instalment Payment )

Note- Purchaser’s A/C . ..Dr. में Principal + Total Interest
Sales में Include Cash Price
Interest Suspense में Total Interest

2. माल बिक्री के समय नगद प्राप्त होने पर
Cash Account …… Dr.
To Purchaser’s A/C
(Being the cash received on delivery of the goods )