बाजार मूल्य से आप क्या समझते हैं। इसको जानने से पहले आपको बाजार और मूल्य दोनों के बारे में काफी अच्छे से जाना होगा तब जाकर आप अपने प्रोडक्ट को बाजार में उतार कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। तो आइए समझते हैं बाजार का अर्थ क्या होता हैं?
बाजार का अर्थ क्या हैं?
बाजार शब्द से आश्य एक ऐसे स्थान या फिर जगह से होता है जहां पर क्रेता और विक्रेता उपस्थित होकर आपस में लेन-देन करते हैं। लेन-देन में वस्तु, सामग्री या सेवाएं शामिल हो सकती हैं।
मूल्य से क्या आश्य हैं?
सामान्य अर्थ में किसी वस्तु को खरीदने के लिए जो पैसे दिए जाते हैं वह उस वस्तु का मूल्य (दाम) कहलाता हैं। इस मूल्य में वस्तु की लागत, मुनाफा आदि सभी कुछ सम्मिलित होती हैं।
बाजार मूल्य क्या हैं?
जो मूल्य अति अल्पकालीन बाजार में प्रचलित रहता है उसे बाजार मूल्य कहते हैं। इस प्रकार से ,
बाजार मूल्य ऐसे बाजार में होता है जिसकी अवधि कुछ घंटों, कुछ दिनों अथवा कुछ सप्ताहों की होती हैं। यह मूल्य, मांग और पूर्ति के अस्थायी संतुलन के द्वारा निर्धारित होता है जिसमें मांग पक्ष का प्रभाव पूर्ति पक्ष की अपेक्षा अधिक रहता है।
पूर्ति प्रायः स्थिर रहती है और मूल्य में परिवर्तन मांग में परिवर्तन होने से होता हैं। पूर्ति स्थिर रहने से यदि मांग बढ़ती है तो मूल्य भी घट जाता है।
अस्थायी संतुलन का अर्थ है कि मांग और पूर्ति का अभियोजन तथा सामंजस्य स्थिर नहीं होता और कुछ समय में बदलता रहता है जिसके फलस्वरूप बाजार मूल्य भी बहुत अधिक परिवर्तनशील होता है।
स्टीगलर के शब्दों में – बाजार मूल्य समय की उस अवधि के मूल्य को कहते हैं जिसमें वस्तु की पूर्ति स्थिर रहती हैं।
बाजार मूल्य का निर्धारण कैसे होता हैं?
बाजार मूल्य मांग और पूर्ति के अस्थायी संतुलन के द्वारा निर्धारित होता है जो अल्पकालीन मूल्य होता हैं। अल्पकालीन बाजार में पूर्ति स्थिर रहती है और मूल्य निर्धारण में मांग की प्रधानता रहती हैं। बाजार मूल्य के निर्धारण में मांग और पूर्ति दोनों ही शक्तियां कार्यरत रहती है लेकिन पूर्ति की अपेक्षा मांग की प्रधानता अधिक रहती हैं। यह इसलिए होता है कि अति अल्पकालीन बाजार में मांग में होने वाले परिवर्तन के अनुसार पूर्ति में परिवर्तन नहीं होता।
यदि मांग बढ़ जाती है तो मूल्य भी बढ़ जाता है और विक्रेता को बहुत अधिक लाभ होता हैं। यदि मांग घट जाती है तो मूल्य घट जाता हैं और विक्रेता को हानि होता है लेकिन यह नहीं समझना चाहिए कि पूर्ति का मूल्य पर कुछ भी प्रभाव नहीं होता हैं। पूर्ति का भी प्रभाव पड़ता हैं।
जैसा कि प्रो मार्शल ने लिखा है कि……….
जिस प्रकार किसी वस्तु को काटने में कैंची की दोनों ही धार की जरूरत होती है कैंची की स्थिर धार की अपेक्षा चलायी जाने वाली धार अधिक क्रियाशील रहती है, अधिक महत्व रखती है, उसी प्रकार बाजार मूल्य में भी मांग और पूर्ति दोनों का ही रहना जरूरी है परंतु मूल्य निर्धारण में पूर्ति की अपेक्षा मांग का महत्व अधिक होता हैं।
बाजार में मूल्य का निर्धारण कैसे होता है?
बाजार मूल्य प्रायः नाशवान वस्तुओं ( Perishable Goods ) का होता हैं। ऐसी वस्तुओं की पूर्ति मांग के बढ़ने- घटने के साथ बढ़ायी-घटायी नहीं जा सकती।
जैसे दूध शार्क मछली का बाजार अतुल कालीन बाजार होता है मछली के मूल्य निर्धारण के उदाहरण से बाजार मूल्य के निर्धारण को अधिक स्पष्ट किया जा सकता है
मछली एक नाशवान वस्तु हैं। बाजार में हर समय उसकी पूर्ति भी निश्चित नहीं होती हैं। मछली का विक्रेता चाहता है कि मछली जल्दी ही बिक जाए अगर ऐसा नहीं होता है तो वह खराब हो जाता है और विक्रेता को घाटा लग जाता है। परंतु मछली के मूल्य निर्धारण में मांग की प्रधानता होती हैं।
यदि खरीदने वालों की मांग अधिक होगी तो विक्रेता मछली का मूल्य बढ़ा देता हैं। इस प्रकार मांग घटने से मूल्य भी घट जाता है और बढ़ने से मूल्य भी बढ़ जाता है यदि विक्रेता कम मूल्य पर मछली बेचना नहीं चाहेगा तो मछली उसी के पास रह जाएगी और खराब हो जाएगी और उसे कुछ भी पैसा नहीं मिल पाएगा। इसलिए वह कम मूल्य पर बेचने को तैयार हो जाता है।