प्रबंध के सिद्धांत से क्या आशय हैं | प्रबंध के सिद्धांत

CategoriesBusiness Studies

जैसा कि हम सब जानते हैं। प्रबंध दूसरे व्यक्तियों से कार्य कराने की एक कला है। प्रबंध के सिद्धांत एक सफल व्यवसाय के लिए हम जरूरी है, तो दोस्त आज के इस Post में मैं आपको प्रबंध के सिद्धांत से क्या आशय है, विशेषताएं, प्रकृति, आवश्यकता एवं महत्व तथा साथ ही प्रबंध के सिद्धांत कहां-कहां लागू होते हैं? उसे बताऊंगा।

प्रबंध के सिद्धांत से क्या आशय हैं?

किसी संस्था के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए प्रबंधकीय क्रिया को सफलतापूर्वक संपन्न करने हेतु जिन आधारभूत नियमों का उपयोग किया जाता है उसे “प्रबंध का सिद्धांत” (Principles Of Management) कहा जाता हैं।

प्रबंध के सिद्धांत होते क्या हैं?

प्रबंध के सिद्धांत एक आधारभूत सत्य होते हैं। जो सामान्य कारण तथा उसके परिणाम में संबंध स्थापित करते हैं। इनके आधार पर प्रबंधक अपने संस्था के भविष्य की कल्पना कर सकते हैं और साथ ही इन सिद्धांतों को ध्यान में रखकर होने वाली छोटी- मोटी गलतियों से भी बच सकते हैं।

एडविन बी. फि्लप्पो के अनुसार प्रबंध के सिद्धांत – ” एक सिद्धांत एक आधारभूत सत्य होता है और यह कारण एवं परिणाम में संबंध को स्थापित करते हैं।”

ओ’ डोनेल के अनुसार प्रबंध के सिद्धांत – ” प्रबंध के सिद्धांत सामान्य वैधता के आधारभूत सत्य हैं जो प्रबंधकीय क्रियाओं के परिणामों का पूर्वानुमान लगाने की क्षमता रखते हैं।”

प्रबंध के सिद्धांत ऐसे आधारभूत सत्य होते हैं जो कारण एवं परिणाम के संबंध को अभिव्यक्त करते हैं। इन्हें प्रबंधकों द्वारा निर्णय लेने और कार्यवाही करने के लिए दिशा-निर्देशों के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। अन्य सामाजिक विज्ञानों की भांति प्रबंध के भी कुछ निश्चित सिद्धांत होते हैं।

प्रबंध के सिद्धांत की विशेषताएं क्या होते है ? 

प्रबंध के सिद्धांतों को लागू करने से पहले उनकी विशेषताओं के बारे में समझना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा यह अंधेरे में तीर चलाने के समान होगा। प्रबंध के सिद्धांत की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

1. मानवीय व्यवहार से प्रभावित
2. सिद्धांत नियमों से अलग होते हैं
3. सिद्धांत नीतियों से अलग होते हैंं

1. मानवीय व्यवहार से प्रभावित – प्रबंध के सिद्धांतों का सीधा संबंध मनुष्य से होता है।इसके अंतर्गत मूल रूप से मानव का प्रबंध किया जाता है। अतः प्रबंध के सिद्धांत मानवीय व्यवहार से प्रभावित होते हैं और यह इसकी अहम् विशेषता होती है।

2. सिद्धांत नियमों से अलग होते हैं – प्रबंध के सिद्धांत कार्य एवं विचारों का मार्गदर्शन करते हैं जबकि नियम कार्यों को रोकने की रीति बताते हैं। नियम द्वारा बताई रिति का पालन ना करने पर दंड भोगना पड़ता है किंतु सिद्धांत के तोड़ने पर दंड की पसीधा व्यवस्था नहीं होती हैं।

3. सिद्धांत नीतियों से अलग होते हैंं – प्रबंध के सिद्धांत अनुभव, शोध एवं परीक्षण के आधार पर निर्धारित कार्य एवं विचारों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करते हैं जबकि नीतियां किसी संस्था द्वारा निर्धारित मार्गदर्शक हैं। जिनके आधार पर संस्था में निर्णय लिए जाते हैं। नीतियां सिद्धांतों के आधार पर निर्धारित की जाती है । इस प्रकार से प्रबंध के सिद्धांत एवं नीतियों में आधारभूत अंतर पाया जाता हैं।

 

प्रबंध के सिद्धांतों की प्रकृति तथा लक्षण

प्रबंध के सिद्धांतों की प्रकृति तथा लक्षण निम्नलिखित हैं जो कि नीचे इस प्रकार से दिए गए हैं-
1. गतिशीलता
2. लोचशीलता
3. सापेक्षिक
4. अनिश्चित
5. आधारभूत लेकिन अंतिम नहीं

1. गतिशीलता (Dynamic) – प्रबंध एक गतिशील वातावरण में कार्य करता है। अतः इसके सिद्धांत भी गतिशील होते हैं वे समय एवं परिस्थितियों के साथ परिवर्तित होते रहते हैं। उनमें सुधार भी होता है। ऐसा प्रबंध के क्षेत्र में शोध एवं परीक्षण के कारण होता हैं।

2. लोचशीलता (Flexibility) – प्रबंध के सिद्धांतों की एक प्रकृति यह भी है कि इसके सिद्धांत लोचशील होते हैं। इन्हें परिस्थितियों के अनुसार समायोजित किया जा सकता है।

3. सापेक्षिक (Relative) – अर्थशास्त्र के सिद्धांत की तरह प्रबंध के सिद्धांत भी सापेक्षिक होते हैं अर्थात परिस्थितियों में परिवर्तन होने पर प्रबंध के सिद्धांत का अपेक्षिक प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके सिद्धांत परिस्थितियों से जुड़े होते हैं।

 

4. अनिश्चित (Indeterminate) – प्रबंध के सिद्धांत अनिश्चित होते हैं इस पर परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता है अतः परिस्थितियों के अनुसार लागू करने अथवा ना करने का निर्णय लिया जाता हैं।

5. आधारभूत लेकिन अंतिम नहीं – प्रबंध के सिद्धांत आधारभूत तथा सभी जगह मान्य होते हैं। यह कार्य व्यवहार एवं विचारों के मार्गदर्शक मात्र होते हैं ना कि इनके लिए नियम या कानून । प्रबंध एक सामाजिक विज्ञान है जिसके सिद्धांत अनुभव, शोध, परिक्षण के आधार पर बनते हैं । जब कुछ भिन्न अनुभव होता है तो उस पर शोध एवं परीक्षण कर के कुछ नए सिद्धांत बनाए जाते हैं। इस प्रकार से प्रबंध के सिद्धांत अंतिम नहीं होते हैं।

 

प्रबंध के सिद्धांतों की आवश्यकता एवं महत्व

प्रबंध के सिद्धांत प्रबंधकों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। उनके लिए यह सिद्धांत “लैम्प पोस्ट” का कार्य करते हैं इन्हीं के आधार पर वे अपने प्रबंध के कार्य को करने की कोशिश करते हैं इस प्रकार से प्रबंध के सिद्धांतों की आवश्यकता तथा महत्व निम्नलिखित हैं-

1. कार्य कुशलता में वृद्धि
2. कार्य प्रणाली में विकास
3. प्रशिक्षण में सुविधा
4.सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति
5.जटिल समस्याओं का समाधान

1. कार्य कुशलता में वृद्धि – प्रबंध के सिद्धांत के आधार पर प्रबंधक संस्था की समस्याओं का अच्छा समाधान ढूंढ सकता है। परिणाम स्वरूप संपूर्ण संस्था की कार्य कुशलता में वृद्धि होती है।

2. कार्य प्रणाली में विकास – प्रबंध के सिद्धांत के आधार पर प्रबंधक अपनी समस्याओं तथा कार्यों के संबंध में सही दृष्टिकोण से विचार कर सकते हैं तथा कार्य प्रणाली का विकास कर सकते हैं।

3. प्रशिक्षण में सुविधा – प्रबंध के सिद्धांत का विकास होने से प्रबंध का व्यवस्थित प्रशिक्षण दिया जा सकता है। जो संस्था के कार्य प्रणाली में सुधार के साथ संस्था के विकास के लिए आवश्यक होता है।

4.सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति – प्रबंध के सिद्धांत के विकास एवं उपयोग से संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है। इससे समाज के लोगों को अधिक संतुष्टि एवं अच्छा जीवन स्तर उपलब्ध होता है। परिणाम स्वरूप सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति होती है।

5.जटिल समस्याओं का समाधान– प्रबंध के सिद्धांत के विकास से जटिल समस्याओं का समाधान किया जा सकता है क्योंकि प्रबंध के सिद्धांत व्यवसाय के गतिशील वातावरण एवं इसके प्रभावों को समझने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

प्रबंध के सिद्धांत कहां-कहां लागू होते हैं?

प्रबंध के सिद्धांत सार्वभौमिक होते हैं अर्थात यह सभी जगह पर लागू किया जाता है। प्रबंध के सिद्धांत संगठन के आकार व प्रकार को ध्यान में रखें बिना सभी स्थितियों में प्रभावपूर्ण होते हैं। सभी प्रकार की समस्याओं के लिए यह सिद्धांत सामान्य रूप से प्रभावी होते हैं।यह सिद्धांत एक व्यवसायिक संगठन की कार्यप्रणाली में जितने उपयोगी होते हैं उतने ही उपयोगी एक सरकारी संगठन की कार्यप्रणाली में भी होते हैं। यह सिद्धांत एक सैनिक इकाई, अस्पताल या किसी भी अन्य दल की कार्यवाही के प्रशासन में भी बहुत उपयोगी होते हैं।

उपभोक्ता संरक्षण त्रिस्तरीय तंत्र  क्या है ?

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986   kya  hai ?

About the author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *