प्राप्ति एवं भुगतान खाता

आपने पिछले आर्टिकल में अलाभकारी संगठन के बारे में जाना तथा इनके द्वारा कितने खाते तैयार किए जाते हैं उसे भी जाना। उसी खाते में से एक खाता प्राप्ति एवं भुगतान खाता है जिसे आज के आर्टिकल में जानेंगे।

इसमें प्राप्ति एवं भुगतान खाता का परिभाषा, विशेषता, उदाहरण, दिखाई जाने वाली मदें, सीमाएं, प्रारुप तथा उसको कैसे बनाया जाता है एवं इस पोस्ट के अंत में कुछ FAQs भी दिया गया हैं।

1. प्राप्ति क्या होता हैं?

साधारण शब्दों में प्राप्ति से आशय कुछ पाने से है बिजनेस में (लाभ न कमाने वाली संस्था) जो पैसे आते हैं उन्हें प्राप्ति कहा जाता है और प्राप्त किए गए पैसे को जिस खाता में लिखा जाता है उसे ‘प्राप्ति खाता‘ Recepits Account कहते हैं।

2. भुगतान क्या हैं?

भुगतान से आशय कुछ देने से है लाभ न कमाने वाली संस्था में जो पैसे समाज के कल्याण, सदस्यों का कल्याण तथा किसी अन्य कार्यों में दिया जाता है यह क्रिया ही भुगतान कहलाता है एवं भुगतान किए गए पैसों को लिखने के लिए जो खाता बनाया जाता है उसे “भुगतान खाता” Payments Account कहा जाता है।

मुझे उम्मीद है अब आप प्राप्ति, प्राप्ति खाता, भुगतान तथा भुगतान खाते के बारे में समझ गए हैं।

 

A. प्राप्ति एवं भुगतान खाता क्या हैं?

यह खाता (प्राप्ति एवं भुगतान) नकद तथा बैंक लेनदेन के विभिन्न शीर्षकों का सारांश होता है। प्राप्ति एवं भुगतान खाता एक अवधि के रोकड़ बही के मद सार मात्र से कुछ भी अधिक नहीं है यह खाते का एक ऐसा प्रारूप होता है जिसका अधिकांश प्रयोग क्लबों, संघो तथा समितियों आदि के कोषाध्यक्ष द्वारा वर्ष के कार्य संचालन के परिणामों को प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है। यह खाता रोकड़ पद्धति के आधार पर तैयार किया जाता है।

“Receipts and Payments Account is a Summary of Cash and Bank Transaction Under Various Heads.”

Example of Receipts and Payments Account

हॉल का किराया, बागवानी (बगीचा) , सवारी, बैंक शुल्क, निवेश, डाक एवं कुरियर, अंकेक्षण शुल्क, बीमा , समर्थित निधि, स्क्रैप की बिक्री आदि ।

Rent of hall, Gardening, Conveyance, Bank charge, Investment, Postage and Courier, Audit Fees , Insurance, Endowment fund, Sell of scrap etc.

 

B. प्राप्ति एवं भुगतान खाता की तीन विशेषताएं बताइए

इस खाते की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित होती हैं-

  1. इस खाते में गैर रोकड़ मद जैसे कि हृास, उपार्जित आय आदि नहीं लिखे जाते हैं।
  2. यह रोकड़ पद्धति के आधार पर बनाया जाता है।
  3. इसमें सभी प्राप्तियां चाहे वह आयगत मद की हो या फिर पूंजीगत मद सभी को डेबिट पक्ष में प्रदर्शित किया जाता है।
  4. जितने भी भुगतान होते हैं चाहे वह आयगत हो या पूंजीगत मद सभी को क्रेडिट पक्ष में प्रदर्शित किया जाता है।
  5. इस खाते की मुख्य विशेषता यह है कि इस खाते के डेबिट भाग में Opening Balance व क्रेडिट भाग में सबसे नीचे Closing लिखना होता है। यह इसका प्रारूप होता है।

 

C. प्राप्ति और भुगतान खाते की सीमाएं या दोष

प्राप्ति और भुगतान खाते के अगर लाभ (जो विशेषता में दिए गए हैं) है तो इसके कुछ सीमाएं भी होते हैं जो नीचे प्रकार से दिए गए हैं-

  • इस खाते को लेखांकन के उपार्जन आधार पर तैयार नहीं किया जाता हैं।
  • यह खाता लेखांकन वर्ष के अंत में Surplus या Deficits को प्रदर्शित नहीं करता है।
  • यह लेखांकन वर्ष के आय एवं व्यय के संबंध में किसी भी प्रकार की सूचनाएं प्रदान नहीं करता है यह केवल आय एवं व्यय की नकद राशि की सूचना प्रदान करता है।
  • इससे संस्था की वित्तीय स्थिति का Valuation नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह सिर्फ नकद व्यवहारों का ही लेखा प्रकट करता है।
  • प्राप्ति एवं भुगतान खाता में ‘Depreciation‘ को नहीं दिखाया जाता हैं।

 

D. प्राप्ति एवं भुगतान खाते में दिखाई जाने वाली मदें हैं?

यह खाता में दो पक्ष होता है प्रथम प्राप्ति Receipts Side और दूसरा भुगतान Payment Side । प्राप्ति भाग में दिखाई जाने वाली मदों की सूची है इसे आयगत एवं पूंजीगत प्राप्ति में बांटकर लिखा गया है-

प्राप्ति पक्ष में लिखे जाने वाली मदें –

आयगत प्राप्ति के अंतर्गत – प्रवेश शुल्क, चंदा, सामान्य दान, निवेश पर ब्याज, ब्याज एवं लाभांश, मनोरंजन से प्राप्त, पुराने कागज की बिक्री , दान सो से प्राप्ति आदि ।

Entrance fees, Subscription, General Donation, Interest on Investment, Interest and Dividend, Proceeds from Entertainment , Sale of Old Paper, Proceeds from Charity Show etc.

पूंजीगत प्राप्ति के अंतर्गत – निवेश का विक्रय, विनियोग, वसीयत, विशेष दान, आजीवन सदस्यता शुल्क, स्थायी संपत्तियों की बिक्री, समर्थित निधि आदि ।

Sale of Investment, Investment, Special Donation, Life Membership Fees, Sales of Fixed Assets, Endowment Fund etc.

 

भुगतान पक्ष में दिखाई जाने वाली मदों की सूची

आयगत भुगतान – सवारी, टेलीफोन, किराया, दर एवं कर, वेतन एवं मजदूरी, बीमा, अंकेक्षण शुल्क, विज्ञापन, मनोरंजन व्यय, समाचार पत्र, जल एवं बिजली, मानदेय, नगर पालिका, नगर निगम कर आदि।

Conveyance , Telephone , Rent Rates and Taxes, Salaries and Wages, Insurance, Audit fees, Printing and Stationery, Advertisement, Entertainment Expenses, News Paper, Water and Electricity, Honorarium , Municipal, Municipal Corporation Taxes etc.

पूंजीगत भुगतान – पुरस्कार कोष विनियोग, फिक्स डिपाजिट, पुस्तकों का खरीद, स्थाई संपत्तियों का क्रय फर्नीचर भवन बिल्डिंग आदि ।

Price Fund Investment, Fixed Deposit, Investment, Purchase of books, Purchase of Fixed Assets Furniture Building etc.

 

E. प्राप्ति और भुगतान खाते का प्रारूप

प्राप्ति और भुगतान खाते का प्रारूप
प्राप्ति और भुगतान खाते का प्रारूप

3. प्राप्ति एवं भुगतान खाते के बारे में ध्यान रखे जाने वाली मुख्य बातें

  1. इसमें पूर्वदत्त व्यय, उपार्जित आय, उपार्जित आय तथा उधार लेन-देन का लेखा नहीं किया जाता है।
  2. इस खाते में हमेशा वास्तविक रोकड़ से ही लेखा किया जाता है।
  3. यह खाता में चालू वर्ष में नकद लेन- देन का लेखा किया जाता है चाहे वह पिछले वर्षों से संबंधित हो या फिर आने वाले अगले वर्ष से।
  4. Non-Cash Items जैसे कि हृास का लेखा नहीं होता हैं।
  5. यह खाता रोकड़ का अंतिम कोष प्रकट करता है।

 

4. प्राप्ति तथा भुगतान खाते को बनाने की प्रक्रिया या चरण

खाता कोई भी हो उसको तैयार करने का एक Format होता है चरण होता है। इस खाते को 5 चरण में तैयार किया जाता है-

चरण संख्या 1 – सबसे पहले प्राप्ति पक्ष यानी कि Dr. की ओर में प्रारंभिक शेष लिखा जाता है हम इसके अंतर्गत Cash in Hand, Cash at Bank लिखते हैं। यदि Bank Overdraft हो तो इसे क्रेडिट पक्ष में प्रारंभिक शेष के अंतर्गत दिखाया जाएगा।

2 – अब सभी प्राप्तियां मदों को Dr. पक्ष में लिखेंगे चाहे पूंजीगत प्रकृति को या फिर आयगत प्रकृति की हो।

3 – सभी भुगतान (व्यय) की मदों को क्रेडिट पक्ष में लिखा जाएगा यह भी पूंजीगत या आयगत प्रकृति की भी क्यों ना हो। यह भूतकाल, वर्तमान व भविष्य की अवधि से संबंधित हो सकता है।

 4 – चरण चार में गैर- रोकड़ मद से संबंधित किसी भी Item को नहीं लिखा जाएगा क्योंकि इनसे रोकड़ का Inflow या Outflow नहीं होता है।

5 – प्राप्ति और भुगतान खाते का अंतिम चरण में डेबिट व क्रेडिट पर का जोड़ करें तथा क्रेडिट भाग की कुल राशि से इसका अंतर निकालें और अंतर की Cr. राशि को क्रेडिट साइड में Closing Balance के अंतर्गत Cash in Hand , Cash at Bank में लिखें।

नोट – यदि क्रेडिट पक्ष का जोड़ डेबिट पक्ष के जोड़ से अधिक हो तो अंतर की राशि को प्राप्ति और भुगतान खाते के डेबिट भाग में बैंक अधिविकर्ष के रूप में लिखेंगे।

 

FAQs

अक्सर विद्यार्थियों के मन में कंफ्यूज करने वाले प्रश्न

प्रश्न संख्या 01 – प्राप्ति और भुगतान खाते की प्रकृति हैं?
उत्तर- वास्तविक खाता ( Real Account )

प्रश्न संख्या 02 – प्राप्ति एवं भुगतान खाता क्यों बनाया जाता हैं?
उत्तर – इस खाते को अलाभकारी संस्था के द्वारा बनाया जाता हैं। बनाने का कारण यह है कि संस्था के पास कितना पैसा इकट्ठा है और उसका इस्तेमाल किस-किस कार्यों में करने में किया गया है उसे जानने हेतु।

प्रश्न संख्या 03 – प्राप्ति एवं भुगतान खाता का शेष सदैव क्या होता हैं?
उत्तर – यह खाता का शेष ‘Surplus या “Deficit” को प्रकट नहीं करता है बल्कि यह रोकड़ के आधार पर तैयार किया जाता है।

प्रश्न संख्या 04 -प्राप्ति एवं भुगतान खाता हैं?
1. व्यक्तिगत खाता 2. वास्तविक खाता 3. अवास्तविक खाता 4. लाभ हानि खाता।
उत्तर – वास्तविक खाता

आपने आज सीखा:

इस आर्टिकल में आज आपने प्राप्ति एवं भुगतान खाता के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त किए। छोटी सी छोटी बातों को आसान शब्दों में बताया गया है। इस आर्टिकल से संबंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेंट करें। अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद।

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