अंकेक्षण एक महत्वपूर्ण कार्य है। यह सभी प्रकार के व्यवसाय के लिए आवश्यक है। व्यवसाय कई तरह के होते हैं जैसे एकाकी व्यापार, साझेदारी व्यापार, संयुक्त हिंदू परिवार व्यापार, कंपनी, सरकारी तथा निजी आदि। आज के इस नई आर्टिकल में विभिन्न संस्थाओं का अंकेक्षण के बारे में चर्चा करेंगे।
विभिन्न संस्थाओं का अंकेक्षण
एक से अधिक संस्थाओं का अंकेक्षण करना ही विभिन्न संस्थाओं का अंकेक्षण कहलाता है। इसमें आपको कुछ संस्थाओं के खातों का अंकेक्षण के बारे में बताया गया है जो इस प्रकार से दिए गए हैं
- शिक्षण संस्थाओं के खातों का अंकेक्षण
- अस्पताल के खातों का अंकेक्षण
- शैक्षणिक संस्थाओं के भविष्य निधि खाते का अंकेक्षण
- बैंकिंग कंपनी के खाते का अंकेक्षण
- सरकारी कंपनियों का अंकेक्षण
शिक्षण संस्थाओं के अंकेक्षण की विधि
शिक्षण संस्थाओं के अंतर्गत विद्यालय, कॉलेज तथा महाविद्यालय को शामिल किया जाता है। ऐसी संस्थाओं का कानूनी रूप से अंकेक्षण अनिवार्य नहीं है लेकिन अंकेक्षण की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए शिक्षा निदेशालय तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा इन संस्थाओं को अंकेक्षण करवाने के लिए कहते हैं। अंकेशण कार्य करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना होता है जो इस प्रकार से दिए गए हैं-
आय यानी इनकम के स्रोतों का अंकेक्षण
बिजनेस चाहे जो भी हो सरकारी, गैर सरकारी संचालित करने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है। एक अंकेक्षक को शैक्षणिक संस्थाओं के आय के स्रोतों का अंकेक्षण करते समय काफी ध्यान रखना चाहिए।
- विद्यार्थी ने नामांकन (Enrollment)के समय जो फीस दिया है उसके बदले में उसे रसीद दिया गया है या नहीं। यदि हां तो उसका लेखा हुआ है या नहीं। (रशीद की जांच कार्बन पेपर से करनी चाहिए।)
- यदि विद्यार्थी से एडवांस फीस मिला है तो उसका उचित एडजस्टमेंट किया गया है या नहीं।
- छात्र से विलंब शुल्क वसूल किया गया है तो उसका लेखा पुस्तक में हुआ है या नहीं।
- संस्था के निजी संपत्ति बेची जाती है तो उसका भी जांच किया जाना चाहिए।
- यदि जनता का पैसा किसी दूसरे जगह निवेश है तो उससे प्राप्त लाभांश या ब्याज की जांच की जानी चाहिए। अगर संस्था के पास छात्रावास की सुविधा है तो उससे आने वाले आय की भी जांच होनी चाहिए।
- संस्था को यदि आय चंदा, दान, फंड के रूप में प्राप्त होता है तो उसका उचित लेखा हुआ है या नहीं उसकी जांच प्राप्ति रसीद से की जान चाहिए।
- यदि किसी छात्र या छात्रा का पैसा माफ किया गया है तो वह अधिकृत अधिकारी द्वारा स्वीकृत है या नहीं।
- सरकार से प्राप्त आर्थिक सहायता की राशि की जांच तथा उसका इस्तेमाल किस कार्य को करने के लिए किया गया है काफी सावधानी व गहन जांच करते हुए करना चाहिए।
- विद्यार्थी के नामांकन करने हेतु नामांकन फॉर्म से कितनी राशि प्राप्त हुई है उसका जांच होना चाहिए।
- अगर मेंटेनेंस चार्ज के रूप में पैसा वसूल किया गया है तो उसे अवश्य निरीक्षण करना चाहिए।
शिक्षण संस्थाओं की स्थापना संबंधी कानूनों का अध्ययन
विद्यालय तथा कालेजों की स्थापना सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1807 के अंतर्गत किया जाता है। ठीक वैसे ही विश्वविद्यालय की स्थापना संसद अथवा विधानसभा के विशेष अधिनियम के द्वारा होता है। अंकेक्षण को अपना कार्य शुरू करने से पहले इनके नियम, प्रावधानों को काफी अच्छे से समझ लेना चाहिए फिर उसके बाद में अगला कदम बढ़ाना चाहिए। कुछ शैक्षणिक संस्थाएं Affiliated और कुछ Constituent होते हैं उसके संबंध में आवश्यक जानकारी प्राप्त कर लेना चाहिए।
विश्वविद्यालय में यह कार्य सिंडीकेट के अधीन होता है। अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि संस्थाओं में लेखा पुस्तक नियम के अनुसार रखा गया है या नहीं।
शैक्षणिक संस्थाओं के संपत्ति की जांच
एक अंकेक्षक को शैक्षणिक संस्थाओं की संपत्ति की जांच करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना होता है-
- संस्था के पास जो संपत्ति है उस पर उसका स्वयं का अधिकार है या किसी और का।
- यदि संस्था को आय अनुदान, चंदा से प्राप्त हुआ है और उस पैसे से संपत्ति क्रय की गई हो तो उसका जांच करना चाहिए।
- दान की शर्तों को ध्यान में रखना चाहिए।
- अंकेक्षक को देखना चाहिए कि संपत्ति का लेखा सही-सही नियम के साथ रजिस्टर में हुआ है या नहीं।
- विनियोगओ का भौतिक सत्यापन (Verification) करना चाहिए।
- अंकेक्षक को संपत्ति जांच करते समय रोकड़ एवं बैंक में रोकड़ की जांच काफी सावधानी से की जानी चाहिए। यदि प्रबंधक आदि के नाम से खाता खोला गया है तो उससे संबंधित सौदों को भी देखना चाहिए।
- उसे यह भी देखना चाहिए कि संपूर्ण संपत्तियों को बैलेंस शीट में प्रदर्शित किया गया है या नहीं।
शैक्षणिक संस्थाओं के दायित्व का निरीक्षण
जिस प्रकार से एक अंकेक्षण के लिए जितना महत्वपूर्ण संपत्ति की जांच करना होता है वैसे ही दायित्व का निरीक्षण करना भी होता है। दायित्व के निरीक्षण करते समय अंकेक्षक को निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
- अंकेक्षक को यह पता करना चाहिए कि संस्था का दायित्व कितना है अर्थात उसे बैलेंस शीट में देखना चाहिए कि संपूर्ण दायित्व का लेखा हुआ है या नहीं।
- अगर कोई बकाया दायित्व है तो वह मौजूद है कि नहीं उसकी जांच करनी चाहिए।
- आर्थिक चिट्ठा में देखना चाहिए कि सभी दायित्वों का मूल्य सही-सही एवं नियमों के अनुसार लिखे गए है या नहीं। ऐसा भी ना हो दायित्व वाले कॉलम में संपत्ति एवं संपत्ति वाले कॉलम में दायित्व को लिख दिया गया हो।
- अगर अंकेक्षक को संस्था के दायित्व के संबंध में कुछ गड़बड़ी लगता है तो उसे गहन जांच करनी चाहिए।
- गहन जांच करते समय संस्था के अभ्यंतर कार्यरत व्यक्ति से पूछताछ करने चाहिए।
शैक्षणिक संस्था द्वारा किए गए व्यय की मदें
इसके अंतर्गत संस्था द्वारा स्टेशनरी (किताब-कॉपी, कलम आदि) या कोई अन्य चीज खरीदी गई है तो उसके भुगतान की गहन जांच की जानी चाहिए।
- अंकेक्षक को यह महसूस हो कि किसी खास मद में जरूरत से अधिक व्यय को शामिल कर दिया गया है तो उसकी भी जांच करनी चाहिए।
- यदि किसी कर्मचारी का वेतन बढ़ाया गया है तो यह अधिकृत अधिकारी से स्वीकृत था या नहीं इस संबंध में जांच करना चाहिए।
- छात्रों द्वारा सुरक्षा कोष में जमा की गई राशि को वापस किया गया है या नहीं एवं इसका लेखा दायित्व पर्क्ष में किया गया था या नहीं।
- यदि किसी कर्मचारी, व्यक्ति को लोन दिया गया है तो क्या यह संस्था के अधिकार में था या नहीं।
- कोई दान विशेष उद्देश्य को पूरा करने हेतु प्राप्त हुआ है तो उसका उपयोग उस काम को करने में हुआ है या नहीं।
- छोटी रोकड़ (Peety Cash) की राशि का गलत उपयोग तो नहीं किया गया है संपूर्ण जांच करना चाहिए।
सामान्य मदों की जांच के संबंध में
- P.F से संबंधित राशि को विनियोग देना चाहिए एवं इससे बैलेंस हित में दायित्व पर्स में दिखाना चाहिए।
- यह भी देखना चाहिए कि लाभांश या प्रतिभूतियों पर ब्याज से काटा गया आयकर वापस मांगा गया है या नहीं क्योंकि ऐसी आयो पर संस्था को आयकर (Income Tax)सामान्य रूप से नहीं देना होता है।
- आयगत एवं पूंजीगत व्यय के बीच अंतर को स्पष्ट किया गया है या नहीं। यदि किया गया है तो उसके संबंध में जितने भी लेखें किए गए हैं क्या वह सभी नियम का पालन कर रहे हैं।
- पारितोषिक पुंजी कोषों का प्रतिनिधित्व करने वाले विनियोगों को सामान्य विनियोग से अलग किया गया है या नहीं।
- फर्नीचर, वस्तु, स्टाक आदि की जांच करनी चाहिए और साथ ही यह भी देखना चाहिए कि इनका मूल्य, सही कॉलम, सही नियम के साथ लिखे गए या नहीं।
अस्पताल के खातों का अंकेक्षण करना
अस्पताल के खातों का अंकेक्षण करते समय अंकेक्षक को काफी सावधानी बरतते हुए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए।
सामान्य बातों के संबंध में
- सबसे पहले अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि अस्पताल की स्थापना कब हुई है। स्थापना सरकार के द्वारा हुई है या फिर किसी ट्रस्ट के द्वारा इसके संबंध में जांच करना चाहिए।
- अगर स्थापना ट्रस्ट के द्वारा हुआ है तो प्रन्यास पत्र चेक करना चाहिए या फिर सरकार के द्वारा हुआ है तो रजिस्ट्रेशन नंबर, लाइसेंस आदि देखना चाहिए।
- संस्था में आंतरिक निरीक्षण की प्रणाली का उपयोग हुआ है या नहीं। यदि हाँ तो आंतरिक निरीक्षण पत्र की जांच करके व्याप्त गलतियों की जांच करनी चाहिए।
पैसे प्राप्त होने की जांच करना
प्रत्येक व्यवसाय का आय प्राप्त होने का कुछ ना कुछ स्रोत होता है। बिना इसके व्यवसाय संचालित हो ही नहीं सकता। एक हॉस्पिटल में भी आय प्राप्त होने के विभिन्न स्रोत होते हैं उनका निरीक्षण भी काफी सावधानी के साथ किया जाना चाहिए।
- सरकारी सहायता प्राप्त हुई हो तो इसकी जांच संबंधित प्रपत्र के आधार पर की जानी चाहिए।
- चंदे एवं दान की जांच उचित प्रमाणक से की जानी चाहिए।
- मरीजों से वसूली गई रकम की जांच रशीद की प्रतिलिपि तथा रजिस्टर से मिलान करके करना चाहिए।
- यदि कोई Donation विशेष उद्देश्य से प्राप्त हुई हो तो अंकेक्षक को देखना चाहिए कि उस रकम का उद्देश्य के अनुसार खर्च किया गया है या नहीं।
भुगतान की जांच करना
- अंकेक्षक को देखना चाहिए कि प्रत्येक व्ययअधिकृत अधिकारी से स्वीकृत है या नहीं।
- हॉस्पिटल द्वारा मरीजों के लिए कमरा दिए जाने पर उन से वसूल की जानेवाली पैसों के बारे में जांच की जानी चाहिए और सब का रजिस्टर से मिलान करना चाहिए।
- अंकेक्षक को देखना चाहिए कि पूंजीगत एवं आयगत मदें ठीक- ठीक से लिखे गए हैं या नहीं।
- बिजली,पानी आदि की जांच की जानी चाहिए
- मरीजों को दिए जाने वाले फल, भोजन, दवाई, दूध आदि की जांच संबंधित प्रामाणक से की जानी चाहिए। यह सुविधाएं केवल सरकारी हॉस्पिटल में ही प्रदान किए जाते हैं।
शैक्षणिक संस्था के भविष्य निधि खाते का अंकेक्षण
ऐसे तो मान्यता प्राप्त संस्थाओं में वैधानिक भविष्य निधि खाता रखा जाता है तथा कालेज एवं विश्वविद्यालय में Contributory Provident Fund की व्यवस्था रहती है। इस कोष में जितनी राशि नियम अनुसार कर्मचारी सदस्य की काटी जाती है उतनी ही राशि विश्वविद्यालय या कॉलेज द्वारा कर्मचारी के भविष्य निधि खाते में जमा कर दिया जाता है। इसका अंकेक्षण करते समय अंकेक्षक को निम्न बातों पर ध्यान रखना चाहिए-
- संस्था के द्वारा भविष्य निधि खाते की नियमावली का अनुसरण किया जा रहा है या नहीं।
- अंकेक्षक को देखना चाहिए कि खाते से दिए गए लोन की स्वीकृति एवं वापसी नियम के अनुसार ही किया गया है या नहीं।
- कोष में जमा धनराशि पर प्राप्त ब्याज का सही समायोजन किया गया है या नहीं।
- वेतन रजिस्टर की जांच कर यह पता लगाना चाहिए कि भविष्य निधि खाते में विधिवत ढंग से राशि जमा की गई है या नहीं।
- ऋण वापसी की व्यवस्था वेतन से प्रतिमाह काटकर की गई है या नहीं। किस्त की भी जांच करनी चाहिए।
बैंकिंग कंपनी के खाते का अंकेक्षण
बैंकिंग कंपनियों का संचालन भारत में बैंकिंग अधिनियम 1949 के अंतर्गत होता है। बैंकिंग कंपनी के वार्षिक खाते का उल्लेख धारा 29 एवं 30 के अंतर्गत क्रमशः किया गया है साथ ही इस धारा में अंकेक्षण की व्यवस्था का भी वर्णन है। बैंकिंग कंपनी के लाभ-हानि खाता एवं आर्थिक चिट्ठा धारा 29 के अंतर्गत बनाया जाता है एवं यही धारा के अनुसार अंकेक्षण के द्वारा बनाए जाते हैं। बैंकिंग कंपनियों के खातों का अंकेक्षण करते समय अंकेक्षक को ध्यान में रखी जाने वाली बातें –
- अंकेक्षक को देखना चाहिए कि उसकी नियुक्ति कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार की गई है या नहीं।
- बैंक के लाभ-हानि विवरण एवं Balance Sheet बैंकिंग अधिनियम की धारा 29 के अनुसार बनाए गए हैं या नहीं।यदि किसी अंकेक्षण के द्वारा तैयार किए गए हैं तो अधिनियम की धारा 30 को ध्यान में पूरी तरह से रखा गया है या नहीं।
- बैंक में आंतरिक जांच की प्रणाली अपनाई जा रही है तो उसका गहन जांच की जानी चाहिए।
Conclusion :
तो दोस्तों आशा करता हूं कि आपको विभिन्न संस्थाओं का अंकेक्षण से आपके सारे समस्या दूर हो गए होंगे। इस पोस्ट को लिखने में काफी मेहनत लगा है। इस पोस्ट को अपने पूरे व्हाट्सएप ग्रुप में शेयर करें। अगर कोई प्रश्न है तो नीचे कमेंट करें।