आहरण पर ब्याज की गणना

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आहरण पर ब्याज की गणना कैसे की जाती है और साझेदार के ऋण पर ब्याज किस दर से दिया जाता है । आज के पोस्ट में यही जानेगे ।

आहरण पर ब्याज की गणना कैसे की जाती है 

1. यदि कोई सझेदार प्रत्येक माह के प्रारंभ में निश्चित राशि का आहरण करता है और आहरण की राशि एकसमान हैं तो ब्याज की गणना आहरण की कुल राशि पर 6 पूर्णांक 1/2 माह के लिए की जाएगी।

सुत्र-
आहरण पर ब्याज = आहरण की कुल राशि × ब्याज की दर/100×6.5/12

2. यदि कोई साझेदार प्रत्येक माह के अंत में निश्चित राशि का आहरण करता है तो ब्याज की गणना आहरण के कुल राशि पर 5 पूर्णांक 1/2 माह के लिए की जाएगी।

सुत्र-
आहरण पर ब्याज = आहरण की कुल राशि × ब्याज की दर/100×5.5/12

3. यदि कोई सझेदार प्रत्येक माह के मध्य (बीच) में निश्चित राशि का आहरण करता है तो ब्याज की गणना आहरण की कुल राशि पर 6 माह के लिए की जाएगी।

सुत्र-
आहरण पर ब्याज = आहरण की कुल राशि × ब्याज की दर/100×6/12

4. यदि कोई सझेदार प्रत्येक माह में अनियमित रूप से असमान राशि का आहरण करता है तो ब्याज की गणना गुणनफल विधि से की जाएगी।
नोट:- P.a होतो तब p.a = Per Annum (प्रति वर्ष)

5.यदि कोई साझेदार वर्ष में एकमुश्त राशि का आहरण करता है और अआहरण की तिथि का उल्लेख नहीं हो तो ब्याज की गणना अआहरण की राशि पर 6 माह के लिए की जाएगी।

6.यदि कोई सझेदार प्रत्येक तिमाही (3 महीने) के प्रारंभ में निश्चित राशि का आहरण करता है तो ब्याज की गणना आहरण की संपूर्ण राशि पर 7 पूर्णांक 1/2 माह के लिए की जाएगी।

सुत्र-
आहरण पर ब्याज = आहरण की कुल राशि × ब्याज की दर/100×7.5/12

Average Period = Time left after fist drawing + Last drawing /2

7.यदि कोई सझेदार प्रत्येक तिमाही के अंत में निश्चित राशि आहरण करता है तो ब्याज की गणना आहरण के संपूर्ण राशि पर 4 पूर्णांक 1/2 माह के लिए की जाएगी।

सुत्र-
आहरण पर ब्याज = आहरण की कुल राशि × ब्याज की दर/100×4.2/12

8.यदि कोई साझेदार प्रत्येक तिमाही के मध्य में निश्चित राशि आहरण करता है तो ब्याज की गणना आहरण की संपूर्ण राशि पर 6 माह के लिए की जाएगी ।

सुत्र-
आहरण पर ब्याज = आहरण की कुल राशि × ब्याज की दर/100×6/12

 

फर्म के लिए आहरण पर ब्याज क्या हैं

फर्म यानी की साझेदारी व्यापार जिसमें दो या दो से अधिक साझेदार शामिल होते हैं और सभी साझेदार अपना कुछ ना कुछ पैसा व्यापार में लगाए हुए होते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि उन सभी साझेदार में से एक साझेदार को कुछ निजी कार्य के लिए पैसे की आवश्यकता होती है उस स्थिति में वह साझेदार अपने निजी उपयोग के लिए पैसे व्यापार से निकालता है।यह साझेदार के लिए आहरण हैं। अब आपके मन मे सवाल आ रहा होगा कि तो बाकी साझेदारों को भी उतना ही राशि निकाल लेना चाहिए? यदि दूसरा साझेदार को पैसे की आवश्यकता नहीं हो तो वह क्या करेगा। तो चलिए आपको बताते हैं-

A. अब आपके मन मे सवाल आ रहा होगा कि तो बाकी साझेदारों को भी उतना ही राशि निकाल लेना चाहिए?
उत्तर- यह जरूर नहीं हैं। अगर किसी साझेदार को पैसे की आवश्यकता होतो वह उससे भी अधिक राशि निकाल सकता हैं।

B. यदि दूसरा साझेदार को पैसे की आवश्यकता नहीं हो तो वह क्या करेगा
उत्तर- वह पैसे निकालें इसके लिए कोई जोर जबरदस्ती नहीं हैं।

उदाहरण- 1
X,Y और Z तीन साझेदार है इन्होंने एक साथ मिलकर साझेदारी फर्म की स्थापना की। Y अपने निजी उपयोग के लिए व्यापार से पैसे निकालता है। साझेदारी फर्म की स्थापना करते समय से या साझेदारी संलेख में इस बात का उल्लेख होता है अगर कोई साझेदार अपने निजी उपयोग के लिए पैसे निकालता है तो उसके आहरण पर ब्याज की गणना की जाएगी। उपर्युक्त पोस्ट में यह पूरी तरह से बताया गया है कि अगर साझेदार प्रत्येक माह के शुरू में, अंत में, बीच में या फिर एक बार ही पैसे निकलता है तो उसके आहरण पर ब्याज की राशि की गणना कैसे की जाएगी। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में साझेदार द्वारा जो ब्याज की राशि प्राप्त होता हैं वही फर्म के लिए आहरण पर ब्याज हैं।

आहरण पर ब्याज की गणना क्यों किया जाता हैं

जब साझेदार गैर आनुपातिक रूप से आहरण करते हैं तो इसके कारण साझेदार अलग-अलग लाभ प्राप्त करते हैं। गैर अनुपातिक लाभों को दूर करने के लिए आहरणों पर ब्याज की गणना की जाती हैं।

साझेदार के ऋण पर ब्याज किस दर से दिया जाता है

साझेदारी समझौते की अनुपस्थिति में , साझेदार के ऋण पर ब्याज 6 प्रतिशत वार्षिक दर से दिया जाता हैं।

 

 

 

 

 

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