पुस्तपालन क्या है- Book-Keeping In Hindi

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बिज़नेस जगत में बुक कीपिंग ( पुस्तपालन ) शब्द का प्रयोग सबसे अधिक होता है । आज के इस पोस्ट में आप जानेगे की पुस्तपालन क्या है , पुस्तपालन (बुक कीपिंग) की विशेषताएं ,पुस्तपालन (बुक कीपिंग) के उदेश्य तथा पुस्तपालन(Book-Keeping) एवं लेखांकन(Accounting)में अन्तर

 

पुस्तपालन क्या है

पुस्तपालन को समझने से पहले आपको अंग्रेजी Word Book-Keeping को समझना होगा। Book-Keeping दो शब्दों से मिलकर बना है- a. Book तथा Keeping । Book शब्द का अर्थ ‘पुस्तक‘ से होता है जबकि Keeping शब्द का अर्थ ‘रखना‘ होता है अर्थात् पुस्तक को रखना ही पुस्तपालन (Book-Keeping) कहलाता हैं।

इस प्रकार से, पुस्तपालन या बुक कीपिंग वह कला व विज्ञान होता है जिसके अनुसार समस्त व्यवसायिक वित्तीय लेन-देनों का लेखा नियमानुसार स्पष्ट तथा प्रतिदिन उचित पुस्तकों में लिखने से होता है। इस पुस्तक को बही खाते के नाम से भी जाना जाता है। आज अधिकांश संस्थाएं व्यवसायिक सॉफ्टवेयर पैकेज प्रोग्राम (Software Packages Programs) का प्रयोग करते हैं। जिसमें कंप्यूटर द्वारा पुस्तके रखने में सहायता मिलती है। इस प्रकार से,

a.बहीखाता लेखांकन का अंग है।
b.वित्तीय लेनदेन एवं घटनाओं की पहचान करता हैं।
c.वित्तीय लेनदेन एवं घटनाओं को मुद्रा के रूप में मापना इसका अहम् कार्य हैं।
d.वित्तीय लेनदेन को Journal या सहायक पुस्तकों में लिखना।
e.सभी लेनदेन को वर्गीकृत करना अर्थात खाता बही (Ledger) तैयार करना ।

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पुस्तपालन ( बुक कीपिंग) की विशेषताएं

उपरोक्त परिभाषा के आधार पर पुस्तपालन तथा खाताबही की विशेषताएं निम्नलिखित है जो कि नीचे इस प्रकार से दिए गए हैं -1. मौद्रिक रूप में लेखा
2. व्यापारिक सौदों का लेखा
3. सभी व्यापारियों द्वारा प्रयोग
4. नियमानुसार लेखा
5. पुस्तपालन कला और विज्ञान

1. मौद्रिक रूप में लेखा – पुस्तपालन की यह सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है कि इसमें सिर्फ वित्तीय लेन- देनों का लेखा किया जाता है अर्थात इसमें वैसे लेनदेन शामिल होते हैं जिनको मुद्रा के रूप में मापा जा सके । इनमें वैसे लेन देन को बिल्कुल भी शामिल नहीं किया जाता है। जिनको मुद्रा के रूप में नहीं मापा जा सके।

2. व्यापारिक सौदों का लेखा– पुस्तपालन के अंतर्गत सभी प्रकार के व्यापारिक लेन-देन का लेखा किया जाता है,चाहे वह क्रय,विक्रय,क्रय वापसी, विक्रय वापसी, लाभ-हानि तथा आय-व्यय से संबंधित हो।

3.सभी व्यापारियों द्वारा प्रयोग– पुस्तपालन (Book-Keeping)का प्रयोग सभी प्रकार के व्यापारियों द्वारा किया जाता है। इसके प्रयोग से वह अपने व्यापार में हुए वित्तीय लेन- देनों का हिसाब -किताब रखते हैं।

4.नियमानुसार लेखा – पुस्तपालन में,व्यासाय में जितने भी लेन-देन (Transactions) होते हैं । उन सभी का लेखा नियम के अनुसार वह नियमित रूप से होता है । जिससे आगे की क्रिया करने में आसानी होती है।

5. पुस्तपालन कला और विज्ञान – पुस्तपालन (Book-Keeping) की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह कला और विज्ञान दोनों होता है। यह विज्ञान तथा कला के सिद्धांतों पर खरा उतरता है । इसमें व्यापारिक लेन-देनों का लेखा करते समय क्रमबद्ध निश्चित नियमों का पालन किया जाता है।

पुस्तपालन(बुक कीपिंग) के उद्देश्य

बुक कीपिंग  के निम्नलिखित उद्देश्य हैं । जो कि नीचे इस प्रकार से दिए गए हैं-
1.व्यवसायिक सौदों का लेखा रखना
2.आर्थिक स्थिति जानने हेतु
3.माल संबंधित जानकारी
4.करो का सही अनुमान लगाना
5.नीति निर्धारण
6.गलतियों का पता लगाना

1.व्यवसायिक सौदों का लेखा रखना – पुस्तपालन का यह सबसे बड़ा उद्देश्य है कि यह व्यवसायिक लेन- देनों का लेखा रखता है। व्यवसाय का यह आधार है। बिना पुस्तपालन के कोई भी व्यापारी को यह पता नहीं चल पाएगा कि उसने कितने सौदें किए हैं।

2. आर्थिक स्थिति जानने हेतु – एक व्यवसायी को समय-समय पर यह ज्ञात करना होता है कि उसके व्यवसाय की आर्थिक स्थिति कैसी है । व्यवसाय में कितना पैसा बचा है और कितने के लाभ हुए हैं आदि । यह तभी संभव है जब व्यापारी द्वारा पुस्तपालन का इस्तेमाल किया जा रहा हो और उसमें सही – सही प्रवृष्टियाँ समय-समय पर की गई हो।

3. माल संबंधित जानकारी – पुस्तपालन के द्वारा एक व्यापार में कितने वस्तुओं का क्रय- विक्रय, क्रय वापसी, विक्रय वापसी आदि हुए हैं। उससे संबंधित जानकारी प्राप्त करने में आसानी होती है । यह पुस्तपालन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है।

4.करो का सही अनुमान लगाना – कर (Tax) का सही भविष्यवाणी करना भी पुस्तपालन का उद्देश्य होता है। प्रत्येक देश की सरकार व्यापारियों से कर वसूली करते हैं। यदि व्यवसायी द्वारा पुस्तपालन में किए गए लेखें सही ढंग से रखता है तो उचित राशि का भुगतान इस मद में किया जा सकता है। अन्यथा गड़बड़ी की दशा में सही मूल्यांकन नहीं किया जा सकेगा।

5. नीति निर्धारण – पुस्तपालन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य नीति निर्धारण करना होता है । यह नीति उसे भविष्य में लाभ देगी कि नहीं । इसकी जानकारी पुस्तपालन से ही हो पाता है। पुस्तपालन की सहायता से ही पिछले कुछ वर्षो का रिकार्ड देखा जाता है और उसके अनुसार आगे की कार्यवाही की जाती है।

6. गलतियों का पता लगाना – एक व्यापार (Business) में गलती तो स्वयं मालिक से भी हो जाता है। पुस्तपालन गलतियों को पकड़ने में मदद करता हैं। यह पुस्तपालन का महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है।

पुस्तपालन और लेखाकर्म में अन्तर 

पुस्तपालन(Book-Keeping) एवं लेखांकन(Accounting)में अन्तर

बहुत से लोग पुस्तपालन और लेखाकर्म  उनको एक ही शब्द मानते हैं। जबकि सच यह है कि इन दोनों में विशेष अंतर होता है। पुस्तपालन और लेखांकन में निम्नलिखित अंतर हैं। जो कि नीचे इस प्रकार से दिए गए हैं-

1.अंतर का आधार – परिभाषा –  पुस्तपालन व्यापारिक लेन-देन का मौद्रिक रूप में लिखने तथा खाता बही में वर्गीकृत करने की कला है जबकि लेखांकन से आशय  व्यवसाय से संबंधित सूचनाओं को मौद्रिक रूप में इकट्ठा करना, सारांश बनाना, विश्लेषण करना तथा जानकारी देने से है।

2.चरण – पुस्तपालन प्रारंभिक चरण होता है जबकि लेखांकन दूसरा चरण होता है ।

3.आधार– पुस्तपालन लेखांकन का आधार होता है जबकि लेखांकन अंकेक्षण का आधार होता है।

4.समाप्त – जहां पुस्तपालन समाप्त होता है वहां लेखांकन (लेखाकर्म) प्रारंभ होता है और जहां लेखांकन समाप्त होता है वहां अंकेक्षण प्रारंभ होता है।

5.क्षेत्र – पुस्तपालन का क्षेत्र सीमित होता है इसके अंतर्गत जर्नल( रोजनमचा ) सहायक पुस्तकें तथा खाता बही शामिल होता है जबकि लेखांकन का क्षेत्र व्यापक होता है इसके अंतर्गत तलपट (Trial balance), अशुद्धियों का सुधार, समायोजन, वित्तीय विवरण, विश्लेषण व व्याख्या शामिल होता है।

6.योग्यता –  यह कार्य छोटे व्यापारी कर्मचारी तथा मशीन द्वारा किया जाता है इस कार्य को करने के लिए किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती है जबकि  लेखांकन में योग्यता होती हैं।

पुस्तपालन के जनक कौन है ?

पुस्तपालन के जनक लुकास पेसिओली है । लेखांकन और दोहरा लेखा प्रणाली में भी उनकी महवत्पूर्ण  भूमिका रहा है ।

उम्मीद है की अब आप पुस्तपालन क्या है और उससे संबंधित जानकारी मिल ही गया होगा । यदि आपको पुस्तपालन क्या है और  इससे रिलेटेड कोई dout है तो निचे कमेंट करे ।

 

 

 

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