लेखांकन प्रक्रिया क्या हैं | Accounting Process In Hindi

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लेखांकन का इस्तेमाल आज अधिकतर व्यापारी करते हैं। ऐसे में लेखांकन को विभिन्न प्रक्रिया से गुजरना पड़ता हैं। लेखांकन की प्रक्रिया एक व्यवसायी और अंकेक्षण के लिए अति आवश्यक होते हैं। लेखांकन की प्रक्रिया को जानने से पहले आप को लेखांकन के बारे में स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए। इसके लिए आप यह नीचे का Article पढ़ सकते हैंं।

लेखांकन क्या हैं? सम्पूर्ण जानकारी हिन्दी में 

 

लेखांकन की प्रक्रिया क्या होता हैं?

लेखांकन प्रक्रिया से आशय व्यापार में हुए सौदों का अभि लेखन करने, सारांश निकालने, व्याख्या करने तथा वर्ष के अंत में वित्तीय विवरण (Final Account) बनाने से हैं। इस प्रकार से एक व्यवसाय में लेखांकन की प्रक्रिया का अहम् महत्व होता हैं।

लेखांकन प्रक्रिया को स्पष्ट करें

लेखांकन प्रक्रिया कोई छोटा-मोटा कार्य नहीं है जो चुटकियों में पूरा हो जाए। इसे कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है तब जाकर लेखांकन की प्रक्रिया पूरी होती है। जो नीचे दिए गए हैं –
1. वित्तीय व्यवहारों को पहचानना
2. रसीद या प्रमाणक तैयार करना
3. रोजनामचा या जर्नल बनाना
4. खाता बही बनाना
5. शुद्धता व सत्यता की जांच करना
6. अंतिम खाता तैयार करना

 

1. वित्तीय व्यवहारों को पहचानना – लेखांकन प्रक्रिया की यह प्रारंभिक चरण होता है। जिसमें व्यापार में हुए विभिन्न लेन-देनों में से वित्तीय प्रकृति वाले सौदों का पहचान किया जाता हैं।
ध्यान दें – लेखांकन में सिर्फ वित्तीय सौदों का ही लेखा किया जाता है जिसे मुद्रा (Money) के रूप में मापा जा सके।

2. रसीद या प्रमाणक तैयार करना – मूल प्रलेखों को आधार मानते हुए रसीद या प्रमाणक बनाया जाता है। प्रमाणक (Voucher) फर्म या दुकान के नाम पर पंजीयन होना चाहिए। जिस पर फर्म का नाम, पता, दिनांक व उसके बारे में लिखा हुआ होता है।

3. रोजनामचा या जर्नल बनाना – जैसा कि आपको पता ही होगा व्यापार में सर्वप्रथम जो भी लेन-देन होते हैं उसे तिथि वार प्रारंभिक पुस्तकों में रिकॉर्ड किया जाता है जिसे मूल पुस्तक कहते हैं। यह पुस्तक यानी कि यह बही को ही “रोजनामचा” कहा जाता हैं। लेखांकन प्रक्रिया के प्रथम व द्वितीय चरण के आधार पर Journal तैयार किया जाता हैं।

4. खाता बही बनाना – लेखांकन की सभी प्रक्रिया एक- दूसरे से जुड़ी होती है। वैसे में सभी का अपना एक अलग ही महत्व होता है ।जर्नल तैयार हो जाने के बाद उसमें मौजूद विभिन्न प्रकार की कई प्रविष्टियों को उचित पक्ष में लिखना होता हैं।जिसके आधार पर आगे की प्रक्रिया में कोई बाधा ना आए ।इसके लिए Journal में जिस तरह के प्रविष्टियां की गई होती हैं उसके अनुसार खाता बही में लिखा जाता है। साथ ही सभी खातों का शेष निकाला जाता है।

जर्नल को 8 सहायक पुस्तकों में विभाजित किया जाता हैं।

5. शुद्धता व सत्यता की जांच करना – वैसे तो आपने पीछे जितने भी क्रियाकलाप किए हैं क्या वह पूरी तरह से शुद्ध हैं अर्थात सही परिणाम प्रदर्शित कर रहे हैं । इसके लिए “तलपट” Trial Balance तैयार किया जाता है।लेखांकन प्रक्रिया के चौथे चरण में सभी खातों का शेष निकाला जाता है । तलपट के Debit Side में डेबिड शेष और Credit Side में क्रेडिट शेष लिखा जाता है। फिर इसके बाद डेबिट व क्रेडिट शेष का योग निकाला जाता है और परिणाम स्वरुप दोनों (डेबिट व क्रेडिट) बराबर होते हैं तो इसे शुद्ध माना जाता हैं।

6. अंतिम खाता तैयार करना – यह लेखांकन की प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण चरण माना जाता है। प्रत्येक व्यवसायी या कंपनी अंतिम खाता बनाते हैं इसे वित्तीय विवरण के नाम से भी जाना जाता है। वत्तीय विवरण खाता को तैयार करने का मुख्य आधार Trial Balance होता है।वत्तीय विवरण या अंतिम खाते के अंतर्गत मुख्य रूप से तीन खाते खोले जाते हैं-
A. व्यापारी खाता B. लाभ- हानि खाता तथा C.आर्थिक चिट्ठा।

 

लेखांकन प्रक्रिया की कितनी अवस्थाएं होती हैं?

लेखांकन प्रक्रिया के मुख्य 8 अवस्थाएं होती हैं जिनमें से से 7 ऊपर दिए गए हैं और बाकी के 2 इस प्रकार से हैं-

1. विश्लेषण व निर्वाचन करना – इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के लेखांकन अनुपातों की गणना की जाती है जिससे व्यवसाय की तरलता, शोधन क्षमता व लाभदायकता का पता चलता है। जिसके आधार पर आवश्यकता अनुसार निर्णय लिए जा सकते हैं।

2. परिणामों का संवहन – सबसे अन्त में वित्तीय विवरणों के सारांशित अभिलेखों के विश्लेषण व निर्वाचन के आधार पर निर्णय लिया जाता है। यह कार्य पेशेवर व्यक्ति के द्वारा किया जाता हैं।

 

‘लेखांकन प्रक्रिया को लेखांकन चक्र भी कहा जाता है।’

लेखांकन का अंतिम चरण क्या हैं?

लेखांकन के अंतिम चरण में वित्तीय विवरण अर्थात अंतिम खाते बनाए जाते हैं जिसके अंतर्गत मुख्य रूप से 3 खाते खोले जाते हैं-
1. Trading Account
2. Profit & Loss Account
3. Balance Sheet

Trading Account बनाने से सकल लाभ-हानि का पता चलता हैं। Profit & Loss Account बनाने से शुद्ध लाभ हानि का पता चलता है तथा Balance Sheet बनाने से व्यवसाय की वित्तीय स्थिति का पता चलता हैं।

 

 

 

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